तू कर सके तो ऐसा क़र
कि नाम हो तेरा काम हो..
तू धूप बन, तू छाव बन
जिसकी जरुरत आन हो ।।
तू आग बन कुछ इस तरह
कि ठण्ड की कोई शाम हो।
तू लौ बने अंधेरों की
जब कोई न मेरे पास हो।
तू क़र सकें तो ऐसा क़र
कि सत्य की पहचान हो ।
तू सच भी हो, तू झूठ भी
तू भू भी हो आसमां भी हो।।
तू ही घाव हो,मरहम भी तू
सर्वस्व तू विराट हो।
कहने पे न भिड़ें कभी
लड़ने पे न लड़ें कभी।
दे सत्य का साथ तू
चाहे बात कितनी पाक हो।।
रहे सदा गतिमान तू
चाहे मेड़ हो, पहाड़ हो
तू घाव दे वो धूप में
तू राम हो तू ही श्याम हो।।।
तू बन सके तो ऐसा बन
कि चंद्र सा महान हो ।
तुझपे गर्व न करे कोई
पर खुद में तू महान हो।।।
Very nice poem by the Author. Many congratulations..
Thank-you soo much sir,it means alot for me.