poem kuch sapne the jo toot gaye

कुछ सपने थे जो टूट गए,
कुछ अपने थे जो छुट गए,

पहले तो कुछ ना आभास था,
यह भी होगा, ना विश्वास था,
पर होनी तो होकर गुजरी,
सब सगे स्नेह से लूट गए,
कुछ सपने थे जो टूट गए |

कुछ आदर्शों की कलियां थीं,
कुछ संघर्षों की फलियां थीं,
पर दगा-ठगाई से हम मरे,
जितने सच थे सो झूठ गए,
कुछ सपने थे जो टूट गए |

अब तक की यही कहानी है,
जीवन लगता कितना बेमानी है,
चुभते रहते कांटे से हर क्षण हैं,
मन के सारे दर्पन फूट गए,
कुछ सपने थे जो टूट गए |

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