पुष्पा ढाई अक्षर नाम छोटा है मगर साउंड बहुत बड़ा। क्योंकि पुष्पा अब केवल नाम नहीं ब्रांड बन चुका है और बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़ने के लिए तैयार है। फुल एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी, कल्चर और पारिवारिक इमोशन से भरपूर है पुष्पा द रूल। KGF, बाहुबली और कांतारा जैसी झलक दिखलाई देगी इसमें। एक्शन के मामले में ये वाइल्ड फायर है। लगभग साढ़े तीन घंटे की मूवी कब खत्म होती है पता ही नहीं चलता। एक मिनट के लिए भी फिल्म से ध्यान नहीं हट सकती।
पुष्पा 2 पार्ट 1 की कहानी को आगे बढ़ाता है। अब पुष्पा पूरे सिंडिकेट का बॉस है। नेशनल की जगह इंटरनेशनल खिलाड़ी बन चुका है। पूरी फिल्म की कहानी को हम तीन भागों में रख सकते हैं। पहला शेखावत यानी फहाद फासिल से ईगो की लड़ाई, दूसरा परिवार के सरनेम की चाहत और तीसरा राजनीति में पुष्पा का आगमन। वहीं इसके डायलॉग्स की बात करें तो इसमें थोड़ा अपग्रेड किया गया है।
* पुष्पा नाम सुनकर फ्लॉवर समझे क्या ? फ्लॉवर नहीं वाइल्ड फायर है मैं…
* मेरे हक का कोई भी पैसा हो चाहे चार आना हो या आठ आना पुष्पा का उसूल करेगा वसूल…
* पुष्पा को नेशनल खिलाड़ी समझे क्या? इंटरनेशनल है मैं…
* पुष्पा सिर्फ एक नाम नहीं पुष्पा मतलब ब्रांड…
* ये पहली एंट्री पर बवाल नहीं करता दूसरी एंट्री पर करता है…
* ये कौन आदमी है? इसकी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है। श्री लंका में भी भारत में भी भगवान है के…
* फिल्म के क्लाइमैक्स में गुंडों को पुष्पा यह चेतावनी देना कि अगर वो नहीं माने तो वो उन्हें ‘रप्पा-रप्पा’ करके मारेगा। रप्पा-रप्पा का मतलब यहाँ बहुत बुरी तरह से पिटाई कर जान से मार डालने से है।
ये फ़िल्म का सबसे अहम दृश्य भी है। यहाँ एक्शन लाजवाब है। यूँ तो फ़िल्म पूरी एक्शन से भरी पड़ी है। मगर ये लास्ट का सीन जबरदस्त है। यहाँ बाहुबली का ये डायलॉग वाला दृश्य ‘गलत किया देवसेना, औरत पर हाथ डालने वाले की उंगलियां नहीं काटते, काटते हैं उसका गला’ पुष्पा 2 के आगे फीका नज़र आता है। रोंगटे खड़े कर देने वाला दृश्य है यहाँ।
अल्लू अर्जुन की मेहनत पूरे फिल्म में साफ नज़र आती है। विलेन के रूप में फहद फासिल की एक्टिंग भी अच्छी है। रश्मिका मंदाना को जितना भी समय मिला है उसमें अपनी छाप छोड़ी है। पुष्पा मतलब ब्रांड का संवाद उनके द्वारा इस फिल्म में कहलाया है जहाँ फिल्म का टर्निंग पॉइंट है। परिवार के इमोशनल पलों को जोड़ती है। साउथ की फिल्मों की ये खास बात होती है कि वे अपने परिवार, कल्चर, सभ्यता, कला, संस्कृति और धर्म को कभी नहीं छोड़ते न हीं उससे कभी नाता तोड़ते हैं। उन्हें इस बात का गर्व भी है। पुष्पा भी इस पैमाने पर खरी उतरती है। काली माता के रूप में एक दृश्य में अल्लू अर्जुन ने कांतारा की छवि को महसूस कराया है। इस फिल्म में महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण की बात भी प्रमुखता से उठाई गई है। पुष्पा ने अपनी पत्नी श्रीवल्ली की एक छोटी सी इच्छा को पूरा करने के लिए बिना अपनी जान की फिक्र किए CM तक को बदल देता है। वहीं पुष्पा की सौतेली भतीजी से गुंडों ने जब छेड़छाड़ करने की कोशिश की तो उसका काली मां के अवतार में संहार करने का दृश्य फ़िल्म की जान साबित होती है।
गीत संगीत के मामले में पुष्पा अपने पहले पार्ट से कुछ पीछे जरूर नज़र आती है। इसमें थोड़ी और मेहनत की जा सकती थी। फ़िल्म के गानों के बोल हैं-
* होती है फीलिंग्स,
* किसिक-किसिक
* पुष्पा-पुष्पा
* मेरा सामी
* काली महाकाली
मगर जो भी इसके किसिक गाने को नज़रंदाज़ कर रहे हैं बिना फ़िल्म देखें उसकी आलोचना कर रहे हैं। उन्हें फ़िल्म देखने पर पता चलेगा कि पूरा गाना ही इस फ़िल्म का सेंटर पॉइंट है। पूरी कहानी ही इसके इर्द-गिर्द है। इससे इस गाने की अहमियत बढ़ जाती है। वहीं काली महाकाली गाने में हम कांतारा जैसी फीलिंग महसूस करते हैं। इसी गाने के अंत में मेरा सामी गाना जोड़ा है। जो उस पल को और खास बना देता है। पुष्पा-पुष्पा गाने में एक अलग ही स्वैग है। होती है फिलिंग गाने में पति-पत्नी के निजी पलों को बतलाया है।
सिनेमेटोग्राफी और कोरियोग्राफी फ़िल्म की लाज़वाब है। पुष्पा के पहले पार्ट की कमाई को निर्देशक सुकुमार ने इस फ़िल्म को और भव्य बनाने में खर्च किया है। जो साफ-साफ नज़र भी आता है। इस फ़िल्म में निर्देशक राजामौली की छवि को देख सकते हैं।
फ़िल्म का अंत रिश्तों की अहमियत को बतलाता हुआ किसी अनहोनी की सुगबुगाहट देता है। यहीं फ़िल्म के तीसरे पार्ट के आने की सूचना भी सभी दर्शकों को मिलती है। PUSHPA THE RAMPAGE…
बाकी बॉलीवुड में इतना सन्नाटा क्यों है भाई? पुष्पा की दीवानगी देख किसी को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर हो क्या रहा है? तेलुगु भाषा की फ़िल्म हिंदी सिनेमा में आकर छा गई। पहले दिन की कमाई का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया। जहाँ शाहरुख खान की जवान ने 65 करोड़ का रिकॉर्ड बनाया था उसे पुष्पा 2 ने 72 करोड़ के साथ पछाड़ कर खुद को नम्बर वन कर लिया है। अभी तो बहुत से रिकॉर्ड टूटने बाकी है। पुष्पा की आँधी में सभी रिकॉर्ड ध्वस्त हो जाने की उम्मीद है। 5 दिसंबर को रिलीज हुई यह फिल्म किसी हॉलीडे पर नहीं आई। ईद, दशहरा, दिवाली या क्रिसमस की छुट्टी भी नहीं थी। दर्शकों ने खुद ही इस दिन को छुट्टी में बदल दिया। ऐसा पहले केवल रजनीकांत की फिल्मों के लिए ही हुआ था। फ़िल्म जबरदस्त मास एंटरटेनर है। छोटे शहरों और सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल खचाखच भरे पड़े है। लोग पर्दे के सामने आकर डांस कर रहे है। वहीं बुक माई शो में टिकटों की बुकिंग के रिकॉर्ड को भी मल्टीप्लेक्स ने तोड़ डाला है। प्रति घंटे 1 लाख की बुकिंग हो रही है। पहले पार्ट से भी भयानक हाइप दूसरे पार्ट की है।
OTT के समय में दर्शकों को सिनेमा हाल तक कैसे लाया जा सकता है, इस फ़िल्म से सीखना चाहिए। छोटे से बड़े शहर के सभी सिनेमा हॉल भरे हुए है | फ़िल्म अगर मनोरंजन से भरपूर है तो दर्शक खुद खिंचा चला आता है। बाकी आप भी अगर फुल मसाला मूवी का सही मजा लेना चाहते हैं तो फिर इंतज़ार किस बात का पूरे परिवार के साथ जाइए अपने नजदीकी सिनेमाघरों में…
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