पिता होने के एहसास से,एक पिता जीता रहता है।
साब ! वो पिता, पिता नहीं, शेर होता है चीता होता है॥
जो ऊँगली पकड़कर कभी चलना सिखाता है।
वो बचपन में लोरी गा-गा कर कभी सुलाता है॥
हमारे झूठे नखरों पर जिसको पूरा यकीन होता है।
कितनो पर लपका होता है कितनो पर झपटा होता है॥
साब ! वो पिता, पिता नहीं, शेर होता है चीता होता है
हाथी बनकर कन्धों पर, और घोडा बनकर पीठ पर।
बाँहों में झूलाकर कहता है आओ, सैर करादूं जीप पर॥
मेला में खूब घूमता है, मनचाहा चीज़ खिलाता है।
क्या क्या लेना है? पूछता है, और ज़ेब में पैसा होता है॥
साब ! वो पिता, पिता नहीं, शेर होता है चीता होता है
बचपन के हर एक गलती में,खेल में हो या मस्ती में।
माँ के डाँट फटकार में और राम जी के भक्ति में॥
ज़माने के हर शोर में,वो रास्ता सही दिखाता है।
अपने साहस के ज़ोर पर,जिसे हमे, बचाना होता है॥
साब ! वो पिता, पिता नहीं, शेर होता है चीता होता है
जिसे हँसकर मुस्कुराकर, ग़म को भूलाना आता है।
उसे चुटकी बजाकर, हर दर्द को छुपाना आता है॥
हम खिल खिल कर हस्ते हैं, वो चुपके से रोता है।
परिवार के ख़ातिर जिसे, खून के आंसू पीना होता है॥
साब ! वो पिता, पिता नहीं, शेर होता है चीता होता है
जिसका पैर,कितने परेशानियों से घिरा होता है।
जिसका कन्धा,कितने जिम्मेदारियों से झुका होता है॥
राम कसम हम बच्चों को कोई फ़िकर नहीं होती।
हम सुकून से सोते हैं, वो रातों को जागता होता है॥
साब ! वो पिता, पिता नहीं, शेर होता है चीता होता है