कविता : गुलाब हो या दिल

मेरे दिल में अंकुरित हो तुम। दिल की डालियों पर खिलते हो। और गुलाब की पंखड़ियों की तरह खुलते हो तुम। कोई दूसरा छू न ले तुम्हें इसलिए कांटो के बीच रहते हो तुम। फिरभी प्यार का भंवरा कांटों के… Read More

geet diksha bhakti

भजन : दीक्षा भक्ति

श्रध्दा भक्ति विनय समर्पण, का इतना फल हो। मेरी दीक्षा गुरुवर तेरे, कर कमलो से हो। जन्म जन्म से भाव संजोये, दीक्षा पायेगे। नग्न दिगंबर साधू बनकर, ध्यान लगायेंगे। अनुकम्पा का बरदहस्त यह, मेरे सिर धर दो।। मेरी दीक्षा गुरुवर… Read More

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गीत : किसी पर तो आएगा

न दिल की प्यास, मेरी बुझती है। न दिल को, चैन मिलता है। पर न जाने, क्यों तुम्हारी यादे। इस दिल से, जाती नही है।। कदम कदम पर, तुम याद आते हो। दिलकी गैहराइयो में, क्यो समाये हो। क्या रिश्ता… Read More

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कविता : मेरे पिता जी

अंदर ही अंदर घुटता है। पर ख्यासे पूरा करता है। दिखता ऊपर से कठोर। पर दिलसे नरम होता है। ऐसा एक पिता होता है।। कितना वो संघर्ष है करता। पर उफ किसीसे नहीं करता। लड़ता है खुद जंग हमेशा। पर… Read More

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कविता : सत्य ये भी है

जन्म मरण का अब, समीकरण बदल गया। इंसान इंसान से दूर, अब होता जा रहा है। जीने की राह देखकर, मरने की बात करने लगे। फर्ज इंसानियत का भूलकर, समिति अपनो तक हो गए।। न दुआ काम आ रही है,… Read More

कविता : कौन किसका है

लोग अब रिश्तों का, अर्थ भूल गये हैं। क्या होते है रिश्ते, समझने से क्या फायदा। कितनी आत्मीयता होती थी, भारतीयों के दिलों में। अब तो एक दूसरे से, आंखे मिलाने से डरते है।। कौन किस का क्या है, सोचने… Read More

गीत : साथी चाहिए

कटती नहीं उम्र, अब तेरे बिना। मुझ को किसी से मानो, प्यार हो गया। जिंदगी की गाड़ी अकेले, अब चलती नहीं। एक साथी की जरूरत, मुझे अब आ पड़ी।। मिलना मिलाना जिंदगी का, दस्तूर है लोगों। खिल जाता है दिल… Read More

कविता : लेखा जोखा

हनन और दमन तुम  दूसरों का कर रहे हो। उसकी आग में अपने भी जल रहे हैं। कब तक तुम दुसरो को ररुलाओगें। एक दिन इस आग में खुद भी जल जाओगों। और अपने किये पर बहुत पषताओगें। पर उस… Read More

कविता : मनुष्य क्या है

संजय कहता है,  की खुद”को I खुद के अंदर, ही सर्च करो I अपने कर्माें पर भी, कभी तो रिसर्च करो। तभी हमें जीवन का, सही मूल्यांकन मिलेगा। हम कितने सही और, कितने गलत हैI यही पर हमें और, आप… Read More

mera dil sochta hai

कविता : दिल सोचता है

मेरे दिल कि सरहद  को पार न करना नाज़ुक है दिल मेरा वार न करना खुद से बढ़कर भरोसा है मुझे तुम पर इस भरोसे को तुम बेकार न करना । दूरियों की ना  परवाह कीजिए दिल जब भी पुकारे… Read More