bachpan

मैं सबके सामने चिल्ला के रोना चाहता हूँ
मैं फिर इक बार उस बचपन को पाना चाहता हूँ…

न दुनिया की खबर थी तब, न पैसे की तलब थी तब
न बंधन था ज़माने का, न चस्का था कमाने का
वो गुज़रा वक़्त फिर एक बार लाना चाहता हूँ
मैं फिर इक बार उस बचपन को पाना चाहता हूँ…

न एसी था घरों में तब, मगर मैं खूब सोता था
न बिजली थी मगर ठंडी पवन का संग होता था
छतो में फिर से वो तारे, वो चंदा चाहता हूँ
मैं फिर इक बार उस बचपन को पाना चाहता हूँ…

मुझे तपती दुपहरी में माँ आँचल में छुपाती थी
मैं छुप के भागता जैसे ही माँ को नींद आती थी
मगर पीछे से आकर पीट के फिर से ले जाती थी
वही फिर से पिटाई माँ की खाना चाहता हूँ

मैं फिर इक बार उस बचपन को पाना चाहता हूँ…

मेरे नन्हें से कदमों से थकानें सबकी मिटती थी
मगर इस काम के बदले चवन्नी एक लगती थी
मैं फिर इकबार वो दौलत कमाना चाहता हूँ
मैं फिर इक बार उस बचपन को पाना चाहता हूँ…

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