‘मां’ इस शब्द का मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव रहा है । वैसे तो हर किसी पर रहता है, सही तथा गलत दोनों मायनों में । मां के कारण ही अनाथ बच्चों को भी बनते देखा है और मां के ही कारण किसी बच्चे को धीरे धीरे मिटते भी देखा है । मैं इस मामले में भाग्यशाली रहा हूं। मेरी अपनी मां के अलावा वो हर कोई हाथ मेरे लिए मां के हाथ रहे हैं जिन्होंने मुझे रोते देख मेरे आंसू पोंछे, निराश देख मेरी पीठ थपथपाई, भूखा देख खाना खिलाया ।
यही कारण है कि जब मैं मां लिखता हूं तो उससे मेरा मतलब सिर्फ मेरी जन्म देने वाली मां से नहीं होता । हम जब भी प्रेम लिखते हैं तो मां के प्रेम को ना चाहते हुए भी दबा देते हैं। कृष्ण का प्रेम हमेशा राधा के लिए याद किया जाता है जबकि उनके प्रेम पर पहला हक़ मां का है । उनके लिए यशोदा मां थी देवकी मां थी और इसके साथ साथ हर वो ग्वालिन जिसने कान्हा को माखन खिलाया उसे गोदी झुलाया उसकी शैतानियों को प्रभु लीला का नाम दिया वे सब तो मांएं ही थीं ।
आपके जीवन के हर पहलू में अगर मां का साया आपके साथ है तो आपका जीवन सार्थक है । एक उम्र तक मैं सिर्फ अपनी मां को मां मानता था । बाक़ी सब मेरे लिए मौसी चाची आंटी यही सब थीं । इसका कारण यह भी था कि कभी मां के आंचल से दूर नहीं गया था । फिर जब ज़िंदगी ने अपने असली रंग दिखाने शुरू किये तो मां से दूर हो गया । लगा कि दुनिया में अब अकेला हूं लेकिन तभी अहसास हुआ कि नहीं मुझे ये वरदान मिला है शायद कि मैं हमेशा मां के साये तले ही रहूंगा ।
जब पहली बार दर्द में कराहा तो देखते ही देखते वो कराह घूटी चीख में बदल गयी । गांव की छत पर अकेला लेटा मैं और मेरे सिरहाने बैठा बर्दाश्त से बाहर होता दर्द । आधी रात में जब पूरा गांव सोया था तब दर्द ने झकझेर कर जगाया । मैं रो पड़ा, जानता था गांव की आंख भी लग जाए फिर भी इसके कान हमेशा खुले रहते हैं इसीलिए मुंह दबा के रोया । लगा कि सारी दुनिया में अकेला हूं लेकिन तभी पीठ पर किसी के हाथ पड़े, कानों में आवाज़ पड़ी । ये मौसी थीं, ताई भी यही हैं । जिस चीख को किसी ने नहीं सुना उसे मौसी ने महसूस कर लिया था । सिरहाने तब तक बैठी रही जब तक मैं सो नहीं गया । अगले दिन से छत पर मेरे बगल में ही अपना बिछावन लगाने लगीं । मैं करवट भी लेता तो चौंक कर जाग जातीं । आज भी मैं मां और मौसी में तुलना करने पर मौसी को ही एक पायदान ऊपर मानता हूं ।
मेरी सभी चाचियां मेरे चेहरे की उदासी से लेकर भूख तक को पकड़ लेती हैं । उन्हें पता लग जाए कि दोपहर बारह बज गये और मैंने कुछ खाया नहीं तो तब तक टोकती हैं जब तक कुछ खा ना लूं । इन सबमें सबसे छोटी हैं हमारी भाभी मां । वैसे तो शायद उम्र में छोटी ही हों लेकिन इनका ओहदा और हमारे प्रति इनका स्नेह इन्हें बहुत बड़ा बना देता है । मां पिता भाई बंधू बहन बेटी सबके लिए कोई ना कोई दिन होता है लेकिन भाभी के लिए कोई खास दिन नहीं बनाया गया । शायद इसलिए क्योंकि वो मां की श्रेणी में ही आती है । हमारी भाभी भी मां से कम नहीं हमारे लिए ।
ये मां का स्नेह केवल घर में ही नहीं मिला मुझे । घर से बाहर भी इस मामले में भाग्यशाली रहा हूं । लखनऊ में था तो टिफिन का खाना खाता था । वैसे खाने पीने के मामले में मेरे ज़्यादा नखरे नहीं हैं इन नखरों को मैं हमेशा मां के लिए बचा कर रखता हूं । फिर भी कभी कभी तो मन कर ही जाता था कि मां के हाथ का खाना मिल जाता तो अच्छा होता । लेकिन यहां भला मां के हाथ का या घर का खाना कहां से नसीब हो । मगर यहां भी अंशु मैम के रूप में मां मेरे साथ थी । इनकी वजह से कभी कमी नहीं महसूस हुई ।
फेसबुक की बात करूं तो लोग यहां के रिश्तों को फर्जी बताते हैं मगर मुझे तो यहां शालिनी मां ,अलका मां के साथ साथ अन्य कई माएं मिलीं जिन्होंने अपने आशीर्वाद से मुझे हमेशा अमीर बनाए रखा । बात यहीं खत्म नहीं होती । मां के इस स्नेह और आशीर्वाद के और भी बहुत से स्रोत हैं मेरे पास ।
लेकिन इन सबकी वजह आखिरकार वही मां है जिसकी कोख से मैंने जन्म लिया । उसी ने मुझे इस तरह से बड़ा किया कि कहीं भी जाता हूं तो उसके आशीर्वाद से उसका कोई ना कोई समरूप मेरे लिए आंचल फैलाए रहता है । मैं अगर अपनी ज़िंदगी में कभी कुछ बड़ा कर पाया तो उसका समूचा श्रेय मेरी सभी मांओं को ही मिलेगा । उनकी वजह से ही थोड़ी बहुत हिम्मत जुटा पाता हूं । ये ना होतीं तो शायद कब का भटक गया होता ।
मुझे अक्सर लगता है कि मैं ममता के किसी सघन वृक्ष के नीचे चैन से लेटा हूं । इसकी जड़ मेरी जन्म देने वाली मां है तथा उसके बाद इन सभी मांओं ने उस वृक्ष को घना किया हुआ है । ईश्वर इस वृक्ष को हमेशा फलता फूलता रखे । बिन मांओं के ये धूप जला देगी मुझे । इन सबकी मुस्कान बनी रहे, ईश्वर हमेशा इन्हें स्वस्थ रखें ।
वैसे तो मेरी हर सांस आपकी है, हर दिन आप सब से ही है फिर भी आज मदर्स डे के खास मौके पर आप सबको खूब सारा प्रेम।
आप सबको मेरा प्रणाम
“मै जो भी जैसा भी हूं लेकिन वैसा ही हूं जैसा मेरी मां ने मुझे बनाया है” -अब्राहिम लिंकन।
मां का रूप और महत्त्व जितेंद्र की फिल्म “मां” में देखने को मिलता है और वही फिल्म संयोग में भी मां के ममता की अद्भुत झलक देखने को मिलती है। हमारे जन्म की शुरुआत मां के गोद से शुरू हो कर धरती मां के गोद में ही समाप्त हो जाती है।
भगवान श्री राम जी ने मां के विषय में कहा है कि -“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात माता और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर है।
विश्व की सभी माताओं को मेरा शत शत नमन !