मनोरंजन का प्राचीन माध्यम रहे बहरूपिया अथवा बहुरूपिया आज हाशिए पर हैं। मनोरंजन के उपकरणों व आधुनिक संसाधनों के प्रचलन से पूर्व बहरूपिया ही मनोरंजन का प्रमुख साधन हुआ करते थे। इनकी उपस्थिति आम जन-मानस के बीच से लेकर राजदरबारों तक हुआ करती थी। दरबार में राजा व दरबारियों का मनोरंजन बहरूपिया कलाकार किया करता था, दरअसल बहरूपिया कला और कलाकार दोनों का नाम है। इन्हें दरबार में सीधे आने-जाने की छूट हुआ करती थी।

जैसा कि हमें ज्ञात है यदि अपवाद स्वरूप कुछ दौर छोङ दें तो महिलाओं को समाज में पुरूषों के बराबर स्वतंत्रता नहीं सौपीं और यह आज भी सभ्य समाज में एक प्रमुख मुद्दा है। बहरूपिया लोक कलाकारों में पुरूष कलाकार ही महिलाओं का किरदार निभाया करते थे। पुलिस कि स्थापना से पूर्व बहरूपिया कलाकार ही गुप्तचर की भी भूमिका राजा की ओर से निभाया करते थे।

बदलते समय के साथ राजदरबारों में बहरूपिया लोक कला का स्थान संगीत आदि ने ले लिया। राजस्थान में देश का सुप्रसिद्ध बहरूपिया परिवार है। शुभराती खां उर्फ शिवराज बहरूपिया हाल ही में इनका स्वर्गवास हुआ है। ये पुश्तैनी बहरूपिया हैं इनके दादा राजा मानसिंह के जमाने में दरबारी बहरूपिया हुआ करते थे।

राजदरबारों में इस कला को प्रश्रय प्राप्त होता रहा परन्तु दरबारों में कला की मनाही के बाद बहरूपिया कलाकारों को जागिरदारी दे दी गई, अर्थात् कुछ इलाके कुछ बहरूपिया परिवार के ही एकाधिकार में रहे। राजस्थान के भीलवाङा के जानकीलाल भांड ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। इन्हें कई सौ गावों में बहरूपिया कला को दिखाने कि जागिरदारी मिली हुई थी।

आज इस प्रतिष्ठित लोक कला के कलाकार सरकार और जनता कि अनदेखी के कारण मुफलिसी की शिकार है। अब बहरूपिया कलाकार के पास दो ही तरीके हैं। पहला कि वह अपनी जागिरदारी में ही कला का प्रदर्शन करे और जजमान फसल कटने पर जो भी दे उससे जीवन यापन करें, पर आधुनिकता के इस दौर में बहुत मुश्किल है। दूसरा यह कि देश भर में बहरूपिया कला का प्रदर्शन किया जाए। यदा कदा पंजीकृत बहरूपिया कलाकारों को सरकारी कार्यक्रमों में प्रदर्शन का मौका मिल जाता है, मानदेय भी दिया जाता है।

शिवराज के सात पुत्र अपने बहरूपिया कला को आज भी करते आ रहे है। समशाद बहरूपिया बताते हैं कि अपने इलाके में व बुजुर्गों कि नजरों में हमें सम्मान से देखा जाता है पर अन्य क्षेत्रों में हमें अब लोग सिर्फ भिखारी समझते हैं।

अंग्रेजी सरकार ने घुमंतु जनजातियों पर कई कङे कानून लागू किए क्योंकि इन्हें ब्रिटिश सरकार आक्रामक माना करती थी, आज भी बहरूपिया कलाकारों को थाने से अनुमति लेकर ही ईलाके में कला का प्रदर्शन कर सकते हैं। आज यह कला विलुप्ती की कगार पर है, सरकार को इस बहुमूल्य अमूर्त विरासत को बचाने के लिए नियम बनाना चाहिए। ज़्यादातर बहरूपिया कलाकार आज भी अशिक्षित हैं, इनके पास मैखिक इतिहास का पीढ़ीयों से चलता आ रहा ज्ञान सुरक्षित है। सरकार से आग्रह है कि इस कला को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।

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One thought on “विलुप्ति के कगार पर बहरूपिया”

  1. राजस्थान में तकरीबन 15000 बहुरूपी कलाकार रहते हैं लेकिन स्थाई रोजगार नहीं होने से प्रसिद्ध बहुरूपी कलाकार जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं समाज की कई ऑफ वायम का शिकार इस समाज को चलना पड़ रहा है जैसे कि गांव में बाजारों में शहरों में गांव में जरा सी अफवाह हुई तो बहुरूपी कलाकारों को जीना दुश्वार हुआ

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