lockdown india

इस विषय पर पिछले कई दिनों से कुछ लिखने की सोच रहा था मगर आज सुबह जब शहर के उभरते हुए युवा साथी लेखक और निर्देशक Rahul Yadav जो कि यू ट्यूब पर राहुल आशिक़ीवाला नाम से फेमस है का फोन आया और उन्होंने पूछा कि सर ये लॉक डाउन कब तक चलेगा? शूटिंग्स आदि कब से स्टार्ट होने की उम्मीद है? बहुत भारी हो रहा है फ़िल्म, टेलीविजन और थियेटर से जुड़े हुए लोगो के लिए एक एक दिन। मेरे पास राहुल के इन सवालों का कोई माकूल जवाब नही था मैंने कहा कि 15 जून के बाद शायद शूटिंग्स शुरू हो जाय। मगर पक्का कह पाना मुश्किल है। राहुल ने कहा क्या इस प्रदेश में ऐसा कोई असोसिएशन नही जो हम कलाकारों की मदद कर सके या सरकार से इस संबंध में भी कुछ ध्यान देने के लिए निवेदन कर सके? मैंने कहा अगर होती तो इस समय मुंबई से लेकर लखनऊ तक हम कलाकारों की ये स्थिति नही होती। कहने को तो लखनऊ से लेकर मुंबई तक एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, मेकअप आर्टिस्ट, एक्शन डायरेक्टर, जूनियर आर्टिस्ट, डांसर, आर्ट डायरेक्टर, कैमरा मैन सभी के लिए दसियों असोसिएशन हैं मगर मुश्किल की इस सबसे विकट घड़ी में ज़्यादातर एसोसिएशन सिर्फ़ कागज़ी गोरखधंधे से ऊपर और कुछ नही।

आज मन बहुत खिन्न है इस लिये दिल खोल कर लिख रहा हूँ मुझे लागलपेट के साथ अपनी बात कहना नही आता मैं सीधी और स्पष्ट बात कहने में यकीन रखता हूँ। आज जब फ़िल्म, टेलिविज़न और थियेटर से जुड़ी हुई हज़ारो लाखों प्रतिभाएं अपने जीवन सबसे बुरी आर्थिक तंगी से गुजर रही है उस वक़्त ये दसियों एसोसिएशन कहाँ दसे हुए है? सिवाय सिंटा और IFTDA को छोड़ कर मुझे कोई कुछ करता नजर नही आया। ये दोनों अपने स्तर से अपने से जुड़े लोगों अपनी क्षमता के अनुसार सहायता कर रहे हैं मैं IFTDA और SWA का मेंबर हूँ मेरे पास IFTDA की कई मेल आ चुकी है। हर महीने राशन कूपन भी आ रहा है मगर SWA सुन्न पड़ा है। CINTA से जुड़े हुए लोगो ने बताया कि उनके पास भी अब तक दो बार राशन आ चुका है। मैं इन दोनों एसोसिएशन को उनके इस सहयोग के लिये धन्यवाद देता हूं।

मगर इसके बाद भी इस फील्ड से जुड़े मुम्बई में रह रहे हज़ारों कलाकार मुम्बई छोड़ कर उत्तर प्रदेश, बिहार और अपने अन्य गृह प्रदेशों में आ चुके हैं कुछ आ रहे हैं और जो रह रहे हैं उनकी हालत बहुत अच्छी नही। ऐसा क्यों है? अरबो करोड़ की फ़िल्म, टेलीविजन और थियेटर इंडस्ट्री से जुड़े लाखों लोगों की हालत को क्या थोड़ा भी सुधारा नही जा सकता है? मेरा सुझाव है कि अगर इस फील्ड से जुड़े हर वर्ग का असोसिएशन सिर्फ़ अपने 50 – 50 टॉप लोगो से जाकर मिलकर उनसे अपने कमजोर सदस्यों की सहायता करने के नाम पर सहयोग मांगता और ये 50 लोग सिर्फ अपनी हैसियत अनुसार 5 लाख से 2 करोड़ तक सहायता कर देते तो बहुत हद तक हमारे कमज़ोर मित्रों की मदद हो जाती। मगर अब तक ऐसा नही हुआ। अब बात उस प्रदेश की जिसका सबसे ज़्यादा योगदान हर तरह से कलाकार, लेखक, निर्देशक, सिंगर, संगीतकार और दर्शको के लिहाज़ से भी फ़िल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री को है यानि उत्तर प्रदेश की पिछले कई वर्षों से ये फ़िल्म वालो की सबसे पसंदीदा प्रदेश बना हुआ है और इसमें बहुत बड़ा योगदान अखिलेश सरकार का रहा है।

यहां भी कलाकारों के हित करने के नाम बहुत सी Association बने हुए हैं। सभी के पदाधिकारी मुंह के बब्बर शेर हैं बातें करेंगे तो ऐसा लगता है कि जैसे आज ही सब सही कर देंगे मगर हक़ीक़त में ज़्यादातर दलालों का जमघट। जो सिर्फ़ अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं क्योंकि अगर ऐसा नही होता आज 2 महीने से ज़्यादा समय बीतने के बाद भी किसी भी असोसिएशन ने कोई भी ऐसी पहल नही जिससे कलाकारों के हितों की रक्षा हो सके बुरे दौर से गुज़र रहे हमारे मित्रो की आंशिक भी मदद हो सके। अगर बात मैं राजधानी लखनऊ की करे तो यहां भी कहने को बहुत सारी असोसिएशन हैं और सभी अपने को कलाकारो की सच्ची हितैषी कहती है ये बाद दीगर है वो आज तक राय उमानाथ प्रेक्षागृह की बदबू तक दूर नही करा पाई। लखनऊ, बनारस, बरेली, इलाहाबाद, आगरा और कानपुर को छोड़ दे तो शायद कहीं भी ढंग के ऑडिटोरियम तक की मांग नही उठा पाई। कहने को अब प्रदेश में हर साल दसियों फिल्मे शूट हो रही हैं सैकड़ो कलाकारों को खूब मौके भी मिल रहे है मगर बावजूद इसके जब सबसे मुश्किल दौर आया तो कलाकार भूख से मरने और इधर उधर भागने को मजबूर है। फ़िल्म बंधु बना तो लगा था अब सब सही होगा मैं ये तो नही कहता कि इससे कुछ नही हुआ निश्चित ही बहुत कुछ हुआ है।

बहुत सारे फ़िल्म मेकर को इससे बहुत कुछ मिला है। सुना है फ़िल्म बंधु के पास इस समय करोड़ों का फण्ड भी है भाई हर टिकट पे 50 पैसे या 1रुपये उसके खाते में जो जाते हैं। क्या ये बेहतर नही होता कि इसी फंड्स में कुछ फंड्स फ़िल्म, टेलीविजन और थियेटर से जुड़े हुए लोगो के कल्याण के लिए भी निर्धारित किया जाता। जो उनके बुरे समय मे सहायता के रूप में दिया जाता? हम लोगो को तनख्वाह नही मिलती, न ही हर महीने का कोई फिक्स आमदनी होती है। आये तो आ गए नही तो कई महीने खाली बैठे हैं। मगर ऐसा नही हमारे परिवार नही। हम लोग कुछ महीने की आमदनी को सहेजकर पूरे साल तक चलाते हैं और नियमानुसार टैक्स भी देते आये हैं मगर आज जब कोरोना की वजह से सब बन्द हो गया है तो क्या ये सरकार की ज़िम्मेदारी नही की वो हमारे बारे में भी सोचे।

मित्रो सरकार में बैठे लोग अंधे और बहरे होते है वो दूसरों की आंखों और कानों से देखते सुनते हैं हमारे असोसिएशन्स ऐसे ही सीकड़ों और हज़ारों आंख और कान में से एक हैं पर जब ये भी अंधे और बहरे हो जाएं। इनके पदाधिकारी ठेकेदार ज़्यादा और इंसान कम हो जाये तो फिर आज जैसी ही हालत होना कोई आश्चर्य नही। मेरी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद बहुत से लोगो को मिर्ची लगेगी। बहुत को बर्नाल।। मगर मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ता। तुम जब भी वामपंथी, संघी, समाजवादी, कांग्रेसी और दलाल ज़्यादा हो जाओगे हम तुम्हे ऐसे ही मिर्ची लगाकर इंसान और कलाकार ज़्यादा बनायेगें। एक अच्छा इंसान और एक सच्चा कलाकार होना बहुत मुश्किल है। थू है तुम जैसे असोसिएशन पर जिनके होते कलाकार आत्महत्या कर लेता है। थू है तुम पर तुम्हारे होते फ़िल्म बन्धु निष्क्रिय पड़ा है थू है तुम पर आज भी मुम्बई के मठाधीस लोकल कलाकारों का पैसा मारकर भाग जाते हैं।

जिसको ज़्यादा मिर्ची लगे वो ये बताये की कैसे थियटर से जुड़े सारे ठेकेदार आज लखपती है और कलाकार कटोरापति? क्यू पिछले कई वर्षों से बली अपनी किस्मत को रो रहा है? क्यो आज भी कलाकार आर्थिक तंगी से मर जाता है? फ़िल्म बंधु में कलाकारों के कल्याण के लिए अलग से फण्ड निर्धारित करने की मांग आज तक क्यों नही की गई? CAA के विरोध में धरना देने वाले आज किस बिल में है उन्होंने इन सब के लिए कभी धरना क्यो नही दिया? कोरोना के इस सबसे मुश्किल दौर में आपने कितने कलाकारों की सहायता की? उन्हें इस समय आर्थिक सहायता देने के लिए आपने किससे क्या मांग की? यहां तक अपने सदस्यों से फोन कर आपने कितनो का हाल पूछा? कितनो को अपने राशन दिया कितनो को मास्क या सिनेटाइजर दिया??
मैं व्यक्तिगत रूप से एक नए एसोसिएशन बनाने की घोषणा करता हूँ जो उपरोक्त सभी काम करने का वचन देता है। और जब तक इनमे से ज़्यादातर मांग पूरी नही हो जाती मैं चैन से नही बैठूंगा।
अगर सहमत हो तो शेयर करे और सहयोग के लिए आगे आये।

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