23 मार्च 1910 को उत्तरप्रदेश के फैजाबाद के अकबरपुर में जन्में। सात सूत्रों के जनक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की आज 53 वीं पुण्यतिथि है। 12 अक्टूबर 1966 में इन्होंने दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल जो वर्तमान में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के नाम से जाना जाता है में अंतिम साँस ली।  इनका दिया हुआ सिद्धांत समाजवाद से सम्बंधित होने के कारण लोहिया सिद्धांत भी कहलाता है। साल 1932 में नमक सत्याग्रह विषय पर अपना शोध प्रबंध बर्लिन विश्वविद्यालय से पूर्ण किया और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
17 मई 1934 ई० को पटना में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में देश के समाजवादी अंजुमन-ए-इस्लामिया हॉल में इकठ्ठे हुए जहाँ इन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना करने का निर्णय लिया। इस प्रकार अक्टूबर 1934 ई० में बम्बई में कॉंग्रेस समाजवादी दल की स्थापना हुई।
1939 ई० में ‘शस्त्रों का नाश’ हो यह प्रसिद्ध लेख इनका प्रकाशित हुआ। जनवरी 1947 ई० में लोहिया ने नेपाली राष्ट्रीय कॉंग्रेस को स्थापित करने तथा राणाशाही के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारम्भ करने की पहल की। इसके अलावा 1957 ई० में ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन शुरू किया।
लोहिया अनेक सिद्धांतों , कार्यक्रमों और क्रांतियों के जनक रहे हैं। वे सभी अन्यायों के विरुद्ध एक साथ आक्रमण करते हैं। इन्होंने एक साथ सात क्रांतियों का आह्वान किया। वे सात क्रांतियाँ थीं :
1. नर-नारी की समानता के लिए क्रांति
2. अस्त्र-शस्त्र के ख़िलाफ़ और सत्याग्रह के लिए क्रांति
3. निजी जीवन में अन्यायी हस्तक्षेप के खिलाफ और लोकतंत्रीय पद्धति के लिए क्रांति
4. विदेशी पराधीनता के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता तथा विश्व लोक राज के लिए क्रांति
5. वर्ण और अर्थके भेद के ख़िलाफ़क्रांति
6. संस्कारगत, जन्मगत जातिप्रथा के ख़िलाफ़ और पिछड़ों को विशेष अवसर देने के लिए क्रांति
7. निजी पूंजी की विषमताओं के ख़िलाफ़ तथा आर्थिक समानता के लिए एवं योजना द्वारा पैदावार बढ़ाने के लिए क्रांति
ये सात सूत्रीय क्रांति कहलाती हैं। ‘गिल्टी मैन एंड इंडियाज पार्टीशन’ इनकी पुस्तक है। जो हिंदी में ‘भारत विभाजन के गुनहगार’ नाम से अनुदित हुई है। इस पुस्तक में भारत विभाजन पर अपना विचार प्रकट किया गया है। इसके अलावा डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कई पुस्तकें लिखी।
अंग्रेजी हटाओ, इतिहास चक्र, देश विदेश की नीति कुछ पहलू, धर्म पर वक दृष्टि, भारतीय शिल्प, मार्क्सवाद और समाजवाद , समदृष्टि, समलक्ष्य, समबोध, रागजिम्मेदारी की भावना, अनुपात की समझ, समाजवादी चिंतन, हिन्दूबनाम हिन्दू और संसदीय आचरण। ये इनकी रचना धर्मिता रही है।
लोहिया ने जो सिद्धांत दिए उनके आधार पर उन्होंने विचार भी दिए ये विचार ‘लोहिया का विचार दर्शन’ नाम से भी जाना जाता है।
सम्पूर्ण आजादी, समता और स्वतंत्रता, सम्पन्नता, अन्याय के विरुद्ध जेहाद और समाजवाद की फ़िजा इन रूपों में लोहिया ने हमेशा ही विश्व नागरिकता का सपना देखा था। ये मानव मात्र को किसी देश का नहीं बल्कि विश्व का नागरिक मानते थे। लोहिया गाँधी जी के सत्याग्रह और अहिंसा के अखण्ड समर्थक थे। लेकिन गाँधीवाद को वे अधूरा दर्शन मानते थे। लोहिया समाजवादी थे लेकिन मार्क्सवाद को भी एकांगी मानते थे। वे राष्ट्रवादी थे लेकिन विश्व सरकार का सपना देखते थे। सच तो यह है कि लोहियावाद, गाँधीवाद और मार्क्सवाद के बीच की कड़ी राम मनोहर लोहिया थे। लोहिया आधुनिकतम विद्रोही एवं क्रांतिकारी थे लेकि  शांति व अहिंसा के अनूठे उपासक भी थे। लोहिया मानते थे कि पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों एक दूसरे के विरोधी होकर भी एकांगी हैं, अपूर्ण है, हेय है।
लोहिया ने मार्क्सवाद और गाँधीवाद दोनों विचार धाराओं को अपूर्ण माना है। इनके अनुसार मार्क्स पश्चिम के प्रतीक हैं और गाँधी पूर्व के प्रतीक हैं। वे इस पश्चिम व पूर्व की खाई को पाटना  चाहते थे। लोहिया इसके साथ यह भी मानते थे कि समाजवाद के बिना प्रजातंत्र अधूरा है। प्रजातंत्र व समाजवाद दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
लोहिया के विचारों में एक संतुलन व समन्वय का भाव देखा जा सकता है। वे विश्व शांति और विश्व संस्कृति की स्थापना के आदर्श से संचालित थे। लोहिया समस्त विश्व को युद्ध और बीमारी से मुक्त देखना चाहते थे। लोहिया की आत्मा विद्रोही थी। अन्याय का तीव्रतर प्रतिकार उनके कर्मों और सिद्धांतों की बुनियाद रही है।
लोहिया नाम लेने का अर्थ है- अंग्रेजी हटाओ, जातितोड़ो, दाम बांधों, पिछड़ों को विशेष अवसर दो, खर्च की सीमा बांधों, पब्लिक स्कूल की समाप्ति करो, हिमालय बचाओ, सम्पूर्ण तथा सम्भव बराबरी और तटस्थ विदेश नीति।
लोहिया ने अपनी पुस्तक मार्क्स, गाँधी और समाजवाद में अपने समाजवादी विचार प्रस्तुत किए हैं। असल में लोहिया मार्क्सवाद और गाँधीवाद के बीच का रास्ता निकालते हैं। इन्होंने दोनों विचारधाराओं के मध्य समन्वय का मार्ग अपनाया है। लोहिया का विचार था कि गाँधीवादी सत्याग्रह तथा आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों में विकेंद्रीकरण को अपनाने से ही मार्क्सवाद का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। डॉक्टर लोहिया धर्म तथा दक्षिणपंथ व राजनीति को मिलाने के पक्षधर नहीं थे क्योंकि इससे साम्प्रदायिक सद्भाव में तनाव और कड़वाहट पैदा होती है। डॉक्टर लोहिया के पाँच स्तम्भीय विचार हैं – ग्राम , मंडल, प्रांत, केंद्र सरकार तथा विश्व सरकार। ये पांचों स्तम्भ व्यवसायिक लोकतंत्र के आधार पर कार्य करे ऐसा लोहिया का मानना था।  #डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर उनकी पवित्रात्मा को शत शत नमन एवं श्रद्धांजलि।

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