दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संवाद भवन में आयोजित ‘हिन्दी भाषा और साहित्य : आलोचना का मूल्य और डॉ. रामचंद्र तिवारी’ विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए हिमाचल प्रदेश के श्री राज्यपाल माननीय शिवप्रताप शुक्ल ने कहा कि आचार्य रामचंद्र तिवारी ने विद्यार्थियों में साहित्य की बुनियादी समझ विकसित की। उनकी शिष्य परंपरा इसका उदाहरण है। उनका कृतित्व विराट है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मलीन संत महंत दिग्विजयनाथ जी तथा सुरति नारायण मणि त्रिपाठी जी की प्रेरणा से आजादी के बाद गोविन्दबल्लभ पंत जी ने गोरखपुर विश्वविद्यालय की नींव रखी। अपने स्थापना काल से ही यह विश्वविद्यालय ज्ञान का कीर्तिमान रचता आ रहा है। इसने देश को बड़े चिंतक व मनीषी दिए हैं, जिनमें से एक हैं आचार्य रामचंद्र तिवारी। वह हिन्दी साहित्य के कीर्ति-स्तम्भ हैं। उन्होंने कहा कि यशस्वी आचार्य रामचंद्र तिवारी के जन्म शताब्दी वर्ष में उन्हें याद करते हुए केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के सहयोग से आयोजित संगोष्ठी हेतु बधाई देता हूँ। उन्होंने कहा कि भारतीय परम्परा में गुरु का स्थान सर्वोच्च है। आचार्य रामचंद्र तिवारी जी के शिष्यों की समृद्ध परंपरा है, जो सफलता व सार्थकता के शीर्ष पर हैं। उनमें से कई आज इस सभागार में मौजूद भी हैं।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में विद्यार्थी पुस्तकों व शिक्षकों से दूर होते जा रहें हैं। इससे उनकी विश्लेषण क्षमता कम होती जा रही है। इंटरनेट से यह कमी पूरी नहीं हो सकती। ज्ञान को ऊपर से नीचे लाने का काम गुरु ही करता है। रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’, गोपीनाथ तिवारी आदि से लेकर आजतक हिन्दी विभाग की समृद्ध परम्परा रही है, जिसके मध्यबिंदु पर खड़े हैं आचार्य रामचंद्र तिवारी। यह विभाग राष्ट्र निर्माण की भूमिका में योगदान देने में हेतु सदैव सक्षम रहा है। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक क्षण है। हम आचार्य रामचंद्र तिवारी की जन्म शताब्दी और विश्वविद्यालय की हीरक जयंती एकसाथ मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि आलोचना, साहित्य की आत्मा होती है।
आचार्य रामचंद्र तिवारी की आलोचना, केवल रचना का विश्लेषण नहीं है। वह साहित्य को लोकमंगल के रूप में देखने और समाज की आवश्यकता के अनुसार मूल्यांकन करना उपयुक्त मानते थे। उन्होंने कहा कि उनका जीवन व चिंतन आज भी प्रेरित करता है। हमें गर्व है कि गोरखपुर विश्वविद्यालय से उनका गहरा संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि मैं आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी में आचार्य रामचंद्र तिवारी की छवि देखती हूँ। हमारे विश्वविद्यालय की गौरवशाली परम्परा में आचार्य रामचंद्र तिवारी का जीवन एवं लेखन वर्तमान युवा शिक्षकों के लिए एक सकारात्मक चुनौती है।
उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. विश्वनाथनाथ प्रसाद तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि दूर्वादल रौदे जाने के बाद, सूख जाने पर भी अपनी ही जीवनी शक्ति से जैसे फिर हरे हो जाते हैं वैसे ही आचार्य रामचंद्र तिवारी जी तमाम संघर्षों के बाद भी बारंबार उठ खड़े होते थे। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जन्म से महान होते हैं और कुछ लोग महानता अर्जित करते हैं। आचार्य रामचंद्र तिवारी जी दूसरे कोटि के विद्वान थे। उन्होंने अपने श्रम और लगन से ऊंचाई हासिल की।
उन्होंने कहा कि आचार्य रामचंद्र तिवारी घोर यथार्थवादी थे। एक बार मैं उनसे घर बनवाने के सिलसिले में कुछ उधार रुपए मांगने गया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि ‘देखो विश्वनाथ, उतना ही रुपया दूंगा, जितना तुम न भी लौटा सको तो मेरा तुम्हारा संबंध खराब न हो।’
उन्होंने कहा कि आचार्य रामचंद्र तिवारी तत्वान्वेषी कोटि के आलोचक थे। उनका अंतः प्रेरणा से किया गया लेखन उत्कृष्ट कोटि का है। उन्होंने कहा कि आचार्य रामचंद्र तिवारी किसी शिविर में शामिल नहीं हुए। मैं उन्हें एक कर्ममय सारस्वत आलोचक मानता हूँ। उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि एवं केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक प्रो. सुनील बाबूराव कुलकर्णी ने अपने संबोधन में कहा कि मैथिलीशरण गुप्त और आचार्य रामचंद्र तिवारी का उद्देश्य एक ही है। वे दोनों, इस धरती को ही स्वर्ग-सा सुंदर बनाने के लिए जीवन-भर प्रयासरत रहे। उन्होंने कहा कि किसी शिक्षक के लिए यह बहुत बड़ा सम्मान है कि जिसका छात्र साहित्य की प्रतिनिधि सभा का अध्यक्ष रहा हो और पद्मश्री से सम्मानित किया गया हो। आचार्य रामचंद्र तिवारी जितने बड़े साहित्यकार थे उतने ही बड़े मनुष्य भी थे। उनकी साधना एवं परिश्रम अनुकरणीय है। चूंकि वह किसी खेमे या शिविर में शामिल नहीं हुए इसलिए उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप महत्व नहीं दिया गया। उन्होंने सभा के समक्ष यह ऐलान भी किया कि केंद्रीय हिंदी निदेशालय की ‘भाषा’ पत्रिका आचार्य रामचंद्र तिवारी पर एक विशेषांक निकालेगी।
उद्घाटन सत्र का स्वागत वक्तव्य हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. कमलेश कुमार गुप्त ने दिया। संगोष्ठी के संयोजक प्रो. विमलेश कुमार मिश्र ने मंच संचालन किया। कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवंत राव ने विधिवत आभार ज्ञापन किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में केंद्रीय हिंदी निदेशालय से प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे, सचिव श्री नत्थूलाल जी, के अतिरिक्त प्रो. चितरंजन मिश्र प्रो. नंदकिशोर पांडे प्रो. श्रीराम परिहार, प्रो.आर एस सर्राजू, प्रो.गोपाल प्रसाद, प्रो. करुणाकर राम त्रिपाठी प्रो. आलोक गोयल प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी, प्रो. शरद मिश्रा, प्रो. अजय गुप्ता, प्रो. अनुभूति दुबे, डॉ. उपेंद्र तिवारी, प्रो. नंदिता सिंह, प्रो. विजय कुमार श्रीवास्तव, प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा, प्रो.सुनीता मुर्म, प्रो.जेबी पांडे, डॉ.संजयन त्रिपाठी, प्रो. विपुला दुबे प्रो. एसएमटी त्रिपाठी, प्रो. प्रेमसागर नाथ त्रिपाठी, प्रो. सुग्रीव तिवारी सहित शहर के तमाम साहित्य प्रेमी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।