दो सम्बंधित आत्माएँ …
क्या अलग हो सकती हैं?
कुछ लम्हों के अलगाव से…
जो जुड़ी है, एक दूसरे के भाव से
उन्हें मुक्त रहने दो
उन्हें महसूस करने दो
उन्हें प्रेम की परिभाषा गढ़ने दो
उन्हें रचने दो, एक नया अध्याय
उन्हें पा लेने दो जीवन का पर्याय
दो संबंधित आत्माएँ…
क्योंकि ये आत्माएँ परे हैं
जीवन चक्र से
नित नवीन कर्म से
बोझिल होते प्रति पल से
गिरते हुए मनोबल से
दो संबंधित आत्माएँ….
उस क्षण में मिलती हैं
आलिंगन करती हैं
जब… विस्तृत नभ का कोना कोना
सो जाता है,
थक कर अपने स्वार्थ से
तब जागृत होती हैं ये आत्माएँ
निस्वार्थ भाव से
दो संबंधित आत्माएँ…
क्या मिली है तुम्हें कोई ऐसी आत्मा?
जो गहरी और गहरी हो जाती है तुम में।
जिंदा जिस्म का, मुर्दा बन
बोझ ढोती आत्माएँ
तो भटकती हैं जहान में…!
तुम मिल सको
तुम जान सको
किसी ऐसी आत्मा को
जो बहा ले जाए तुम्हें
इस बनावटी संसार से परे
आनन्द के सागर में
तब बेहिचक डूब जाना तुम
जीवित होने का एहसास कर लेना तुम
क्योंकि…
ऐसी आत्माएँ अविरल हैं
कोई विलक्षण ही होगा
जो पाएगा ऐसी आत्मा से
अपना साक्षात्कार !
