अगर आपके अंदर प्रतिभा है। तो फिर आप जरूर ही सफल होंगे। फिर चाहे परिस्थितियां कितनी ही विपरीत क्यों ना हो। वह आपको सफलता की उड़ान भरने से कभी नहीं रोक सकती। और आज की पोस्ट एक ऐसे ही इंसान के बारे में जिसमें बहुत सारी विपरीत परिस्थितियों का सामना करके सफलता की ऊंचाइयों को छुआ है। जिसके बारे में लोग सोच भी नहीं सकते और खासकर गांव में पैदा होने वाले किसान के लड़के के लिए तो यह एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है।
मैं बात कर रहा हूं इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के मौजूदा चेयरमैन, के. सिवन के बारे में जिनका पूरा नाम कैलासवादिवु सिवन है। और स्पेस साइंस के क्षेत्र में कैलासवादिवु सिवन के बहुमूल्य योगदान के लिए इन इंडिया रॉकेट मैन के नाम से भी जाना जाता है। और खासकर चंद्रयान-2 को बनाने में भी कैलासवादिवु सिवन का बहुत बड़ा योगदान था।
लेकिन ISRO को संभालने वाले कैलासवादिवु सिवन की सफलता की राह इतनी आसान नहीं थी। क्योंकि उनके जीवन में एक समय ऐसा भी था की दो वक्त की रोटी भी उन्हें बहुत ही कठिनाइयों से नसीब होती थी। और किसान के बेटे होने के बावजूद किस तरह कैलासवादिवु सिवन आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं।
इस कहानी की शुरुआत होती है 14 अप्रैल 1957 से, जब तमिलनाडु के नागरकोइल शहर के पास बसे एक छोटे से गांव में कैलासवादिवु सिवन का जन्म हुआ। और शुरुआत से ही कैलासवादिवु सिवन और उनके घर वालों को आर्थिक समस्या से जूझना पड़ा। क्योकि इनके पिता के पास महज 1 एकड़ जमीन थी। और उसी में ही खेती करके वह परिवार के 6 लोगों का पेट पाला करते थे।
हलांकि उनके पिता को यह समझ आ गया था कि जब तक उनके बच्चे पढ़ाई नहीं करेंगे। तब तक उनकी और उनके बच्चों की आर्थिक स्थिति ऐसे ही खराब बनी रहेगी। और इसीलिए खुद दिन-रात कड़ी मेहनत करके उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल भेजा। हालांकि छुट्टियों में कैलासवादिवु सिवन भी खेती-बाड़ी में अपने पिता का हाथ बटाया करते थे। और कैलासवादिवु सिवन की  शुरुआती पढ़ाई किसी बड़े स्कूल से नहीं की थी।
उन्होंने अपनी शुरुवाती पढाई अपने गांव के ही तमिल मीडियम गवर्नमेंट स्कूल से पढ़ाई की है। और स्कूल टीचर के द्वारा बताया जाता है कि कैलासवादिवु सिवन मेहनती होने के साथ-साथ नई-नई चीजों को सीखने में भी जिज्ञासा रखते थे। और शायद यही वजह थी कि आज वह इस मुकाम पर खड़े हैं।
स्कूल की पढ़ाई करने के बाद कैलासवादिवु सिवन के सामने आर्थिक समस्या और भी ज्यादा गहरा गई। क्योंकि उन्हें आगे चलकर एम आई टी यानी कि मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पढ़ाई करना था। लेकिन इस समस्या को उनके पिता ने अपने खेत का कुछ हिस्सा बेचकर बैचलर ऑफ इंजिनियरिंग की डिग्री ली।
यहां पर पढ़ाई पूरी करने के बाद से वह अपने घर के पहले ग्रेजुएट बने। और फिर शानदार शैक्षणिक रिकॉर्ड के बाद से उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में भी पढ़ाई की। और फिर यहां पर डिग्री लेने के बाद 1982 में कैलासवादिवु सिवन ने इसरो में काम करना शुरू कर दिया।
एक गरीब किसान के घर में पैदा होने के बाद भी यहां तक का सफर तय करना किसी भी इंसान के लिए काफी बड़ी बात है। लेकिन कैलासवादिवु सिवन जीवन का सफर तो बस अभी शुरू हुआ था। क्योंकि आगे चलकर उन्हें बुलंदियों को छूना था। इसरो में नौकरी मिलने के बाद से पी एस एल वी की शुरुवात हो चुकी थी। और पहली बार शिवम को इस प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला।
फिर इसके बाद से भी कई सारे अलग-अलग पदों पर वह काम करते हुए आगे बढ़ते चले गए। और खासकर उन्होंने 60 ट्राजेक्टरी सिमुलेशन सॉफ्टवेयर और इनोवेटिव डे ऑफ लौंच विंड पर काम किया और इसी काम की मदद से साल के किसी भी दिन कैसी भी परिस्थिति में रॉकेट को लांच किया जा सकता है। और ऐसी ही ना जाने कितनी बहुमूल्य खोज से वह भारत की स्पेस एजेंसी का कद ऊंचा करते रहे।
2011 में बतौर प्रोजेक्ट डायरेक्टर उन्होंने GSLV  पर काम करना शुरू किया और आपको बता दें GSLV मार्क III की मदद से चंद्रयान-2 मिशन में चंद्रयान को चंद्रमा पर भेजा गया है। और 14 फरवरी 2017 को भारत में एक साथ 104 सैटलाइट लॉन्च करने का जो वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया था। उसके अंदर भी कैलासवादिवु सिवन की अहम भूमिका माना जाता हैं।
इन्हीं सभी कमाल की लीडरशिप को देखते हुए जनवरी 2018 में कैलासवादिवु सिवन को इसरो का मुख्य बना दिया गया। और फिर 15 जनवरी 2018 से बतौर इसरो चेयरमैन उन्होंने काम करना शुरू कर दिया। और इस पद को संभालने के बाद से उनका और पूरे इसरो का जो सबसे अहम मिशन था वो चंद्रयान-2 था। इसे 22 जुलाई 2019 को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया जिसमे अंतिम 15 मिनट चुनौतीपूर्ण रहे और उसका संपर्क हमसे टूट गया। जिसके कारण विपरीत परिस्थितियों मे भी हार न मानने वाले के. सिवन कुछ पल के लिए भावुक भी हुए।

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