भोरे भोरे माई पीठ थपथपा के कहली। ए बाबू उठ हो सरगहि के बेरा हो गईल बा।
हम चिहा के उठनी त थरिया में दही चिउरा रखल रहे। माई कहली ल परसादी खा लअ।
हम कहनी रुकअ दतुवन क के आवतानी।
माई कहली परसादी खाये खातिर दतुवन कईल जरूरी ना होला।
जिउतिया माई के गोड़ लाग के खा लअ। हम बिना मुँहे हाँथे धोवले शुरू हो गईनी।

तले हमार फोन बाजल नींद खुलल हम देखनी त माई के फोन रहे:-

हम- माई प्राणम।

माई-खुश रहस।
सुतल बाड़ का अबे।

हम- हं

माई-उठ के जिउतिया माई के गोड़ लागी ल। सब लोग एहिजा सरगहि खाता।
तुंहुँ रहित तअ त परसादी खइतअ नू।

हम- ए माई कहाँ लिखल बा हमरी भागि में सरगहि। ठीक बा हम नहा धो के गोड़ लाग लेब अऊर बताव पूजा पाठ हो गइल।

माई- हं हो गईल। बाबू काल्ह गईल रहलें तोहरा दिदिया कीहाँ दही चिउरा लेके। उनहूँ के सब समाचार ठीक बा।
फिर कुछ देर बात भईल अऊर माई कहली ठीक बा अब फोन रखतानी ।

हमरी मुँह से बस दू गो शब्द निकलल रहे।
ठीक बा।
प्राणम।
माई खुश रहअ कही के फोन रखी दिहली।

फिर हम किताब उठवनी कुछ पढ़ लिख लिहल जाव। बाकिर मन ना लागल।

हम सोचे लगनी आदमी केतना मजबूर हो जाला गांव से शहर में आ के।
आदमी अपना जड़ से कटी जाला गांव से शहर में आ के।
आदमी आपन तीज तेवहार भूला जाला गांव से शहर में आ के।
आदमी आपन सभ्यता संस्कृति भूल जाला गांव से शहर में आ के।

शहर आज भी गांव के हत्या कर रहल बा।
शहर आज भी गांव के तीज परोजन के मिटा रहल बा।
गांव केतना दयालु ह अऊर शहर केतना निर्दयी भईल जाता दिन ब दिन।
शहर आदमी के रोज भुजरी भुजरी काट रहल बा। शहर आदमी के गँवई थाति के तोप रहल बा।

गांव आज भी आदमी के आदमी से जोड़ के रखले बा। गांव में आज भी आदमियत बसेला।
आज भी गांव में माई अपना बेटा के लमहर उमिर खातिर जिउतिया भूखल बिया।
गांव आज भी अपना संस्कृति सभ्यता तीज तेवहार से जुड़ल बा।

लेकिन गांव के थाति गांव के लईका दूर देश में बालू फांके खातिर मजबूर बाड़ें।

आखिर एकरा खातिर के जिम्मेदार बा उ गांव जवन अपना लइकन के लमहर उमिर के दुआ करता?

कि उ शहर जवन वतानुकुलित घर में बइठ के गांव के घाम में चमड़ी जरावत ओह किसान के आय दुना करे खातिर कानून बनावता?

की उ कानून के घर जवन दुकवन दुकवन धारा खतम करता।
दुकवन दुकवन धारा बहाल करता।

लेकिन ओह कानून के देवता लोगन के लगे एतना समय नईखे की एगो कानून बनावें जवना में ई लिखल होखे की जवन माई-बाबूजी जनम दिहल लो। पालल पोसल लो। ओह लोग के लईका लोग बड़ भइला पर बृद्धाश्रम में रहले पर मजबूर करतालो त ओह लोग के फाँसी के सजा होखे के चाहीं।

ई शहर ह इंहां घर कम मकान जियादे होला।
ई शहर ह इंहां इंसान कम लोग जियादे होला।
ई शहर ह इंहां आज भी महतारी लईका जन्मा के किराया पर पाले पोसे खातिर दे देले।
ई शहर ह इंहां लईका जन्मावे खातिर कोंख भी किराया पर मिल जाला।

फिर इंहां घर कम मकान जियादे ही नु होई।
फिर इंहां बृद्धाश्रम कवनो अचरज के बात ना बा।

एगो हमार गांव बा जहाँ आज भी माई अपना बेटा के लमहर उमिर खातिर जिउतिया रखेले, छठ भुखेले।

एगो हमार गांव बा जहां आज भी अपना माई के दवाई खातिर बेटा आपन किडनी बेंचे खातिर तईयार बाड़ें।

एगो हमार गांव बा जहाँ आज भी माई चकवड़ के झुर हिला के कहेले…

ए अरियार…
का बरियार…
जाके रामचन्द्र जी से कही दिहअ धर्मदेव के माई जिउतिया भूखल बाड़ी।

दु हजार चार में हम पंतनगर गईल रहनी बाबूजी के साथे तबसे कबो जिउतिया पर घरे नइखीं रहल। सरगहि अब सपना हो गईल बा। बाकिर माई आज भी सपना में ना बाकिर फोन क के आशीष देले । जगावेले पीठ थपथपा के बाबू उठ हो सरगहि खा लअ।

माई हर साल हमरी लमहर उमिर खातिर जिउतिया भुखेले। सच कहल बा माई माइये होले जवन अपना बेटा के सलामती खातिर कठिन से कठिन तीज तेवहार भूखे खातिर तइयार रहेले।

माई के बारे में का लिखीं बस माई के जाने खातिर एगो शब्द “माई” ही काफी बा।

अब बेटा लोग के सोचे के जरूरत बा कि का उ माई के करजा कबो उतार सकतालो?

अब बेटा लोग के सोचे के जरूरत बा कि काहें शादी बियाह के बाद माई बोझ लागे लागतिया? काहें मेंहरी अइले के बाद माई कसाई हो जा तीया अऊर मेहरी मिठाई हो जा तीया।

पूत कपूत भले होइहें पर, माई कुमाई कबो नाहीं होई।
विष से प्रीत करीं केतनो पर,विष मिठाई कबो नाहीं होई।

माई के नेह में, माई सनेह में, तनिको खंटाई कबो नाहीं होई।
माई के पूत सताई भले पर, माई कसाई कबो नाहीं होई।

सभके जिउतिया पर्व के अनघा बधाई बा अऊर माई के चरण वन्दन बा।

माईये जहान हई, माईये परान हई,
माई बिना सुन सारा दुनिया जहान हो।
माई हई देवी, माई दुर्गा समान हई,
माई के चरनिया में बसें भगवान हो।
माईये ही गीता हई, माईये पुरान हई,
माई हई वेद माई हई कुरआन हो।
माईये ही दाता हई, माईये विधाता हई,
माईये के दुनिया करेले गुणगान हो।

माईये मिठाई हई, माईये दवाई हई,
माईये हई जगदम्बे भवानी।
माईये दुलार हई, माई संसार हई,
माईये के लिखल ह जीवन कहानी।
माईये कुरान हई, वेद पुरान हई,
माईये हई गुरुग्रंथ के बानी।
माइये के पूत हम ,माइये के दूत हम,
माइये के दिहल ह जीवन निशानी।

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