poem aatma phir teri dhdhak na jaye

नयनों का जल ढ़रक ना जाये
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।

नारी अपने मन की बातें,
रहने दे मर्यादा में हीं तू
मत कर बेवजह की बातें,
आग ना लगा तू तन मन में
आज नहीं आयेंगे कान्हा जग में,
द्रौपदी तेरी चीर बढ़ाने।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।

आज लाज खुद की तुझे,
स्वयं हीं बचानी होगी
नहीं बात, अब ललकार से तुझे,
हर दुस्साशन को समझाना होगा
मन को संभाल कहीं फिर वो,
किसी रावण के धोखे में ना आ जाए।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।

अहिल्या सीता पर भी कलंक लगाना,
इस जग की रीत पुरानी रही है
कभी पाषाण सा बन सहना पड़ा है,
तो कभी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी है
शक्ति स्वरूपा चंडी काली बन तांडव कर तू,
प्रमाण नहीं मांगे जग, देख काल सा तुझे घबराए।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।

भरी जवानी में बहक ना जाये,
शील तेरा भंग हो ना जाए
करुण चित्कार से तेरी गूंजे,
अंधियारा धरती का कोना कोई
नहीं अबला कोई अगर मौन तू,
दुर्गा बन असुरों का मर्दन करना होगा ।
नयनों का जल ढ़रक ना जाये
आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये।

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2 thoughts on “कविता : आत्मा फिर तेरी धधक ना जाये”

  1. Beautiful but speaking about the harshest reality of today’s. One must not cross their limit,be it man or woman.We have to respect each other’s boundaries.

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