महात्मा गाँधी ने अपने विचारों को खुद पर और समाज पर लागू किया था। उन्होंने विचार और व्यवहार में अद्वैत स्थापित किया। वे शब्द और कर्म की एकता के कारण जाने जाते हैं इसीलिए उनका महत्व बढ़ जाता है। उक्त आशय का विचार बुधवार को गाँधी जयंती के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.अनिल कुमार राय ने व्यक्त किया। वे नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया द्वारा आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। प्रो.राय ने कहा कि आज के समय में किसी भी क्षेत्र में चाहे राजनीति हो, प्रशासन हो, मीडिया या शिक्षण संस्थान हो कहीं भी शब्द और कर्म की एकता नहीं दिखती। गाँधी जी पूरे जीवन में शब्द और कर्म के प्रति पूरी प्रतिबद्धता के साथ खड़े रहे। उन्होंने कहा कि आज के समय में हर जगह भाषाई छल का आचरण हो रहा है, गाँधी जी में भाषाई छल नहीं था। उन्होंने कहा कि गाँधी जी पर हम तब तक विचार नहीं कर सकते जब तक अपने विचारों को अपने कर्म और जीवन में क्रियान्वित नहीं कर लेते। आप गाँधी जी के विचारों से सहमत-असहमत हो सकते हैं लेकिन उनके विचार और कर्म में फर्क नहीं कर सकते। स्वतंत्रता के पश्चात गाँधी जी का मानना था कि पूंजीपतियों को तभी तक साथ रखना चाहिए जब तक देश के विकास में उनकी सार्थक भूमिका हो अन्यथा उन्हें अलग कर देना चाहिए। प्रो.राय ने कहा कि भगत सिंह और गाँधी में वैचारिक असहमति के बावजूद एक समानता थी कि दोनों व्यक्ति अपने शब्दों और कर्मों के प्रति ईमानदार और प्रतिबद्ध थे।
मुख्य वक्ता ने इतिहास के तीन महत्वपूर्ण कालखंडों की चर्चा करते हुए कहा कि बुद्ध का समय प्रगति का समय है वहां भी शब्द और व्यवहार में एकता दिखती है। हिंदी साहित्य के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण कालखंड भक्ति काल के संत और भक्त कवियों के यहां भी शब्द और व्यवहार की एकता के मूल्य को महत्व दिया गया। आगे चलकर गाँधी युग में स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं के आचरण में भी शब्द और कर्म की एकता दिखाई देती है। यह तीनों कालखंड हमारे इतिहास के महत्वपूर्ण कालखंड हैं।
संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा में हिंदी विभाग के प्रो. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा कि गाँधी जी के जीवन और विचारों को याद करते हुए उनके संघर्षधर्मी चेतना को याद करना होगा। सत्य और अहिंसा की चेतना अंग्रेजी साम्राज्यवाद के दौर में एक रोशनी का काम करती थी। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि गाँधी जी अंतरात्मा की आवाज को सुनते थे। महात्मा गाँधी के विश्व दृष्टि की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीयों ने साम्राज्य नहीं बनाया बल्कि दिलों को जीता है। हथियार नहीं ज्ञान और तर्क से दुनिया को जीता है महात्मा गाँधी इसके शानदार उदाहरण हैं। संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि पूर्व सांसद रमापति राम त्रिपाठी ने गाँधी जी के सत्य अहिंसा के सिद्धांतों की चर्चा करते हुए उनसे प्रेरणा लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह गीता और रामायण जैसे धर्म ग्रंथ का अनुकरण करते हुए अपने पूरे जीवन भर संघर्ष करते रहे। हम सबको गाँधी जी के सत्य अहिंसा और शास्त्री जी के सादगी का अनुसरण करना चाहिए। संगोष्ठी की अध्यक्षता नागरी प्रचारिणी सभा की उपाध्यक्ष ने किया। इस मौके पर शहर के साहित्यकारों, व गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। संगोष्ठी का संचालन कवि सरोज पाण्डेय ने किया।