फिल्म: कमांडो 3
स्टार कास्ट : विद्युत जामवाल, अदा शर्मा, अंगिरा धर, राजेश तैलंग, सुमित ठाकुर और गुलशन देवैया
डायरेक्टर : आदित्य दत्त
प्रोड्यूसर : विपुल अमृतलाल शाह
ड्यूरेशन : 2 घंटे, 13 मिनट
फिल्म कमांडो 3 पुराने बॉलीवुडिया देशभक्ति प्लॉट पर बनी, कमाल, धमाल एक्शन सीन्स से भरी हुई, प्रभावी बैकग्राउंड स्कोर वाली एक मजेदार फ़िल्म है। पर शर्त यह है कि आप अपना दिमाग घर पर रख कर ही फ़िल्म देखने जाएं।
फ़िल्म की कहानी यह है कि, भारत में बहुत ही बड़ा टेरर प्लॉट प्लान किया है, लन्दन में शेफ के रूप में काम करने वाले आतंकी संगठन से जुड़े बुर्राक अंसारी ( गुलशन देवैया ) के द्वारा। बुर्राक अंसारी, अमेरिका में हुए 9/11 हमले की तरह एक बड़े आतंकी हमले का शिकार भारत को बनाना चाहता है। जिसके लिए उसने आतंकी संगठन के अहलेखानाओ से 20 मिलियन डॉलर का फंड मिला है। इस फिल्म में आतंकी संगठनों के कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर के बारे में भी दिखाया गया है कि किस तरह किसी आतंकी हमला प्लान होता है और उसके लिए फंड की व्यवस्था कैसे होती है। हालांकि यह सब हम पूर्व की कई बॉलीवुड की फिल्मों में यह देख चुके हैं।
अब आतंकी हमले को रोकने के लिए भारत से अंडर कवर एजेंट करनवीर डोगरा ( विद्युत जामवाल ) को लन्दन भेजा जाता है, और साथ ही एक और वेल ट्रेंड एजेंट भावना रेड्डी (अदा शर्मा) को उनकी मदद के लिए करनवीर के साथ भेजा जाता है।
लन्दन में उन्हें साथ मिलता है ब्रिटेन मूल की ऑफिसर मल्लिका ( अंगीरा धर ) एवं अरमान ( सुमीत ठाकुर ) का। उसके बाद यह फ़िल्म बुर्राक अंसारी के आतंकी हमले के प्लान को रोकने के लिए इन चारों के संघर्ष की कहानी को कहती है।
अब बात फ़िल्म के डायरेक्शन की, की जाय तो उसमें बहुत अधिक खामियां नज़र नही आती, खामी अगर कहीं है तो वह है फ़िल्म की कहानी में। कहानी घिसी – पिटी पुरानी कई बॉलीवुड के अलावा हॉलीवुड की कई फिल्मों जैसे सेवन और डार्क नाईट से भी प्रेरित लगती है। कई सारे दृश्य इन फिल्मों से उठाये गये हैं।
पर फ़िल्म बहुत जल्दी से कहानी कहती है। इसलिए फ़िल्म देखते वक़्त दर्शक फिल्म से बोर नही होता, और इसका पूरा श्रेय जाता है फ़िल्म के सिनेमेटोग्राफ़ी और एडिटिंग को जिसे मार्क हैमिल्टन ने बख़ूबी अंजाम दिया है। मुझे फ़िल्म की एडिटिंग काफी टाइट लगी। वह फ़िल्म को बिखरने नही देती , वरना जिस तरह की फिल्म की कहानी है उससे यह फ़िल्म इंटरवल के पहले ही फुस्स हो गई होती।
यदि फ़िल्म के बैकग्राउंड स्कोर की बात की जाय तो उसमें फ़िल्म को दस में से दस नम्बर मिलने चाहिए। जबरदस्त BGM साथ ही फ़िल्म में दिया गया म्यूजिक ही फ़िल्म को आगे बढ़ाने में जिस तरह सहयोग करता है वह बेहतरीन है।
पर फ़िल्म की जान है फ़िल्म में विद्युत् एवं सहकलाकारों के द्वारा किये गए जबर्दस्त एक्शन सीन्स। यकीनन एक्शन डायरेक्टर एंडी लॉग, आलन अमीन व रवि वर्मा ने अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया है। विद्युत् ने मिक्स मार्शल आर्ट और भारतीय मार्शल आर्ट, जिसमे कलरी पायट्टू, ताइक्वांडो, जूजूत्सु आदि शामिल है की सहायता से एक्शन एवं मारधाड़ वाले दृश्यों को अध्भुत रूप से प्रदर्शित कर दिखाया है। विद्युत् को एक्शन करते देख, दर्शक दांतों तले ऊँगली दबाकर उनकी विद्युत् जैसी चपलता भरे एक्शन सीन का आनन्द उठाते हैं, यह फ़िल्म के सकारात्मक पहलुओं में से एक है।
अभिनय की बात की जाय तो विद्युत् , अभिनय के मामले में साधारण एक्टर है। उनसे अभिनय की उत्कृष्ठता की अपेक्षा नही की जा सकती। पूरी फ़िल्म में उन्होंने दो एक एक्सप्रेशन में बने रहकर एक्टिंग की है। पर इसकी कमी उन्होंने एक्शन सीन में पूरी करने की कोशिश की है।
अभिनय का पूरा जिम्मा फ़िल्म के विलेन गुलशन देवैया पर था। जिसे उन्होंने बख़ूबी निभाया है। वे एक ऐसे विलेन के रूप में पर्दे पर आते है जिससे दर्शको को नफरत होने लगती है। वे एक शेफ बने है जो लन्दन में रहता है साथ ही आतंकी संगठनों में कार्य करता है। गुलशन ने अपना पूरा एफर्ट इस किरदार को निभाने में डाला है जो कि लाज़वाब है। वे बॉलीवुड के अच्छे अदाकारों में से एक हैं और उन्हें हम और अधिक फ़िल्मो में देखना चाहते है।
फीमेल लीड की बात की जाय तो, अदा शर्मा पर्दे पर काफी सुंदर लगी है फ़िल्म में अगर उन्होंने एक्टिंग पर थोड़ा और कार्य किया होता तो उनकी सुंदरता में चार चांद लग जाते। “लस्ट स्टोरी” फेम अंगीरा धर ने मिली जुली एक्टिंग की है। चौथे सहयोगी के रूप में कार्य करने वाले सुमीत ठाकुर ने भी ठीक ठाक काम किया है। राजेश तैलंग जो की मंझे हुए कलाकार है उन्होंने अपने छोटे से रोल को शानदार ढंग से निभाया है।
अन्य किरदारों ने भी ठीक ठाक परफॉर्मेन्स दी है।
फ़िल्म में कुछ गम्भीर दृश्य इतने स्टुपिड है कि दर्शकों को हँसी आने लगती है, और साथ ही कुछ विवादास्पद सीन भी है जैसे अखाड़े के पहलवानों द्वारा मिशनरी स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों की स्कर्ट खींचना ,और साथ के पहलवानों द्वारा इसका घृणित कार्य का समर्थन करना, जबर्दस्ती एक धर्म समुदाय के लोगों को देश भक्ति का पाठ पढ़ाने की कोशिश करना जबकि इस देश में धार्मिक उपद्रव फैलाने के मामले में कोई किसी कम नही है।
फ़िल्म की ख़ास बात यह है कि जबर्दस्ती गाने नही भरे गए हैं। परंतु बीच में बेवजह लव ट्राएंगल क्रिएट करने की कोशिश की गई है जो की फ़िल्म की कहानी के हिसाब से बक़वास लगता है।
फ़िल्म का क्लाइमैक्स सीन काफी कमजोर है परंतु देशभक्ति की भावना एवं बैकग्राउंड में वंदे मातरम की धुन डालकर इसे विशेष बनाया गया है।
पर फ़िल्म की विशेष बात यह भी है कि, धार्मिक आतंकवाद के नाम पर युवाओं का ब्रेन वाश कर उन्हें जिहाद के लिए उकसाने वालों की बखिया फ़िल्म में उधेड़ी गई है। यह भी दिखाया गया है कि किस तरह देश का युवा इन आतंकी संगठनों की गिरफ़्त में आकर ऐसे आतंकी कुकृत्यों को अंजाम देने लग जाता है। पर इसका गम्भीर दुष्परिणाम उन युवाओं के परिवारजन पर पड़ता है। फ़िल्म में बहुत ही सहजता पूर्वक एक विशेष धर्म समुदाय के जानकार के द्वारा उनके धर्म से जुड़ी तथ्यात्मक बातें बताई गई है, जिसे सुनकर व समझ के उन भटके हुए युवाओं की आँखे खुलती है और वे सही मार्ग पर वापस आ जाते हैं।
फ़िल्म देश भक्ति से ओत प्रोत कर देने वाली है। यदि आप विद्युत जामवाल एवं कमांडो फ्रेंचाइजी के फैन है तो यह फ़िल्म आप जरूर देख सकते हैं।
यकीनन काफी कमियां मौजूद होने के बाद भी फ़िल्म आपको निराश नही करेगी।
#एक्शन का जबरदस्त डोज़