zindagi

जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।
अपना हक़, अपना हिस्सा, सब बराबर माप लो।।

दुःख हो, या सुख, गम्म हो या हो ख़ुशी।
सबके अपने आँसू हैं, सबकी अपनी हंसी।
भाग्य की अपनी किस्मत नहीं, कर्म ही पूजा मान लो।।
जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।।

भगवान कोई इंसान नहीं, इंसानियत में भगवान है।
मानव महान नहीं, पेड़-पौधे, जीव-जंतु का कर्जदार है।
इस साँसों की सच्चाई से, उम्र कैद में काट लो।।
जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।।

बारिश हो, हवा हो, हो धुप या छाँव में।
अपना अपना आशियां हैं, शहर हो या गांव में।
अपनी सुबह की शाम से, धरती और आसमान लो।।
जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।।

कर्म कभी मरता नहीं, मौत के आ जाने से।
जिन्दा रहना आसान नहीं, दुनिया में ज़माने से।
इस अंत के आगाज़ को, तुम पहले पहचान लो।।
जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।।

उनके हाथ में हार हो, या अपने गले में हार।
जीत उन्हीं की जीत है, जो माने कभी न हार।
जुआ और अखाड़े में, अपनी दाव को जान लो।।
जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।।

मंदिर, मस्जिद, चर्च और बड़े गुरुद्वारे में।
हम ने खुद को टांग दिया, आस्था की दुकानों में।
सेवा में ही शांति है, ये राम कहा तुम मान लो।।
जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।।

जो कुछ भी दे जिंदगी, उसे आपस में बाँट लो।
अपना हक़, अपना हिस्सा, सब बराबर माप लो।।

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