poem tum kaya pawoge

थोड़ा सा सम्मान क्या मिला,
बरसाती मेंढ़क हो गए

थोड़ा सा धन क्या मिला,
पागल बन बैठे

थोड़ा सा ग्यान क्या मिला,
बड़बोले हो गए

थोड़ा सा यश क्या मिला,
दुनिया पर हसने लग गए

थोड़ा सा रुप क्या मिला,
दर्पण ही तोड़ दिए

थोड़ा सा अधिकार क्या मिला,
कर्तव्य ही भूल गए

थोड़ा सा शक्ति क्या मिली,
दुसरो को तबाह कर दिया

इस तरह ताउम्र छलनी से,
पानी भरते रह गए

अपनी समझ में
बड़ा काम करते रह गए

कभी सोचा भी है,
ज़ब पूरी होगी ज़िन्दगी

तुमने क्या खोया है,
तुम क्या पाओगे?

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