zindgi abhi aur bhi hai

तमाम संघर्षों के बीच भी ज़िदगी होती है। जब हम निराश, हताश और संघर्षों से टूटने लगते हैं तब कभी कभी लगता है कि जीवन बस हमारा इतना ही था। जीवन की शेष संभावनाएं स्वतः खारिज हो जाती है। ऐसे में खुद को स्थापित किए रहना एक चुनौती हो जाती है। परिस्थितियां हमें तोड़ना चाहती हैं। यह वही समय होता जब खुद को एहसास दिलाना होता है कि जीवन शेष है। जिस भूमिका में हम होते हैं वह भूमिका और हमारा वह पक्ष बस विपरीत होता है, संपूर्ण जीवन नहीं। तब हमें स्वयं को यकीन दिलाना होता है कि जीवन अभी शेष है। यह संघर्ष ही हमारा निर्माण करते हैं। सृजन करते हैं। इन्हीं संघर्षों से हमें ऊर्जा मिलती हैं। वह ऊर्जा ही हमें स्थापित करती है पुनः। जो तुम्हे नकार दे उसके लिए स्वयं को स्थापित करना ही हमारा पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ जीवन की संजीवनी है। उसे स्थापित करना, उसे बनाए रखना हमारा दायित्व है।

जब भी कोई तुम्हे खारिज कर दे, जब भी तुम्हारे होने पर भी तुम्हारे अस्तित्व को नकार दे, उपेक्षा और तिरष्कार करे तब और लाजमी होता है खुद को स्थापित करना, उसकी संभावनाओं को खारिज करना तुम्हारे जिंदा होने का प्रमाण होगा। तुम जिंदा हो, यह दिखना भी चाहिए, तभी लोग भी तुम्हे जिंदा समझेंगे अन्यथा नकार दिया जाएगा व्यक्तित्व तुम्हारा जीवन का एक पक्ष प्रतिकूल होने पर हम जीवन को नकारात्मक या निष्प्रयोज्य नहीं घोषित कर सकते । जीवन में आखिरी क्षणों तक संभावनाएं तलाशना हमारा पुरुषार्थ है । थक कर, हार कर, निराश होकर, टूटकर , परिस्थितयों में दब जाना जीवन नहीं, बल्कि उससे जूझकर, लड़ कर, उसे पराजित कर, पुनः सृजन की संभावनाएं तलाशना ही मनुष्य को पुनः स्थापित करती है।

निराशावाद जीवन का एक अंग है किन्तु इतना बड़ा नहीं होता कि हम उस पर विजय न प्राप्त कर सकें। कोई भी परिस्थितियां हो, हमें कुछ समय के लिए विचलित कर सकती हैं किन्तु जीवन भर के लिए नहीं तोड़ सकती। आत्मबल जीवन का वह आलंबन है जिससे जीवन के हर संकट छंट जाते हैं बस केवल धैर्य और आत्मविश्वास से हमें प्रयास करना चाहिए। हर पल यह वाक्य “जीवन अभी और भी है, संभावनाएं अभी और भी हैं” सनद रहे। यही हमें तमाम झंझावातों और विडंबनाओं पर विजय दिलाएगा।

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