14 सितंबर से हिंदी पखवाड़ा दिवस शुरू हुआ है तो बदायूं के सभी साहित्यकारो ने एक मत होकर कहा कि आज के दिन ही भारतीय संविधान सभा द्वारा हिंदी को राज्य की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया वरन् बृहत दृष्टिकोण से हिंदी भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने वाली अमृत बून्द है, जो सदियों से भारतीयता को एक सूत्र में पिरोये है। अगर हम में आज भी राष्ट्रीयता और भारतीयता के अंश है तो इसके पीछे की महत्वपूर्ण वजह हमारी मातृभाषा है।
हिंदी भाषा ने हमेशा जोड़ने का काम किया है यही बात भारत पर शासन करने वालों को खटकती रही है। मुग़ल रहे हों या अंग्रेज सभी ने हिंदी भाषा को अपने निशाने पर रखा और उसे कमजोर करने की हर संभव कोशिश की। अंग्रेजों ने अपनी फूट डालने वाली कूटनीति को “नस्लीय श्रेष्ठता से भाषीय श्रेष्ठता” तक आगे बढ़ाया। भारतीय जन में ऐसा नया वर्ग तैयार किया जो रंग से तो भारतीय प्रतीत होता था पर भाषीय और सोच की दृष्टि से अंग्रेजी हितों का पोषण करने वाला।
औपनिवेशिक नीतियों तक तो बात कुछ हद तक हजम होती है पर आज़ादी के 70 वर्षों के बाद भी हम भाषीय श्रेष्ठता की कुटिल नीति को ढो रहे हैं। अंग्रेजों ने जो उस समय भाषीय और नस्लीय श्रेष्ठता का एक बिजनरोपित किया था आज कहीं न कहीं उसने एक विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। भारत में अब दो वर्ग स्पष्ट रूप से सामने दिखाई देने लगे हैं यथा- एक जन सामान्य वर्ग जो हिंदी भाषा जा उपयोग अपनी हर जरूरतों को पूरा करने में करता है। दूसरा अभिजातीय (इलीट) वर्ग जो अपने आपको जान सामान्य से ऊपर बताने हेतु विदेशी भाषा इंग्लिश का प्रयोग करता है।
आज बौद्धिकता की पहचान ही इंग्लिश हो गयी है। अगर आप विचार शून्य है पर फटाफट इंग्लिश बोलने में माहिर हैं तो आप सबसे बड़े ज्ञाता और बौद्धिक व्यक्तित्व के धनि समझे जायेंगे। आपको हर जगह विशेषाधिकार प्राप्त होंगे। सरकारी कार्यालयों में आपके काम जल्दी होंगे, अपने संवर्ग में आपकी तूती बोलेगी।
परिणामस्वरूप हिंदी भाषी व्यक्ति ये देखकर हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है। उसे अपनी किस्मत पर रस्क होने लगता है.. और वह भी भेड़ चाल में शामिल हो अपने बच्चों को इंग्लिश माध्यम वाले विद्यालयों में पढ़ने को भेजने लगता है। अगर आप तुलना करेंगे तो पाएंगे कि हिंदी माध्यम से पढ़ा व्यक्ति, इंग्लिश माध्यम के व्यक्ति से ज्यादा नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सुदृण होता है उसके भृष्ट होने की सम्भावना काम होती है। वह अपने आपको आसानी से समाज के कमजोर वर्गों से जोड़ लेता है।
हिंदी के विशद महत्त्व को देखते हुए हिंदी को आगे बढ़ाने का जिम्मा मेरा , आपका और हम सबका है। हमें हिंदी की प्रभावना हेतु प्रशासन और सरकारों से उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि सरकार में बैठे व्यक्ति स्वयं उसी इलीट ग्रुप से हैं वो कभी नहीं चाहेंगे कि हिंदी का विकास हो।
हिंदी भाइयों और बहिनों से अपील है कि आप अपनी भाषाई हीन ग्रंथि से मुक्त होकर अपने आपको किसी अन्य भाषाई व्यक्ति से पिछड़ा मत समझें , आप में कुछ कर दिखाने की उनसे ज्यादा कुव्वत है , उनसे ज्यादा हिम्मत और हौंसला है… देर है तो खुद के समर्थ को पहचानने की। आओ अपना हाथ बढ़ाओ, साथ चलें और हिंदी को उसके सही स्थान ‘बुलंदियों’ पर ले जाएँ। “जय हिंदी” पीछे यही एक मात्र कारण नहीं था कि आज के दिन ही भारतीय संविधान सभा द्वारा हिंदी को राज्य की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया वरन् बृहत दृष्टिकोण से हिंदी भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने वाली अमृत बून्द है, जो सदियों से भारतीयता को एक सूत्र में पिरोये है। अगर हम में आज भी राष्ट्रीयता और भारतीयता के अंश है तो इसके पीछे की महत्वपूर्ण वजह हमारी मातृभाषा है।
हिंदी भाषा ने हमेशा जोड़ने का काम किया है यही बात भारत पर शासन करने वालों को खटकती रही है। मुग़ल रहे हों या अंग्रेज सभी ने हिंदी भाषा को अपने निशाने पर रखा और उसे कमजोर करने की हर संभव कोशिश की। अंग्रेजों ने अपनी फूट डालने वाली कूटनीति को “नस्लीय श्रेष्ठता से भाषीय श्रेष्ठता” तक आगे बढ़ाया। भारतीय जन में ऐसा नया वर्ग तैयार किया जो रंग से तो भारतीय प्रतीत होता था पर भाषीय और सोच की दृष्टि से अंग्रेजी हितों का पोषण करने वाला।
औपनिवेशिक नीतियों तक तो बात कुछ हद तक हजम होती है पर आज़ादी के 70 वर्षों के बाद भी हम भाषीय श्रेष्ठता की कुटिल नीति को ढो रहे हैं। अंग्रेजों ने जो उस समय भाषीय और नस्लीय श्रेष्ठता का एक बिजनरोपित किया था आज कहीं न कहीं उसने एक विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। भारत में अब दो वर्ग स्पष्ट रूप से सामने दिखाई देने लगे हैं यथा- एक जन सामान्य वर्ग जो हिंदी भाषा जा उपयोग अपनी हर जरूरतों को पूरा करने में करता है। दूसरा अभिजातीय (इलीट) वर्ग जो अपने आपको जान सामान्य से ऊपर बताने हेतु विदेशी भाषा इंग्लिश का प्रयोग करता है।
आज बौद्धिकता की पहचान ही इंग्लिश हो गयी है। अगर आप विचार शून्य हैं पर फटाफट इंग्लिश बोलने में माहिर हैं तो आप सबसे बड़े ज्ञाता और बौद्धिक व्यक्तित्व के धनी समझे जायेंगे। आपको हर जगह विशेषाधिकार प्राप्त होंगे। सरकारी कार्यालयों में आपके काम जल्दी होंगे, अपने संवर्ग में आपकी तूती बोलेगी।
परिणामस्वरूप हिंदी भाषी व्यक्ति ये देखकर हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है। उसे अपनी किस्मत पर रस्क होने लगता है.. और वह भी भेड़ चाल में शामिल हो अपने बच्चों को इंग्लिश माध्यम वाले विद्यालयों में पढ़ने को भेजने लगता है। अगर आप तुलना करेंगे तो पाएंगे कि हिंदी माध्यम से पढ़ा व्यक्ति, इंग्लिश माध्यम के व्यक्ति से ज्यादा नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सुदृण होता है उसके भृष्ट होने की संभावना कम होती है। वह अपने आपको आसानी से समाज के कमजोर वर्गों से जोड़ लेता है।
हिंदी के विशद महत्त्व को देखते हुए हिंदी को आगे बढ़ाने का जिम्मा मेरा, आपका और हम सबका है। हमें हिंदी की प्रभावना हेतु प्रशासन और सरकारों से उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि सरकार में बैठे व्यक्ति स्वयं उसी इलीट ग्रुप से हैं वो कभी नहीं चाहेंगे कि हिंदी का विकास हो।
हिंदी भाइयों और बहिनों से अपील है कि आप अपनी भाषाई हीन ग्रंथि से मुक्त होकर अपने आपको किसी अन्य भाषाई व्यक्ति से पिछड़ा मत समझें , आप में कुछ कर दिखाने की उनसे ज्यादा कुव्वत है , उनसे ज्यादा हिम्मत और हौंसला है… देर है तो खुद के सामर्थ्य को पहचानने की। आओ अपना हाथ बढ़ाओ, साथ चलें और हिंदी को उसके सही स्थान ‘बुलंदियों’ पर ले जाएँ। “जय हिंदी”
(फोटो : ओजस्वी कवि षटवदन शंखधार, कामेश पाठक, पवन शंखधार, सुरेंद्र नाजु, शैलेन्द्र मिश्रा, अचिन मासूम)