देश कई कंपनियां छटनी व बंद होने कि राह पर हैं। दावा किया जा रहा है कि देश में आर्थिक हालात पिछले 6 वर्षों में सबसे निचले पायदान पर है। इस सब के बीच एक खबर ने और सनसनी मचाई हुई है कि देश का नामी पार्ले जी बिस्कुट मंदी के कारण आने वाले दिनों में दस हजार लोगों कि छंटनी करेगा जाहिर है निकाले जा रहे इन कर्मचारियों कि यह एक बङी तादाद है। इस बिस्कुट के बारे में यह भी कहा जाता है कि जहां तक सरकारी नीतियां व सुविधाएं तथा एम्बुलेंस नहीं पहुंची है, उन दूर-दराज के क्षेत्रों में भी यह आसानी से पहुंच बनाने में कामयाब रहा है।

पूरा देश मंदी का रोना रा रहा है। दरअसल इसका एक बङा कारण हम खुद भी हैं। आज हमारे हालात व जरूरत यह नहीं बताते कि हमें क्या खाना है, वल्कि टीवी बताता है कि हमें क्या और कौन से ब्रांड कि वस्तु को प्रयोग में लाना है। इस लोख के माध्यम से मैं मंदी कि रिपोर्ट को खारिज नहीं कर रहा हूँ, बल्कि यह बताने का प्रयत्न कर रहा हूँ, कि हमारे तौर तरीकों ने भी इसमें उत्प्रेरक की भूमिका अदा की है।

आज पार्ले जी खाना एक हाई स्टैन्डर्ड से नीचे की बात हो गई है। जबसे विदेशी खाद्य वस्तुओं कि उपलब्धता में इजाफा हुआ है। मंहगे ब्रांड कि वस्तुओं का प्रचार देखने लगे हैं। आज दुकानदार के स्टॉक में देख लिजिए पार्लेजी यदा-कदा ही मिलेगा। ज्यादातर अन्य ब्रांड व फिर अत्यधिक मार्जिन वाले बिस्कुट ही मिलेंगे।

अन्य क्षेत्रों पर बेशक मंदी की मार हो सकती है पर पार्लेजी तो अब बहुत लोगों को बेस्वाद लगने लगा है। इस सम्पूर्ण विज्ञापन प्रक्रिया में जब तक बिस्कुट सिर्फ बिस्कुट था तब तक पार्लेजी का कोई सानी नहीं रहा, पर जब से पार्लेजी  का मुकाबला बिस्किट (अन्य ब्रांड, मंहगे बिस्किट) हुआ है, तब से ही इसकी हालत खस्ता होती जा रही है।

आप यदि किसी कपङे की बङी मार्किट में जाएं को दान के कम्बल मिला करते हैं, अर्थात पुण्य के लालच में इस इस तरह के कम्बल को दान में देने से क्या फायदा। इसी प्रकार पार्लेजी के टारगेट ग्राहक अब बदल गए हैं,इनमें या तो पुराने लोग हैं, अथवा दान में देने के लिए मंदिरों में इस्तेमाल होता है, लो बजट वोले कार्यालय में भी चाय संग दिया जाता है। कहीं न कहीं बाजार व ब्रांड तथा स्टेटस के चक्कर में पार्लेजी को ज्यादा संकट का सामना करना पङ रहा है।

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