मजदूर रिफॉर्म नहीं जानता
उसे नहीं पता
आत्मनिर्भरता का मतलब
फॉर्मल/इन फॉर्मल सेक्टर
उसे नहीं पता
जीडीपी और ग्रोथ
इकानॉमी और सेंसेक्स
उसे कुछ नहीं पता
बड़ी बड़ी बातों के बीच
इस बड़ी त्रासदी के बीच
उसे केवल यही पता है
कि उसे इज्जत की रोटी नहीं मिली
इज्जत छोड़ देने पर भी नहीं मिली
उसे पता है कि उसका गांव
उसे देगा ठिकाना
उसने जाना कि ये रंगीन शहर
हैं सच में मरे हुए
उसने जाना कि बिस्कुट
जान बचाने की चीज है
उसने जाना कि जिस सड़क को
बनाया था उसने फर्राटेदार गाड़ियों के लिए
उनपर पैदल चल के भी गांव
पहुंच सकता है
उसने जाना कि बराबरी और हक झूठ है
उसने जाना की राजनीति
उनकी भूख का भी करती है सौदा
उसने जाना कि दरअसल
वह है अभिशप्त और निष्प्रयोज्य
कितना सिखा गया ये संकट
अब वह गांव वापस लौट रहा है
उसने जानी है अब रोटी की कीमत
गांव उनके इंतजार में हैं
खेत खलिहान और बूढ़े पेड़
तक रहे हैं उनकी राह
अब थकान वहीं उतरेगी
अब ज़ख्म भरेंगे वहीं
अब नहीं जाएंगे वे शहर
अभी भूलने में बहुत वक्त लगेगा
उन्हें उम्मीद है कि बदल जाएंगे शहर
कोई बड़ा रिफॉर्म होगा