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सोच बदलो गाँव बदलो
अब चलो गाँव में।
तभी हम गाँवो को
खुशहाल बना पाएंगे।
और नया हिंदुस्तान
हम मिलकर बनाएंगे।
और गाँवो का इतिहास
एक बार फिर से दोहरायेंगे।

गाँवो की मिट्टी का
कोई जवाब नहीं है।
पैरो में लगती है तो
चलने की शक्ति आती है।
माथे पर लगाओं तो
मातृभूमि बुलाती है।
और दर्द अपना हमें
रो-रो कर सुनती है।।

जितनी भी नदियाँ बहती
जब तक वो गाँवो में।
तब तक उनका जल
शीतल शुध्द रहता है।
जैसे ही शहरो से जोड़ती है
काया उनकी बदल जाती है।
और शहर गाँवो की सोच
इसमें भी दिख जाती है।।

शहर में सिर्फ मकान है
पर आत्मीयता नहीं।
गाँवो में मिट्टी के मकान है
पर आत्मीयता का भंडार है।
खुद के लिए जीना है
तो शहर में रहो।
समाज परिवार के साथ
जीना है तो गाँवो में बसो।।

देखना अगर है स्नेह प्यार
और आत्मीयता को तो।
किसी अंजान से गाँव में
आज भी जाकर देखो।
फर्क तुम्हें दिख जायेगा
और गाँव में मन लग जायेगा।
और धीरे-धीरे गाँव में
रहने का दिल बोलेगा।।

कितने महापुरुषो ने
जन्म लिया गाँवो में।
क्रांति का बिगुल भी
बजा था गाँवो से।
जिंदा दिल रहते है
आज भी गाँवो में।
देश के फौजी भी
आते है गाँवो से।।

खाने को अन्न और सब्जियाँ
आज भी मिलती है गाँवो से।
मेहनत के सारे काम भी
करते है गाँव वाले ही।
फिर भी शोषण करते है
उनका हम शहर वाले।
सोच बदलो गाँव बदलो
चलो अब सब गाँवो को।।

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