jai shree ram
दिनांक 22 जनवरी को वह शुभ तिथि है, जब अयोध्या धाम में श्रीराम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है। श्रीराम लोक आस्था व जन-मन के महानायक हैं, इसी प्रगाढ़ श्रद्धा व विश्वास की आँखों से 108 दोहों में श्रीराम को निहारने का अनायास प्रयास मेरे द्वारा किया गया है… यदि आपके पास समय हो, चित्त शान्त व मन प्रशांत हो तो उक्त दोहों में निहित भावों को हृदयंगम करने की कृपा करें…..

1. राम सत्य हैं शील भी,
त्यागी तपसी राम |
राम-चरण मन धार लो,
बन जांए सब काम ||

2.भींगी पलकें करुण मन,
संवेदन का धाम |
दीन-दुखी बनते सगा,
प्रेमसिक्त श्रीराम ||

3. अनुरागी मानस बसे,
निर्मल मन निष्काम |
सत्य स्नेह का साँवला,
कलित-ललित अभिराम ||

4. सत्यशील सुपुनीत है,
सत् का शीतल धूप |
कपट भाव नहीं रुचता,
सरल सुभाव अनूप ||

5. जीवन-धारा सेतु हैं,
बहे गहे सब छोर |
मैं – तुम में भटके नहीं,
कहाँ मोर अरु तोर ||

6. सीता के अनुराग नित,
शबरी के हैं चाव |
गीधराज के भाव हैं,
केवट के मन नाँव ||

7. हनुमत के हैं भक्ति वे,
हैं कपीश के मीत |
सखा विभीषण के बने,
यही प्रीत की रीत ||

8.वचन बड़ा है प्राण से,
यह रघुकुल की रीति |
रघुकुल के दीपक बने,
जले तपे यह प्रीति ||

9. कौशल्या के सत्य हैं,
कैेकय करुणा-भाव |
प्रेम दाशरथि हैं सघन,
सुमित्रा के सहचाव ||

10. भारत के हैं भरत वे,
त्यागसिक्त आधार |
पद से कद कब मापता,
अद्भुत यह किरदार ||

11. शुभ लक्षण लक्ष्मण बने,
सौख्य होवे शत्रुघ्न |
इन भावों में रमे जो,
मिलता उसे न विघ्न ||

12. जीवन देखो राम का,
है भीषण संग्राम |
मंगलमय हैं कर्म नित,
होता शुभ परिणाम ||

13. राष्ट्र मंगल राम हैं,
देश-धूलि में राम |
बिना देशहित के यहाँ,
मिलता कब विश्राम ||

14. पर नारी है मातु सम,
पर धन है विष घाव |
मर्यादा का शीर्ष वह,
सुंदर सहज स्वभाव ||

15. अवध विराजे राम नित,
मन-वन में अभिराम |
प्राणों के भी प्राण हैं,
निष्ठ प्रतिष्ठित राम ||

16. मानव के आदर्श हैं,
मानवता के मान |
मूल मनुजता के वही,
मानस मरम महान ||

17. राजनीति के वे नहीं,
लोकमनस के भूप |
जनहित है आधार नित,
शासन नीति अनूप ||

18. राम सभी के साथ हैं,
सभी राम के संग |
देशभूमि में नेह हो,
खंडित हो न प्रसंग ||

19. अवध रामजी आ गए,
हैं वे कालातीत |
मनमोहक छवि उर बसे,
उत्सव मंगलगीत ||

20. रामचरित जीवन बने,
है यह सबकी चाह |
अहोभाव में निरत हों,
कहाँ अहं क्या आह ||

21. रहनी हो श्री-राम सी,
कहनी विमल चरित्र |
जीवन का पाथेय यह,
कहाँ कहो यह चित्र ||

22. नर से नारायण बने,
गुणमंदिर हैं राम |
सत्य बन गया नाम यह,
रहे धवल सब काम ||

23. जो रहता सामान्य है,
बनता वह सम्मान्य |
जो विशेष की खोज में,
होता कभी न मान्य ||

24. राम गीत है गान हैं,
राम कला के धाम |
राम अनादि अनंत हैं,
राम सदा निष्काम ||

25. अधरों पर मधुहास है,
हृद में मंगल भाव |
कर उठता शुभ संचयन,
सहलाता हर घाव ||

26. संज्ञा संधि समास हैं,
अलंकार रस छंद |
हैं ब्याकरण समीकरण,
अनुरागी मकरंद ||

27. धनुही है नित हाथ में,
करे अमंगल नाश |
दुष्कृत्यों का शमन हो,
मंगलमय हर साँस ||

28. शुभ वाणी सोचो नहीं,
तत्क्षण करना तात |
गुरु वशिष्ठ पितु नेमि सा,
कौशल्या सी मातु ||

29. राम नहीं इतिहास बस,
हैं दर्पण भी मीत |
खुद देखो तुम हो कहाँ?
समय साम्य संगीत ||

30. कंचन मृग मग में मिले,
माया भ्रमि भ्रमि जात |
हो वियोग सत का तभी,
जीवन लंबी रात ||

31. है विवेकमय काज सब,
भाव सभी हैं भव्य |
वाणी में घुलती सुधा,
राम दिव्य भी नव्य ||

32. बाण नहीं निर्वाण है,
संवेदित सब तीर |
तारक हैं मारक नहीं,
ऐसे श्रीरघुवीर ||

33. जनहित में है राज्यहित,
जनमंगल के काम |
सर्वहित में स्वहित निहित,
रामराज्य अरु राम ||

34. वंदनीय सब भाव हैं,
अर्चनीय सब कर्म |
छूट जाय प्रियजन भले,
छूटे नहीं स्वधर्म ||

35. अवधपुरी नित धन्य है,
प्रकटे जँह श्री राम |
कण-कण में है दिव्यता,
बारंबार प्रणाम ||

36. प्राण-प्रतिष्ठा हो रही,
राघव रघुपति राम |
प्रेममग्न संसार है,
उत्सव में सब धाम ||

37. देखो राघव आ रहे,
कर विनाश दुष्कृत्य |
तमस कालिमा मिटी सब,
प्रभा ललित लालित्य ||

38. निराकार है मूल में,
जगती का आधार |
नराकार बनता वही,
हो जाता साकार ||

39. पद में और पदार्थ में,
रमे कहाँ श्री राम |
राज छोड़ वन को चले,
धर्मयुक्त सब काम ||

40. नारी की छाया हरे,
नहीं छोड़ते राम |
गिरि वन में ढू़ढ़ें फिरे,
करते काम तमाम ||

41. संघ सज्जनों का सजे,
शक्तिमान जीवंत |
दुर्जन का कुल मिटता,
अनाचार का अंत ||

42. राम सरीखे राम ही,
अनुपम भी अद्वितीय |
मेरे मन मंदिर बसे,
सदा राम अरु सीय ||

43. राम सत्य हैं प्रेम भी,
करुणामय श्रीराम |
वर्तमान भी भूत भी,
हैं भविष्य के धाम ||

44. देह भाव की परिधि में,
कहाँ अटे वह प्रेय |
वैदेही के चाव में,
मिल जाता संज्ञेय ||

45. मधुर भाव दाम्पत्य की,
परम प्रेम की रीति |
हैं अनन्य अद्वैत नित,
राम सिया की प्रीति ||

46. वनपथ में आगे चलें,
कंटक सब हर जात |
इस पथ पर जो भी बढ़े,
सोहे और सुहात ||

47. राम मूल ध्वनि ध्यान भी,
धुन अनहद अविराम |
हैं प्रबंध संबंध भी,
सारे मधु आयाम ||

48. सौरज धीरज युग्म हैं,
है विवेक का साथ |
परहित में मन मग्न है,
वे अनाथ के नाथ ||

49. धर्मरथी हैं वीरव्रत,
कर्मकुशलता हाथ |
चाह कहाँ कुछ राह में,
हैं निस्पृह नि:स्वार्थ ||

50. राम सनातन तत्व हैं
संस्कृति के उद्गार |
हैं वे पुष्पित आचरण,
भारत के आधार ||

51. सरजू तट पर खेलते,
मिल जाते श्रीराम |
धर्मसार आभार नित,
मेरा सदा प्रणाम ||

52. प्रण में देखूँ राम को,
रण में निरखूँ राम |
कण-कण में रमते वही,
पुरुषोत्तम श्री राम ||

53. अवधपुरी पावन धरा,
अतिपावन इक नाम |
सरयू सरित सुहावनी,
जित देखूँ तित राम ||

54. अधरों पर है प्रेमरस,
मन परहित में सिक्त |
रक्त प्रवाहित धर्म का,
होवे कभी न रिक्त ||

55. चिन्मय में रत है मनस,
मृण्मय का क्या आस |
माटी से माटी मिले,
मिले साँस से साँस ||

56. राम वंदना अर्चना,
अभिनंदन का नाम |
राम प्रभाती राग है,
रजनी रंजन राम ||

57. राम धरा के धाम के,
अधराधर अभिराम |
करुणा के रसधार में,
भक्तिभाव के राम ||

58. धर्मसेतु का हेतु क्या,
बिना हेतु हर काम |
कूल उभय को अभय दे,
नित्य मिलाए राम ||

59. जग के मग में भ्रम पले,
रग-रागों में राम |
हृद में है संवेदना,
हमें राम से काम ||

60. श्रद्धा और विश्वास में,
मिल जाते हैं राम |
ज्ञान और विग्यान में,
बसे वही इक नाम ||

61. प्रभुता में रमते नहीं,
समता का हो धाम |
लघुता प्रियता सरलता,
इसमें रमते राम ||

62. देह निहित संदेह ही,
है माया का नाम |
वैदेही के भाव से,
नित्य जुड़े हैं राम ||

63. माया को छाया मिले,
मायावी को धाम |
दोनों जुड़कर तृप्त हों,
ऐसे हैं श्री राम ||

64. तप से पाया ताप तो,
मिलता है संताप |
संशय में जीता सदा,
यही कलुष है पाप ||

65. राम एक संदेश हैं,
राम प्रेरणास्रोत |
राम कलुष-तम से परे
राम तमस में जोत ||

66. राष्ट्र चेतना संस्कृति,
अभिवादन अभिराम |
जन का स्वर आदर्श हैं,
रघुकुल सूरज राम ||

67. सरयू की हर लहर में,
गुंजित आठो याम |
सदाचार का पुंज है,
एक राम का नाम ||

68. शबरी केवट गीध भी,
बन जाते निष्काम |
प्रेम पगा हृद राम है,
नेह गेह हैं राम ||

69. राम प्रात हैं रात भी,
राम सकल आयाम |
राम प्रदर्शन में कहाँ,
दर्शन में हैं राम ||

70. राजा बनना था जिन्हें,
मिला उन्हें वनवास |
‘वन’ में जाकर ‘बन’ गए,
लेकर मधुमय हास ||

71. जनकसुता हैं रामप्रिय,
सिय में बसते राम |
सियराम जो करें कृपा,
होते शुभ हर काम ||

72. गुणागार करुणायतन,
दशरथनंदन राम |
प्राणवंत पाषाण कृत,
सबही करे प्रणाम ||

73. कली सुमन बनती तभी,
राम कृपा जब प्राप्त |
आधि -व्याधि सब मिट गए,
राम नाम ही आप्त ||

74. हिम में केवल जल रहे,
पट में है बस सूत |
सो जग में श्री राम हैं,
बाकी सब कुछ भूत ||

75. प्रात:काल उठकर प्रभु,
करते नित्य प्रणाम |
मातु पिता गुरु वंदना,
लाता शुभ परिणाम ||

76. सागर में तैरें उपल,
राम नाम का योग |
महिमा यह श्री राम की,
अद्भुत था संजोग ||

77. थे अगस्त्य के वीरवर,
बाल्मीकी के श्लोक |
अनुसूया के वत्स भी,
कहाँ रोग अरु शोक ||

78. विश्वामित्र के इष्ट थे,
अत्रि के हैं भगवान |
जनमानस के भूप हैं,
तुलसी के हैं गान ||

79. मिथिला के संबंध शुभ,
जनकराज के भाग्य |
सुनयना के नेत्र हुए,
सीता के सौभाग्य ||

80. रजत रश्मि धानी धरा,
मलय समीर प्रवाह |
शुभ्रज्वाल जल सुधासम,
राघव सुधि की थाह ||

81. परम प्रकाशक मधुमनस,
सत्यसंध रघुराज |
मर्यादा की याद नित,
क्या कल थी क्या आज ||

82. रहनी सोहे प्रीतिकर,
नहीं भाव प्रतिकार |
मूल्य- नीति का निर्वहन,
जीवन का आधार ||

83. अपहर्ता रावण रहा,
अहंकार से युक्त |
राम समर्पण नीति ले,
करें उसे नित सुप्त ||

84. जनमन नायक राम हैं,
आस्था के आलेख |
मूर्तिमान आनंद हैं,
सबके हृद के लेख ||

85. मानुष के हैं साधना,
साधन विमल विशेष |
जन के आशादीप हैं,
जग के हैं अखिलेश ||

86. नय नागर हैं नम्र वे,
लघु को देते मान |
निर्मल मन के संग हैं,
हरें सकल अभिमान ||

87. कपट छुपाव दुराव हैं,
करें प्रीति रस भंग |
सियाराम का स्नेह धर,
अभिनव नेह तरंग ||

88. प्रेम खरा हो हर समय,
पल भर भटक न पाय |
भूले से ना भूल हो,
सीताराम सहाय ||

89. अपना खुद निर्माण कर,
दोष न होवे एक |
जैसे प्रस्तर छांटकर,
मूर्ति राम की नेक ||

90. जीवन बनता देर में,
पल में बिगड़े कोय |
शुभ सद्गुण से राम हैं,
दुर्गुण रावण होय ||

91. रावण राम प्रवृत्ति हैं,
व्यक्ति नहीं हैं मात्र |
जो बनना चाहे बनो,
रहो कुपात्र सुपात्र ||

92. संवेदन का संग नित,
रहे मनुजता साथ |
टेक रहे बस नेक की,
राम हमारे नाथ ||

93. जीवन पुरी अवध बनी,
रामराज्य ही ध्येय |
धर्मदृष्टि नवसृष्टि हो,
बने प्रेय का गेय ||

94. प्रीतिबद्ध प्रतिबद्ध हो,
बन सच्चा इंसान |
रावण मरता मनुज से,
खुद की कर पहचान ||

95. सत्य सदा है एक ही,
लो उसको तुम जान |
राम चरित उर धार लो,
रामायण का गान ||

96. कर्म कहाँ जो काम्य हो,
धर्म कहाँ जो भेद |
राज मिले या वन मिले,
हैं प्रसन्न कब खेद ||

97. दशरथ का आनंद है,
रामराज्य अभिषेक |
सिंहासन पर राम हों,
यही हर्ष अतिरेक ||

98. कोमल भी वे कुसुम सम,
वज्र सा हैं कठोर |
राम हृदय को जानता,
अगम अपार अछोर ||

99. धर्म निबाहें सूक्ष्मत:
हर संबंध सँभार |
कर्म कामना-रहित है,
पाने का आभार ||

100. राग न होवे दाग तव,
रखना हर पल ध्यान |
सदाचार श्री राम का,
हमें दिलाए मान ||

101. मंदाकिनी का शुभ तट,
त्याग प्रेम अभिराम |
भरत-राम वैराग्य का,
है अद्भुत यह धाम ||

102. हैं उमेश के ईश वे,
पद सरोज शुभ काज |
बिनु माँगे मोती मिले,
रामचंद्र के राज ||

103. मंथर मति है मंथरा,
प्रेरक हैं श्रीराम |
होवें पोषक सर्वमत,
कहो कहाँ आराम ||

104. रीछराज की सुमति हैं,
हनुमत के विश्वास |
अंगद वचन विवेक हैं,
माँ सीता के आस ||

105. भावभूमि यह अवध है,
बीज राम का नाम |
शुभ कर्मों की है फसल,
मंगलमय परिणाम ||

106. भुशुंडि के प्रिय वहीं,
चरित करें गुणगान |
रोम – रोम में हैं रमे,
रामहि राम सुजान ||

107. नारद की वीणा बजे,
हरि का मंगलगान |
राम नमामि नमामि ते,
यही सुनहरी तान ||

108. करें अनुकरण राम का,
मिट जाते सब शूल |
नमन समर्पित है सदा
नम भावों के फूल ||

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