वीर सपूत

माँ तिरंगे में लिपटकर
जिस दिन में लाया जाऊँगा,
तू उस पल रोना नहीं,
माँ तू उदास होना नहीं।

माँ मैं जब गहरी नींद में सो जाऊँ
तू मीठी लोरी गा देना,
तू हाथ प्यार का देना फेर
ताकि हो संतृप्त मैं,
चिर निद्रा में सो जाऊँ,

पर तू उस पल रोना नहीं,
माँ तू उदास होना नहीं।

माँ, वीर सपूतों की गाथा
सुना कर तूने पाला है
अब मैं भी एक गाथा हूँ,
जिसे कोई जननी सुनाएगी,

पर तू उसे पल रोना नहीं,
माँ तू उदास होना नहीं।

जब हर आंगन झूमे खुशियों से
जब खुशहाल हर परिवार दिखे,
तो तू जान लेना माता, मैं कहीं गया नहीं
मैं हूँ तेरे आसपास, मैं हूँ तेरे आसपास

पर तू उस पल रोना नहीं
माँ तू उदास होना नहीं।

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7 thoughts on “कविता : इच्छा वीर सपूत की”

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