हम मां, पिता, भाई व बहन सहित अन्य रिश्तेदार नहीं चुन सकते हैं। दोस्त ही हैं जो हम अपने जिंदगी के सफर में चुनते हैं। ऐसे में किसी व्यक्ति के मित्र कैसे हैं उससे भी उसकी शख़्सियत का अंदाजा मिलता है। ये दोस्त व्यक्तित्व का अहम हिस्सा होते हैं।
अभी तक के जीवन में मैंने महसूस किया है कि ज्यादा गाढ़ी दोस्ती स्कूल या कॉलेज के दिनों में ही होती है। इशकी बड़ी वजह ये है कि उस दौर की दोस्ती आमतौर पर बिना किसी स्वार्थ के होती है बस किसी की कुछ बातें अच्छी लग जाती हैं और कोई मन को भा जाता है। दिल में जगह बना लेता है।
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं तो मासूमियत खत्म होती जाती है। करीब 25 साल के बाद सच्चे दोस्त बनना लगभग खत्म ही हो जाता है। बड़ी मुश्किल से एक्का- दुक्का लोग मिलते हैं जिनसे दिल के तार जुड़ पाते हैं। इसके बाद लोगों से सिर्फ संपर्क बनता है। ये जो कांटेक्ट बनते हैं उसमें लोग इस बात का ध्यान ज्यादा रखते हैं कि कौन आदमी महत्वपूर्ण है, पैसे व पद वाला हो। उस आदमी से क्या काम लिया जा सकता है।
दोस्ती की जब बात चल रही है तो महाभारत काल के कर्ण याद आते हैं जो दोस्त दुर्योधन के लिए जान की बाजी लगाने के लिए तैयार रहते हैं। वहीं कृष्ण और सुदामा की यादगार मित्रता जो राजा होने के बाद भी गरीब दोस्त के आने की बात सुन बेतहाशा दौड़ पड़ते हैं। सुदामा के अपने हाथों से पखारते हैं। वही कृष्ण अपने मित्र अर्जुन का सारथी बन पांडवों की जीत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
मेरा स्वभाव इंट्रोवर्ट ही कहा जा सकता है इसलिए पचास साल की जिंदगी में करीब दो दर्जन ही ऐसे लोग मिले हैं जिन्हें सचमुच दोस्त कहा जा सकता है। सबसे लंबा साथ लंगोटिया दोस्त डॉ. सुमित सेन (छोटन) का रहा है। मुक्ति भी मित्र है जो हमसफर बनी। प्रवीण प्रियदर्शी ने कॉलेज के दिनों से ही राजनीति में रूचि और विचारधारा के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। हम सिविल सर्विस की तैयारी के दौरान दिल्ली के यमुना विहार में साथ रहे थे। दैनिक जागरण में भी हम साथ रहे।
स्कूली दोस्त
संत अल्बर्ट स्कूल में पढ़ने के दौरान जयदीप सिंह, अवध किशोर सिंह, प्रणय, मिथिलेश (अब नहीं है) , उमेश यादव से मित्रता की डोर बंधी जो आज भी पक्की है। मेरे मोहल्ले के अशिताभ सिन्हा, राजेश सेंगर व गोपी।
कॉलेज व जर्नलिज्म डिपार्टमेंट के दोस्त
मारवाड़ी कालेज में पढ़ने के दौरान तुहीन मुखर्जी, सैकत सेन, अरशद, नैयर, नेहाल अहमद, हेमंत जायसवाल से दोस्ती हुई। वीमेंस कॉलेज के पास नवीन स्टोर दुकान होने की वजह से कॉलेज की कई लड़कियों से मित्रता हुई जिनमें मुक्ति शाहदेव, आरती, अनीता झा, कृति सेन गुप्ता, चुमकी आदि। मिनाक्षी शर्मा (जिला संपर्क कार्यालय) से भी मित्रता इसी दौर में हुई थी।
जर्नलिज्म डिपार्टमेंट में पढ़ाई के दरम्यान उत्तम मिश्रा, मनोज सिंह, रेमी कुमारी, अनुपमा पांडे, सुधीर पाल व अमित अखौरी से याराना हुआ। नगरा टोली के बाद प्रवीण की वजह से कोकर में अड्डाबाजी ज्यादा होती थी। यहीं धनश्याम श्रीवास्तव मित्र बने।
दिल्ली में दोस्ती
दिल्ली में सिविल सर्विस की तैयारी के चार साल रहा था। इस दौरान वहीं के रहने वाले रामहरि शर्मा से राब्ता बना जो आज भी कायम है। इस दौरान संजय पाठक, बबन कुमार सिंह, रवि, संजय सिन्हा, महेंद्र यादव (पनन् के रहने वाले), अरुण पांडे ( न्यूज 18),अश्विनी कुमार सिन्हा ( अभी IPS) , बैजनाथ प्रसाद DSP, Acb) करीब आए।
पत्रकारिता के दौरान 1998 में रांची एक्सप्रेस से पत्रकारिता शुरू की थी। सुधीर व अमित तो पहले से मित्र थे। अनुराग अन्वेषी व उनके पूरे परिवार से परिचय हुआ। संजीव रंजन व अमिताभ यहीं मिले थे। इसके बाद प्रभात खबर में रवि प्रकाश सिन्हा, मिथिलेश झा, आशीष झा व विनय चतुर्वेदी करीब आए। प्रभात खबर डॉट कॉम की रजनीश आनंद वैसे तो मुक्ति की ज्यादा करीबी सखी है पर हमपेशा होने की वजह से अपन से भी याराना है।
ताजातरीन दोस्ताना
अभी साल भर से बालेन्दु शेखर मंगलमूर्ति, शक्ति वाजपेयी और सत्यप्रकाश चौधरी (प्रभात खबर के पुराने साथी) करीब आए हैं।
कुछ दोस्तों की तस्वीरें मिलीं हैं वे साझा कर रहा हूं।