“वियोगी होगा पहिला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर ऑखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान।”
बही होगी कविता अनजान।”
प्रकृति की महासभा का कुशल वक्ता– कवि जिस मनोदशा में लिख रहा होता है वह गुणात्मक शब्द-शैली के साथ-साथ मन के भीतर के सभी रसों को एक पोटली में रख इस प्रकार से निचोड़ता है जिस प्रकार से फटे दूध से मक्खन, और पोटली के भीतर से जो रस निकलता है वह जीवन का मात्र एक क्षणिक अंतराल होता है। इस अंतराल को पकड़ने की चाह ही जीवन का वास्तविक संघर्ष है। इसे विपरीत अर्थ में विरक्ति कह सकते हैं और विरक्ति की शक्ति का आत्म-संघर्ष ही मनुष्य को वियोगी बना देता है और जब मनुष्य वियोगी बनता है तो वह एकांत की तलाश में कस्तूरी के मृग की तरह जीवन के यथार्थ को खोजता है।
साहित्य असल में जीवन का वास्तविक यथार्थ श्वेत-पत्रों पर,श्वेत रंग में ही बिखरा होता है और हम उसे अपनी स्याह लिखावट पर ढूंढ रहे होते हैं।
जब वियोग एकांत की परिधि के भीतर प्रवेश करता है एकांत का वियोग के साथ तादात्म्य स्थापित हो जाता है और मनुष्य स्वयं से आत्म-साक्षात्कार करने लगता है। वह विधाता की इस सृष्टि को भीतर से महसूस करता है और सृजन के पथ पर अग्रसर होता है।
कविवर पंत प्रकृति की महासभा के एक ऐसे वक्ता थे जिनका मौन भी प्रकृति की विविध संवेदनाओं को लेकर भावी-जगत को निमंत्रण-सा देता प्रतीत होता है।
पंत जी का कवि मन कभी लहरों संग जीवन और जगत के मध्य नौका-विहार करता तो कभी खग-वृंदों से पूछता कि धरती पर प्रकाश की पहली किरण के आगमन की सूचना मनुष्यों से पहले तुम्हें कैसे लग जाती है। आकाश के गर्भ से जीवन की ऊर्जा के साथ परिवर्तन का सृष्टि चक्र सृजन और विसृजन के साथ मोह के पाश में जकड़ने के लिए कई संभावनाओं को तलाश करता है परंतु जिनका प्रकृति से तादात्म्य स्थापित हो जाता है वह अतीत को विसृजित कर जीवन मोह का त्याग कर पुनर्सृजन में मग्न रहते हैं।
प्रकृति के सुकुमार कवि कविवर पंत प्रकृति के लिए समर्पित थे। उनकी कल्पना पल्लव-सी कोमल, वीणा की तरह गुंजन करती रागात्मक ग्रंथि के बंधनों को शिथिल करती हुई अज्ञात के प्रति ज्ञात का रहस्यमय आलोक स्थापित करती है।
पंत जी हम सबको हमेशा याद रहेंगे। क्योंकि पंत जी की देवी-माँ-सहचरी-प्राण सब का मूल प्रकृति में ही तो निहित है और आज हम सबको भी प्रकृति से पंत जी जैसा ही स्नेह स्थापित करना होगा क्योंकि यह वर्तमान के यथार्थ का परिदृश्य है। यही भविष्य की नियति भी होगी।