वर्षों पहले पत्र लिखे थे,
लगता जैसे ही कल है ।
प्यार छिपा था उनमें पावन,
जैसे गंगा का जल है ।।
शब्द-शब्द में सूरत तेरी,
भाव सुवासित अनुपम है ।
जिसकी उपमा करेगा कैसे,
पारिजात भी गुमसुम है ।।
अन्तस के उद्गार समेटे,
चुन-चुन मोती गूँथे थे ।
सावित्री सी प्रीत अनोखी,
लेश नहीं हम झूठे थे ।।
वजह यही जब तक न देखूँ,
अन्न मुझे कब भाया था ।
सम्मोहक जादुई बातों ने,
रातों मुझे जगाया था ।।
जब भी कभी पुराने खत वे,
हाथों में ले पढ़ता था ।
खो जाता स्मृति आलिंगन,
फिर-फिर गिरिवर चढ़ता था ।।
लेकिन मेरा प्रणय निवेदन,
तुमने ही स्वीकारा था ।
मैंने जीती दुनिया सारी,
हर कोई मुझसे हारा था ।।
आज वही खत मिला हमें,
जब भी दोनों बाँचा करते हैं ।
अधरों से संगीत निकलता,
नैनों में नाचा करते हैं ।।