poem esa to sanik he hota hai

न हंसता है, न रोता है
वो रातों को न सोता है
जो जीता है अपने देश के लिये
ऐसा तो केवल सैनिक ही होता है।

वो धीर है, गम्भीर है
निडर है और वीर है
जो दुश्मन का कर दे सफ़ाया
वो ऐसी दोधारी शमशीर है।

है शेर सी दहाड़ वो
हिमालय सा पहाड़ वो
भारत माँ का सच्चा रक्षक
दुश्मन को देता पछाड़ वो।

है भारत माँ की शान वो
तिरंगे की रखता आन वो
हंसते – हंसते हो जाता है
अपने वतन पर कुर्बान वो।

वो है तो हम हैं, गुलिस्तां है
ये धरती है ये हिन्दोस्तां है
हम तो जीते हैं अपनों कि खातिर
उसके लिये “पंवार” सब कुछ भारत माँ है।

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