poem wo dekhti hai sapne

वो देखती है सपने,
रात रात भर जाग के,
चाँद तारों को आसमां में निहारते,
वो देखती है सपने ।

वो देखती है सपने,
अपने पिया से मिलन के,
अपने विह्वल मन को समझाते,
वो देखती है सपने ।

वो देखती है सपने,
साजन की आँखों में,
अपनी हीं तस्वीर झीलमिलाते,
वो देखती है सपने ।

वो देखती है सपने,
प्रेमी की बाहों में,
सपनों के झूला झूलते,
वो देखती है सपने ।

वो देखती है सपने,
उनके मीठे अल्फाजों में,
अपने लिए गीत गुनगुनाते,
वो देखती है सपने ।

वो देखती है सपने,
उनके पहले चुम्बन में,
अपने लिए हीं उनको मचलते,
वो देखती है सपने ।

वो देखती है सपने,
साजन के घर आँगन में,
अपने संसार को सजते संवरते,
वो देखती है सपने ।

वो देखती है सपने,
हाँ, वो देखती है कुछ,
ऐसे हीं सुन्दर सपने ,
वो देखती है सपने ।

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