makar sankranti aur vigyan

जी हाँ! पूस का महीना खत्म हो चुका और माघ का महीना आ चुका है। देखते ही देखते मकर संक्रांति का त्यौहार आ गया है। ज्योतिषी, धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से आज के दिन का बहुत महत्व है। इसी समय सूर्य, धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य दक्षिण से उत्तरायण हो जाता है। इसी समय खरवास खत्म हो जाता है और मांगलिक कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त शुरु हो जाता है।

मकर संक्रांति ठेठ पारंपरिक त्यौहार है। जाड़े में हाड़ कंपकपाने वाली ठंड में नहाने के के साथ-साथ धूप सेकना, तिल और विभिन्न अनाज के लड्डूओं के साथ स्वादिष्ट खिचड़ी का आनंद प्रदान वाले इस त्योहार का हम सभी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।

यह पारंपरिक खानपान पसंद करने वालों का प्रिय त्यौहार है। इसीलिए कोई इसको तिल संक्रांति तो कोई खिचड़ी संक्रांति भी कहता है। हमारी माँ तो सीधे-सरल शब्दों में सकरांत कहती हैं। इस पर्व के महत्व पर देशी-विदेशी वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि चिकित्सक भी सहमत हैं। चिकित्सकों का कहना है कि इस मौसम में जाड़े-भर धूप में बैठना और तिल से बने पकवान खाना बहुत लाभदायक है।

आसमान में चमकते सूर्यदेव की कृपा से आपकी त्वचा को विटामिन डी और तिल के लड्डुओं से कैल्शियम मिलता है। विटामिन डी की सहायता से इस भोजन का कैल्शियम आँतों से अवशोषित होता है और इस तरह से आपकी हड्डियाँ मज़बूत होती हैं।

हमारे प्रिय डॉ., साहब बतला रहे थे कि ‘शीतऋतु वस्तुतः अस्थियों के साथ-साथ हृदय-पुष्टि की ऋतु भी है। हमारे प्राचीन ग्रन्थ ‘सूर्य’ को अस्थियों और हृदय का अधिपति देवता मानते हैं। (सूर्य को कुण्डली में कमज़ोर देख कर आज भी ज्योतिषी अस्थिरोगों व हृदय-व्याधियों की भविष्यवाणी किया करते हैं)। इस ऋतु में खाया जाने वाला तिल पॉलीअनसैचुरेटेड वसा-अम्लों से भरपूर है।

ये अम्ल हृदय की ढेरों बीमारियों से उस मेहनतकश मांसल पम्प को बचाते हैं।’ वैज्ञानिक प्रमाण और स्वास्थ्य के विशेषज्ञों के ज्ञान के साथ-साथ अब आज के खाने की बात करना भी बहुत जरूरी है। यह खिचड़ी खाने का दिन है। जी हाँ! इस दिन बनने वाली खिचड़ी के स्वाद की तो बात ही अलग होती है। पापड़,अचार और अदरक-धनियापत्ती की चटनी के साथ नए आलू, मटर, फूलगोभी, चावल, दाल आदि से बनने वाली और देसी घी की खुशबूदार छौंक से तैयार लज्जतदार खिचड़ी देखकर भला किसका जी न ललचाएगा। कहा भी गया है- “खिचड़ी के चार यार, दही, पापड़, घी और अचार”

दरअसल जनवरी का महीना ऐसा समय होता है, जब गाँव में कोठी नए चावल से भरी होती है। नए धान से स्वादिष्ट चूड़ा तैयार रहता है। चावल, मुरहा, मक्का, बाजरा और विभिन्न प्रकार के नए अनाज के साथ-साथ गन्ने की पेराई के बाद नया गुड़ भी तैयार रहता है। इसीलिए सुबह लड्डू तो दिन में खिचड़ी और उसके बाद शाम को दही-चूड़ा और गुड़ खाना भी होता रहता है। मतलब कुल मिलाकर मकर संक्रांति का पर्व स्वाद और खुशबू के साथ एक शानदार दिन होता है। अंत में एक बात और कि इन्हीं दिनों अलग-अलग नाम से इस पर्व को पूरे देश में मनाया जाता है। चाहे लोहड़ी कहिए। चाहे मकर-संक्रांति या पोंगल बोलिए या बिहू का नाम दीजिए। यह प्रकृति से जुड़ा हुआ लोकपर्व है।

यह हमारी कृषक प्रधान संस्कृति और राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता का भी महापर्व है। ज्योतिषी दृष्टि से यह उत्तरायण का समय है। चिकित्सकों की दृष्टि से स्वास्थ्य-आह्वान का समय है और हम सभी की दृष्टि में खिचड़ी और तिल के लड्डू खाने का समय है। इसीलिए इस लोकपर्व पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। आपकी त्वचा चमकती रहे। आंत, हड्डियाँ ताकतवर रहें। हृदय मजबूत रहे। आप सक्रिय एवं सकर्मक रहें। खूब आनंद लीजिए। खाइए ,पीजिए और मस्त रहिए।

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