motupatlu

“ना रूपया ना पैसा ना कौड़ी रे
ये मोटू और पतलू की जोड़ी रे
मोटू और पतलू रे”

ये गीत गाते हुए प्रकाशक के लाये हुये लड्डू खाते हुए मोटू ने गब्बर स्टाइल में कहा –
“अरे पतलू भाई , कितने आदमी होंगे नए व्यंग्य संग्रह में”
पतलू ने भी लड्डू मुंह में डालते हुए उत्साहित होकर सांबा की तरह कहा –“पूरे पचास”
मोटू ने तड़कते हुए कहा – “पचास सालों से पचास पर ही अटका हुआ है, आगे बढ़ ना”।
पतलू ने झल्लाते हुए कहा – “बात पूरी सुना करो यार, इसीलिये तुम्हारी कोई परियोजना बिना लफड़ेबाजी के पूरी नहीं हो पाती। मैं बोल रहा था कि पचास तो अपनी टीम के पुराने बन्दे रहेंगे। उनको तो हमको कुछ बोलना ही नहीं है, जो कहेंगे वो मान लेंगे। वो तो अपने कहने पर कहीं भी गर्दन झुकाने को तैयार रहते हैं। रहा सवाल बाकी पचास का, तो वो हम नए बन्दे लेंगे”।

“नए बन्दे क्यों लेंगे, जब हमारी सौ लोगों की बारात पूरी है। क्योंकि जो पचास हमारे कोर मेम्बर हैं वो अगर एक-एक को लाएंगे तो सौ लोग तो चुटकी बजाते ही जुड़ जाएंगे। और जब सौ व्यंग्य हाजिर हैं तो व्यंग्य की बैंड बजने में देर क्यों है यार”? मोटू इस बार झल्लाते हुए बोला।
पतलू भी झल्ला गया और तुर्शी से बोला – “ये ना तो फुरफुरी नगर है और ना ही तुम इंस्पेक्टर चिंगम हो जो तुम्हारे हिसाब से खेल चलेगा । ऐसे में सौ अच्छे लेखकों को लेकर संग्रह निकालना आसान काम नहीं है”।

मोटू ने कहा – “फुरफुरी नगर के खिलाड़ियों और हमारी टीम के लेखकों में कोई खास फर्क है क्या। और जब पहले ही हमारी सौ बंदों की टीम थी तो पचास का ही नाम क्यों ले रहे हो बाकी के पचास व्यंग्य बाराती कम कैसे हो गए”?
पतलू ने कहा – “अमां यार समझा करो, जिन पचास लेखकों को हटाया गया है, वो ऐसे लोग हैं जिन्होंने संग्रह में नाम आने के बाद पलट कर हमको सलामी नहीं दी। ना अपनी फेसबुक वाल पर हमारे लेखन की बढ़ाई की और ना ही हमारी फेस बुक वाल पर कभी भी हमारे लिखे को क्लासिक और कालजयी जैसे शब्द नहीं नवाजे। अब तुम्ही बताओ भाई ऐसे नाशुक्रे पचास लोगों को अपनी किताब में जगह देने का कोई मतलब है? इसीलिये इनको निकाल दिया आगामी किताब से, ठीक किया ना भाई ?

मोटू ने गंभीर स्वर में कहा – “बिल्कुल ठीक किया भाई, अच्छा ये बताओ बाकी के जो पचास लोग परमानेन्ट टीम में हैं उन्होंने रेग्युलर हमारी लल्लो-चप्पो की है ना, पूरे साल सलामी ठोंकते रहे हैं ना, तुमने भाई पूरी तरह चेक कर लिया है ना? कोई बागी तो नहीं बना, किसी ने बगावत तो नहीं की”?

पतलू ने हँसते हुए कहा – “भले ही लोग हमें व्यंग्य के मोटू-पतलू बुलाते हैं, लेकिन हम दोनों की जोड़ी जय-वीरू टाइप की है। यहाँ विजय हो ना हो लेकिन कोई जय शहीद नहीं होता और व्यंग्य हमारे लिए रामगढ़ की चक्की का आटा है। हम दोनों अतुकांत कविताओं से लतियाये गए लेकिन मानो या न मानो व्यंग्य ही ने हमको सिरज रखा है। सही कहा ना मोटू भाई, सारी वीरू भाई”।

“सही कहा भी और सही किया भी, पतलू भाई, सॉरी जय भाई” मोटू ने हँसते हुए जवाब दिया ।
उन दोनों की शिखर वार्ता के दौरान व्यंग्य के रामगढ़ में सांबा इस बार लेडी सांबा के रूप में अवतरित हुआ।

अपनी नाक सहलाते हुए वो जनाना, खालिस जनाना स्वर में बोली –
“मोटू भैया, पतलू भैया आप लोग मुझे भूल गये। आप लोग मुझे अब अपनी बहन सूर्पनखा समझें। मेरी नाक कटी ही समझो “।

मोटू-पतलू बड़ी देर तक लेडी सांबा की सलामत नाक को देखते रहे। फिर मोटू ने कहा –
“देख बहना, तू भले ही खुद को सूर्पनखा समझ ले। लेकिन हम तुझे बहन मानकर रावण नहीं बनने वाले। पहली बात तो क़लजुग में सूर्पनखा भले ही इफरात मिलती हों मगर लक्ष्मण तो एक भी नहीं होते, फिर तेरी नाक तो अभी सलामत है बहना, फिर तू सूर्पनखा कैसे हुई बहना”।

लेडी सांबा कुछ बोल पाती इससे पहले ही पतलू ने होशियारी दिखाते हुए कहा –
“संभल के रहना भाई, इसकी नाक सलामत है। जिस तरह क़लजुग में लक्ष्मण नहीं होते। उसी तरह क़लजुग में हमको मारीचि नहीं बनना है कि कोई हिरन समझ कर हम पर बाण वर्षा कर दे और हम टें बोल जाएं। इसके बाद बरसों की सेटिंग-गेटिंग से बनायी हुई हमारी ये ‘व्यंग्य लंका’ जल कर राख हो जाये । ये हमारी व्यंग्य लंका ही हमारे लिए स्वर्ण लंका है। हम इस पर अपना दावा हर्गिज नहीं छोड़ सकते चाहे जितने बंधु-बांधव से नाराजगी हो जाये । बस हमारे प्रिय प्रकाशक नाराज नहीं होने चाहिये। तूने किसी प्रकाशक को नाराज तो नहीं किया ना बहना”।

लेडी सांबा सुबकते हुए बोली – “मेरी असली नाक तो सलामत है लेकिन मन की नाक कट गयी समझो। हर युग में लक्ष्मण नहीं आते नाक काटने लेकिन क़लजुग में भी सूर्पनखा की नाक कटती ही रहती है। इस बार मुझे चार-पांच महिलाओं को आने वाली व्यंग्य की किताब से निकलवाना है। उन लोगों को मैं ही लायी थी लेकिन अब वे सब मुझे ही भाव नहीं देती हैं। और कहीं तो छप नहीं पातीं अब यहां से भी निकाल दी जाएंगी तब पता चलेगा। तो समझो भैया मेरी नाक सलामत रखनी है, वरना वो पांचो लेडीज मुझे ताना देंगी, मेरा उपहास करेंगी। और मेरी बेइज्जती हुई तो मैं खुद को सूर्पनखा ही समझूँगी” ये कहते हुए लेडी सांबा ने सुबकते हुए उन पांच नामों की लिस्ट बढ़ा दी।
मोटू और पतलू ने लिस्ट को चेक किया। वो पांच लेखिकाएं उन पचास की लिस्ट में शामिल थीं जो वफादार व्यंग्य बाराती थे ।

मोटू ने कहा – “बमुश्किल हमने पचास वफादारों की लिस्ट तैयार की है जो हमारे गाजर-मूली लेखन पर भी कसीदे गढ़ते आये हैं। ये तुम्हारी नहीं मगर हमारी वफादार रही हैं। ये और बात है बहना कि तुम्हारी मन की नाक भी तो बचानी है।

लेकिन ये भी सोचो कि इनको हटाएंगे तो नारी शक्ति सन्तुलन बिगड़ जायेगा हमारी टीम से। बड़ा धर्मसंकट है “ये कहकर मोटू ने चिंतातुर होकर गहरी सांस छोड़ी।
अपना काम बिगड़ता देखकर लेडी सांबा ने फिर सुबकना शुरू कर दिया।
इस इमोशनल अत्याचार से आज़िज होकर पतलू ने कहा – “इनको हटाएंगे तो ऐसे पांच कहाँ से लाएंगे, तुमने विकल्प का कुछ इंतजाम किया है”?

सुबकना बंद करते हुए लेडी सांबा ने लिस्ट बढ़ा दी जिसमें पांच नए नाम थे।
मोटू-पतलू दोनों ने लिस्ट देखी और एक साथ पूछा – “इन्होंने कभी व्यंग्य लिखा है क्या। हमने तो इनका नाम नहीं सुना कभी। कैसे मैनेज होगा सब”?

“पहली बात तो ये हैं कि इन पांचों की वफादारी पांडवों की तरह है। दूसरी बात ये है कि इन लोगों ने लिखना शुरू किया है, धीरे-धीरे व्यंग्य लिखना भी सीख ही जाएंगी। इसी तरह सब मैनेज हो जायेगा। वैसे भी हमारे पिछले व्यंग्य संग्रह में कितने ही लेखक-लेखिकाएं ऐसे थे जो कि बिना एक भी ढंग का व्यंग्य लिखे ही …….”।

“श ,श ,श “ की आवाज निकालते हुए होंठो पर उंगली रखते हुए चुप रहने का इशारा करते हुए पतलू ने कहा –“चुप कर बहना, इतनी पोल मत खोल। तेरी नाक कटने से हमने बचा लिया तुझे लेकिन तू ऐसे बोलेगी और कोई सुन लेगा तो व्यंग्य बिरादरी में वैसे भी हमारी कोई इज्जत नहीं है, नौकरी के बलबूते पर जो हमारी रही-सही नाक अब तक बची हुई है वो भी जरूर कट जाएगी”।

पतलू की इस हरकत पर लेडी सांबा हँस पड़ी। उसे हँसता देखकर मोटू-पतलू भी हंसने लगे।
नेपथ्य में कहीं एक गीत बज रहा था – “ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे”।
इस गीत पर लेडी सांबा तर्ज बनाते हुए मन ही मन गुनगुना रही थी
“और व्यंग्य का दिवाला निकालकर छोड़ेंगे।

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