हिंदी सिनेमा में किंग ऑफ रोमांस के नाम से मशहूर निर्माता/निर्देशक यश चोपड़ा जी का आज जन्मदिवस (27 सितम्बर 1932 – 21 अक्टूबर 2012) है। हिन्दी सिनेमा में बतौर पटकथा लेखक एवं निर्माता और निर्देशक, के रूप में यश चोपड़ा जी ने प्यार और मोहब्बत की जो दीवार खड़ी की है उसे अब तोड़ पाना किसी दूसरे के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है। वक्त, सिलसिला, कभी-कभी, दीवार, डर, चांदनी, दिल तो पागल है, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, मोहब्बतें, वीर जारा जैसी एक से बढ़कर एक बेहतरीन रोमांटिक फ़िल्मों का आज भी कोई सानी नही है। सही मायनों में शहंशाह (अमिताभ बच्चन) को हिंदी सिनेमा का शहंशाह और बादशाह (शाहरुख खान) को हिंदी सिनेमा का बादशाह बनाने में यश चोपड़ा जी का बहुत बड़ा योगदान है। इनकी बदौलत ही इन दोनों फिल्मस्टारों ने वास्तव में सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल की। अगर यश जी को पारस पत्थर कहें जिसके छूने (निर्देशन) से हमें अमिताभ और शाहरुख जैसे नायाब हीरे मिले तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिस दौर में केवल नायक नायिकाओं के नाम से ही फिल्मों को जाना जाता था। उस दौर से लेकर अपने जीवन के अंत के दिनों तक में अपने निर्देशन से इन्होंने ऐसी छाप छोड़ी की सभी अभिनेता/अभिनेत्री इनके फिल्मों में काम करने के लिए लालायित रहते थे। यही नहीं दर्शक भी बड़ी बेसब्री के साथ इनकी फिल्मों का इंतज़ार किया करते थे। सिनेमा के रुपहले पर्दे पर रोमांस की नई परिभाषा गढ़ने वाले इस महान फिल्मकार ने जब दुनिया को अलविदा कहा तो तबसे मानों ऐसा लग रहा है कि अब बॉलीवुड में रोमांस की जगह हमेशा हमेशा के लिए एक ऐसा खालीपन सा आ गया है जिसे शायद ही कोई भर पाए। प्यार की पराकाष्ठा और उसकी प्रस्तुति जिस तरीके से यश जी ने अपनी फिल्मों में की वो आज भी सभी निर्माता/निर्देशकों के लिए एक सबक ही है। इनकी कुछ प्रमुख फिल्में-
** बतौर निर्माता/निर्देशक **
2012- जब तक है जान
2011- मेरे ब्रदर की दुल्हन
2008- रब ने बना दी जोड़ी
2007- लागा चुनरी में दाग
2007- चक दे इंडिया
2006- धूम 2
2005- बंटी और बबली
2004- वीर-ज़ारा
2004- हम तुम
2004- धूम
2000- मोहब्बतें
1997- दिल तो पागल है
1993- डर
1992- परम्परा
1991- लम्हे
1989- चाँदनी
1988- विजय
1982- सवाल
1981- सिलसिला
1979- काला पत्थर
1975- त्रिशूल
1975- दीवार
1973- जोशीला
1965- वक्त
1961- धर्मपुत्र
1959- धूल का फूल

** सम्मान और पुरस्कार**
फ़िल्मफेयर पुरस्कार-
1964- वक्त (सर्वश्रेष्ठ निर्देशक)
1969- इत्तेफाक (सर्वश्रेष्ठ निर्देशक)
1973- दाग (सर्वश्रेष्ठ निर्देशक)
1975- दीवार (सर्वश्रेष्ठ निर्देशक)
1991- लम्हे (सर्वश्रेष्ठ निर्माता)
1995- दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (सर्वश्रेष्ठ निर्माता)
** राष्ट्रीय पुरस्कार **
1990- चांदनी
1994- डर
1996- दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (निर्माता)
1998- दिल तो पागल है
2005- वीर जारा
** अन्य **
2001- दादा साहब फालके पुरस्कार
2005- पद्म भूषण यश चोपड़ा जी के फिल्मी योगदान को लेकर किसी व्यक्ति ने उनकी फिल्मों के नाम का उपयोग करते हुए “लम्हा-लम्हा” शीर्षक से एक बहुत ही सुंदर कविता की है-
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले।
फूल, धूल की दीवारों पर नये खिले॥
वक्त के त्रिशूलों से पड़ा जब कभी साहस ढीला,
बढ़ा तुरत लेकर मशाल जीवन जोशीला,
कभी-कभी तो इत्तफ़ाक़ से दाग़ भी मिले।
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले।।
कभी राह में टकराये जब काले पत्थर,
छोड़ दिया तब परम्परा का सारा ही डर,
कोशिश रण में इतनी, ऐसी ज़ोर की बनी,
मिली विजय फिर बिखर गयी हर जगह चाँदनी,
मिटे आदमी-इंसानों के सभी फ़ासले।
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले।।
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले… (रचनाकार-अज्ञात)

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