जहाँ ये खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है। अभिनय की दुनिया में सारे जंजीरों को तोड़ते हुए लोकप्रियता की ऐसी दीवार खड़ी कर दी है इन्होंने जिसके पार जा पाना मुश्किल ही नहीं अब नामुमकिन सा लगता है। अपने करियर की शुरुवाती दिनों में असफलता का स्वाद लेने वाले इस कलाकार ने बाद में सफलता का ऐसा पान चखा कि अच्छे-अच्छे निर्माता/निर्देशकों के अक्ल के बंद पड़े सारे ताले खुल गये। एंग्री यंग मैन के रूप में इस नायाब हीरे की पहचान सबसे पहले हुई। बाद में कॉमेडी से लेकर सोशल मेसेज देने वाली फिल्मों के जरिये सभी तरह के रोल कर अपने अभिनय से ऐसी अमिट छाप दर्शकों के दिलों पर छोड़ी जिसका हर कोई दीवाना है। अभिनय की दुनिया में फिर नायक शब्द मानों उनके लिये काफी छोटा सा पड़ गया तब वे महानायक बने। हिंदी सिनेमा के शहंशाह होने के साथ ही साथ अपने मुक़द्दर के सिकन्दर भी हैं। तभी तो पाँच दशकों से बच्चे, बूढे और जवान सभी के दिलों पर एक समान राज करने का बदस्तूर सिलसिला अब भी जारी रखा है। यूं तो फिल्म पिंक में इन्होंने हमें बतलाया की नो का मतलब केवल नो होता है। लेकिन अपने किसी भी प्रोजेक्ट/काम के लिए इनके डिक्शनरी में मानों नो शब्द है ही नहीं। हर काम कों बड़ी तन्मयता और शिद्दत के साथ करते ही जा रहें हैं। अपने फिल्मी सफर में तमाम उतार चढ़ाव को देखते हुए 77 साल की उम्र में भी वे बेहिसाब ऊर्जा के साथ काम करते नज़र आते हैं। जिससे उनका कहना लाज़मी ही है कि बुड्ढा होगा तेरा बाप। सिनेमा के बड़े पर्दे से लेकर टीवी के छोटे पर्दे तक सभी जगह इस उम्र में भी धमाल मचा रखा है। ऐसे अदभुत, अतुलनीय प्रतिभा के धनी अभिनेता अमिताभ बच्चन जी को उनके जन्मदिवस (11 अक्टूबर 1942) की बहुत बहुत शुभकामनाएं। देर से ही सही मगर हाल ही में दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी इन्हें सम्मानित करने की घोषणा हुई है। जो हम जैसे सिने प्रेमियों के लिए बड़े ही खुशी की बात है। अमिताभ बच्चन जी के जन्म पर उनके पिता प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन जी ने एक कविता लिखी थी जो आप सभी के समक्ष है-

फुल्ल कमल,
गोद नवल,
मोद नवल,
गेहूं में विनोद नवल।
बाल नवल,
लाल नवल,
दीपक में ज्वाल नवल।
दूध नवल,
पूत नवल,
वंश में विभूति नवल।
नवल दृश्य,
नवल दृष्टि,
जीवन का नव भविष्य,
जीवन की नवल सृष्टि

संस्मरण: अमिताभ पोस्टर और मैं

बात उन दिनों की है जब मैं कक्षा नौवीं में पढ़ता था। दशहरे का समय था। हर बच्चे की तरह ही मैं भी मेले में जाने के लिए बड़ा उत्सुक था। पूरे 20 रुपए उस वक्त मैंने बड़ी मुश्किल से इकठ्ठे किए थे। कारण मेले में जाकर दूसरे बच्चे की तरह मिठाई खाने या फिर झूले पर चढ़ने या फिर कोई खिलौने खरीदने का मन नहीं था। बल्कि अमिताभ की एक बड़ी सी फोटो, पोस्टर के रूप में खरीदकर उसे अपने कमरे में लगाने की थी। साथ ही बहुत से ग्रीटिंग्स भी लेने का मन बना रखा था। उन दिनों में आज की तरह मोबाइल पर गूगल कर झट कोई भी पिक डाउनलोड करने की फेसेलिटी नहीं थी। न हीं यूट्यूब से किसी भी गाने को तुरंत देख लेने की सुविधा। फिल्मी गाने के लिए चित्रहार और रंगोली से ही हमारा सामना हफ्ते में एक बार होता था। और फिल्म के लिए तो हर संडे शाम 4 बजे का बेसब्री से इंतज़ार रहता था। इन सबमें अमिताभ से रूबरू होने का कम ही मौका मिलता था। तब जब मैं मेले से अमिताभ की बहुत सी ग्रीटिंग्स और एक बड़े पोस्टर को लेकर सुबह का निकला शाम को घर पहुंचा तो सबसे पहले मेरी घर पर अच्छी खातिरदारी हुई। क्योंकि दो दिन बाद से मेरे एक्जाम शुरू थे और मैं अमिताभ के पोस्टर के चक्कर में पूरा दिन घूमता रहा था। पिताजी ने जब मेरे हाथ में अमिताभ के पोस्टर देखें तो गुस्से में उसे लेकर फाड़ दिया और मेरे घर के बगल में लगभग 20 फीट नीचे गड्ढे में उसे फेंक दिया। अपनी खातिरदारी से ज्यादा मुझे इस बात का दुख हो रहा था कि एक तो बड़ी मुश्किल से पोस्टर लाया था और उसे भी बड़ी बेरहमी से फाड़ दिया। बिन मेरे कमरे की शोभा बढ़ाए ही अमिताभ की नम आंखो से भावभीनी ऐसी विदाई होगी और वो भी अपने आँखों के सामने ही ऐसे दृश्य की कल्पना तो मैंने कभी की ही नहीं थी। अमिताभ ने भले ही अपनी फिल्म में ये कह दिया कि मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता। किंतु उनके पोस्टर के टुकड़े कों भला मैं कैसे वहाँ छोड़ सकता था। इधर ज्योंही पिताजी सब्जी लेने मार्केट गए। तो मैं समय को जाया न करते हुए बड़ी तेजी के साथ सीढ़ी को गड्ढे में डालकर उसमें से अमिताभ के फटे हुए पोस्टर के एक-एक टुकड़े कों ढूंढकर वहाँ से निकालकर वापस ले आया। और उसे टेप से एक बड़े गत्ते के ऊपर चिपकाकर अपने कमरे में लगा दिया। बाद में जब पिताजी ने अगली सुबह मेरे कमरे में जब अमिताभ की वही फोटो लगी देखी तो मेरी ओर देखकर वे मुस्कुरा रहे थे। इस घटना के कुछ वर्षों बाद टीवी पर एक दिन स्लम डॉग मिलेनियर फिल्म आ रही थी। उसे हमारे घरवाले सभी एक साथ बैठकर देख रहे थे। जिसमें कुछ इसी तरह की घटना थी। एक बच्चा जो अमिताभ का बहुत बड़ा फैन होता है मगर जब उसका दोस्त उसे टोयलेट में ही बंद कर देता है तो वह अमिताभ से मिलने के लिए कैसे जाता है आप सभी को पता ही है। जब जब ये फिल्म किसी चैनल पर दुबारा आई या फिर किसी कारण से अमिताभ का जिक्र होता है तो इस घटना की याद आ ही जाती है और सभी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान।

प्रमुख फिल्में-
सात हिंदुस्तानी, आनंद, जंजीर, अभिमान, सौदागर, चुपके चुपके, दीवार, शोले, कभी कभी, अमर अकबर एंथनी, त्रिशूल, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, मि. नटवरलाल, लावारिस, सिलसिला, कालिया, सत्ते पे सत्ता, नमक हलाल, शक्ति, कुली, शराबी, मर्द, शहंशाह, अग्निपथ, खुदा गवाह, मोहब्बतें, बागबान, कभी खुशी कभी ग़म, ब्लैक, वक्त, सरकार, बंटी और बबली, चीनी कम, भूतनाथ, पा, सत्याग्रह, शमिताभ, पीकू, पिंक, 102 नॉट आउट, ठग्स ऑफ हिंदुस्तान, साई रा नरसिम्हा।

सबके चहेते अमिताभ की अपनी पसंद-

अभिनेता- एल पचिनो, दिलीप कुमार, मार्लिन ब्रैन्डो, रॉबर्ट डी निरो, शिवाजी गणेशन, उत्तम कुमार

अभिनेत्री- वहीदा रहमान

निर्देशक- बिमल रॉय, गुरुदत्त, महबूब खान, राज कपूर, ऋषिकेश मुखर्जी, सत्यजित रे

कवि- रवीन्द्रनाथ ठाकुर, हरिवंशराय बच्चन

फ़िल्में- अनुपमा, चारुलता, गंगा जमुना, गॉन विद द विन्ड, काग़ज़ के फूल

गायक- मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मुकेश

कुछ रोचक बातें-

* अमिताभ का नाम पहले इंकलाब रखा गया था लेकिन उनके पिता के साथी रहे कवि सुमित्रानंदन पंत जी के कहने पर उनका नाम अमिताभ रखा गया ।

* यदि हरिवंश राय बच्चन जी अपना उपनाम ‘बच्चन’ नहीं करते, तो आज वह ‘अमिताभ श्रीवास्तव’ कहलाते। अब बच्चन ही उनके परिवार के समस्त सदस्यों का उपनाम बन गया है ।

* फिल्म ‘जंजीर’ अमिताभ से पहले कई बड़े अभिनेताओं को ऑफर हुई थी जिसमें मशहूर अभिनेता राजकुमार भी शामिल थे लेकिन राजकुमार ने इस फिल्म को यह कहकर ठुकरा दिया था कि डायरेक्‍टर के बालों के तेल की खुशबू अच्‍छी नहीं है।

* प्रख्यात पटकथा लेखक सलीम खान के पिता ने लगभग 32 वर्ष पुलिस में नौकरी की। सलीम के पिता बेहद सख्त और अनुशासन प्रिय थे।अपने पिता से प्रेरित होकर ही सलीम खान जी ने जंजीर के पुलिस इंस्पेक्टर नायक का किरदार गढ़ा था।

* फ़िल्म ‘जंजीर’ के सेट पर जब अमिताभ बच्चन और प्राण परस्पर सामने आए, तब प्राण ने निर्देशक प्रकाश मेहरा से कहा- “प्रकाश, यह लड़का अपनी आवाज़ और बेधती हुई आँखों से आधा मैदान मार लेता है। साथ ही यह घोषणा की थी कि यह कलाकार एक दिन ‘सुपर स्टार’ बनेगा।

* 70 और 80 के दौर में फिल्‍मी सीन्‍स में अमिताभ बच्‍चन का ही आधिपत्‍य था। इस वजह से फ्रेंच डायरेक्‍टर फ़्राँस्वा त्रुफ़ो ने उन्‍हें ‘वन मैन इंडस्‍ट्री’ तक करार दिया था।

* फिल्मों कों छोड़कर जब अमिताभ ने राजनीति को अपनाया तो तबके प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मनमोहन देसाई ने कहा था कि अमिताभ के बगैर फिल्मों के बारे में सोचा ही नहीं जा सकता।

* जून 2000 में वे पहले ऐसे एशिया के व्‍यक्ति थे जिनकी लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय में वैक्‍स की मूर्ति स्‍थापित गई थी।
(जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से)

आइये सुनते हैं अमिताभ बच्चन के फिल्मों से कुछ बेहतरीन संवाद (नीचे वीडियो में)

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