खामोशी हृदय की एक अवस्था और परिस्थिति की एक मांग भी होती है। कभी कभी खामोशी वो भी कह देती जो शोर नहीं कह पाता। खामोशियों की भी अपनी जबान होती है जो हर किसी को समझ नहीं आती। कभी कभी हम बहुत बोल कर भी अपनी बात सामने वाले तक नहीं पहुंचा पाते किन्तु जरा सी खामोशी उसी सामने वाले के भीतर कभी कभी हलचल मचा देती है। यह स्थितियों पर निर्भर करता है। सच भी है जीवन बहुत कुछ परिस्थितियों के वशीभूत होता है। हम जो चाहते हैं वह कह नहीं पाते और जो नहीं कहना चाहते वह लोग जान लेते हैं। बस बात यह है कि सामने वाला हमारे भीतर कितना समाया है क्योंकि बिना भीतर समाए हम खामोशी नहीं पढ़ सकते,नहीं महसूस कर सकते और न जान सकते ।
जो रिश्ता दिल का होता है वहां खामोशियों का भी एक मायने होता है । जिंदगी का मायने भी इन्हीं खामोशियों से निकलता है । दिलो दिमाग में जब खामोशियां पसरी हो तो भीतर हलचल तेज होता है । हो भी क्यों नहीं क्योंकि यह जीवन का ऐसा पक्ष होता है जिस पर जीवन की बहुत सी संभावनाएं टिकीं होती हैं । जीवन का यह मनोविज्ञान बहुत महत्वपूर्ण होता है । यह दरअसल मानवीय रिश्तों की संवेदनशीलता के उस पक्ष की पैरवी करती है जिसपर आंतरिक लगाव का ताना बाना बुना जाता है । यह खामोशी भी शायद तभी कुछ कह पाती है जब उसे समझने वाला कोई हो अन्यथा यह संवेदनहीनता की भेंट चढ जाती है ।
यह एक प्रतिक्रिया है जो मुखर तो नहीं होती किन्तु जिसे महसूस हो जाए उसे बेचैन कर देती है । मानवीय मनोभावों की एक श्रृंखला है यह जो मनुष्य की मनुष्यता की खोज करती है । बहुत से मायने होते हैं इसके । जैसे अगर कोई विशेष स्वीकृति अपेक्षित हो और अगर खामोशी प्रतिक्रिया में हो तो सकारात्मक मान लिया जाता है । उसी तरह अगर कोई खीझ है आत्मिक जन से तो भी इसे प्रतिक्रिया मान समझ लिया जा सकता है । अगर कुछ कहने की तीव्र इच्छा हो और हम न कह सकें तो जिससे कहने की इच्छा है वह समझ सकता है क्योंकि वह यह जान सकता है कि दरअसल इस खामोशी की वजह क्या है ? यह सब आत्मीय निकटता पर निर्भर करता है किन्तु अगर बात रिश्तों या संवेदनशीलता के औपचारिकता की हो तो शोर भी खामोश रह जाता है । उसके मायने बहुत नहीं होते । शोर में बस आवाज होती है संवेदनशीलता नहीं जबकि खामोशी में आवाज भले न हो किन्तु संवेदनशीलता भरपूर होती है।