आजादी की 74वीं वर्षगांठ के हम गवाह बन रहे हैं। हमारा देश इस वर्ष कोरोना महामारी का वैश्विक आपातकाल में समाया हुआ था, यह वर्ष दो हजार बीस इस सदी का सबसे भयानक वर्ष माना जाएगा,इस बीच जब हम स्वतंत्रता दिवस मना ही रहे हैं तो कुछ स्व मूल्यांकन या खुद का अवलोकन किया जाए कि आज आजादी सात दशक होने के बाद हम स्वतंत्र हैं, या हम उच्छंखृल हैं, या हम अराजक हैं, या हम मुखर और बेबाक बस हैं,इतने दशक गुज़र जाने के बाद हम वर्तमान में उस दौर में खड़े हैं, जहां हर यूट्यूब चैनल खुद को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया घोषित करने में लगा है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया राजनैतिक पक्ष या विपक्ष के किनारे में सत्ता रूढ़ या विपक्ष का पक्ष लेने लायक शायद ही बचे हैं। पांचवां स्तंभ चारण युग में चला जा चुका है, समाचार पत्र भी विचारधारा की धार में बह रहे हैं। हर व्यक्ति सोशल मीडिया में विद्वता का मठाधीश बनने का अधिकार प्रयोग कर रहा है। सनातन धर्म को आड़े हाथों लेकर, राजनैतिक दलों के आईटी सेल, सोशल मीडिया को ब्रम्हात्र बना रहे हैं, राज नेता खुद को जितना प्रचारित नहीं कर रहे उतना उनके चेले उन्हें दुष्प्रचार करने में उतावले हैं। हर घटना को धर्म के ठेकेदार धर्म के झंडों के रंग का आधार मानकर देखने लगे, और उसी झंडे के डंडे की मार की विभत्सता से सोशल मीडिया तथाकथित अभिव्यक्ति की आजादी को थामें अट्टहास कर रही है। इन सब को किस दायरे में रखेंगे हम सब। कभी सोचना चाहिए।
हमारे भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में सम्मिलित है। इसकी 19, 20, 21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित छः प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करतीं हैं। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान में धारा १९ द्वारा सम्मिलित छह स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है। ये स्वतंत्रता कुछ इस तरह से हमें मिली है । 19(क) में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 19(ख) में शांतिपूर्ण और निराययुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता, 19(ग) में संगम, संघ या सहकारी समिति बनाने की स्वतंत्रता, 19(घ)में भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता, 19(ङ) में भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र कही भी बस जाने की स्वतंत्रता , 19(छ) में कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता, हम भारतीय नागरिकों को समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28) संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30) संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32) आदि।
नागरिकों के मूल कर्तव्य 1976 में सरकार द्वारा गठित स्वर्णसिंह समिति की सिफारिशों पर, 42वें संशोधन द्वारा संविधान में जोड़े गए थे। मूल रूप से संख्या में दस, मूल कर्तव्यों की संख्या 2002 में 86वें संशोधन द्वारा ग्यारह तक बढ़ाई गई थी, जिसमें प्रत्येक माता-पिता या अभिभावक को यह सुनिश्चित करने का कर्तव्य सौंपा गया कि उनके छः से चौदह वर्ष तक के बच्चे या वार्ड को शिक्षा का अवसर प्रदान कर दिया गया है।अन्य मूल कर्तव्य नागरिकों को कर्तव्यबद्ध करते हैं कि संविधान सहित भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों का समेमान करें, इसकी विरासत को संजोएं, इसकी मिश्रित संस्कृति का संरक्षण करें तथा इसकी सुरक्षा में सहायता दें। वे सभी भारतीयों को सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने, पर्यावरण और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने, वैज्ञानिक सोच का विकास करने, हिंसा को त्यागने और जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करने के कर्तव्य भी सौंपते हैं। नागरिक इन कर्तव्यों का पालन करने के लिए संविधान द्वारा नैतिक रूप से बाध्य हैं। हालांकि, निदेशक सिद्धांतों की तरह, ये भी न्यायोचित नहीं हैं, उल्लंघन या अनुपालना न होने पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती। ऐसे कर्तव्यों का उल्लेख मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में मिलता है।
इन अधिकारों और कर्तव्यों के साथ हर नागरिक को इस देश में रहने की बात हमारा संविधान करता है, लेकिन घटना क्रम कुछ और रुख अख्तियार कर लिया, अब इस वर्ष के आरंभ में दिल्ली जली, शाहीन बाग जैसे मामले नजरों के सामने आए, शैक्षिक संस्थानों की असंयमित क्रियाकलापों से पूरा देश सांसत में आ गया, मध्य प्रदेश, दिल्ली, और राजस्थान में चुनाव के समय पर हमारा नेता बोली लगवाने के लिए उतावला नजर आया, देश राष्ट्रभक्त और कम्यूनिस्ट समूह में बंटा हुआ है। हम अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे। देश का प्राइवेटाइजेशन होता रहा, गरीबी बढ़ती गई और आमदनी कम होती चली गई। अराजकता हमारी उच्छंखृलता से पैदा हुई और देश को मूल मुद्दों से भटकाकर धर्म की अफीम में जनता को अनुयाई बना लिया। सोशल मीडिया की गिरफ्त में आकर हम हिन्दू हिन्दू या मुसलमान मुसलमान चिल्लाना शुरू कर दिए और एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। धर्म आधारित राजनैतिक दलों ने जनता की आस्था को अपने फायदे के लिए कैश कर लिया। इन दलों और संबंधित मीडिया को कट्टर हिन्दू और आतंकी मुसलमान बना दिया,, हम इस सोशल मीडिया और टीवी चैनलों की दुनिया से बाहर निकलें तो पता चलता है कि दुनिया कितनी अलग है यार।
हम अपने अल्प ज्ञान को संकीर्णता के लिवाज में लपेट कर कट्टर समाज बनाने की कोशिश करेंगे तो हम गृह आतंकवाद और धार्मिक अराजकता के शिकार हो जायेगें और यही हो रहा है, हिंदूवादी दल हिंदू बाहुल्य इलाकों में मुस्लिम समुदाय के लिए जहर घोल रहे हैं और मुस्लिम दल मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में हिंदुओं के लिए जहर घोल रहे हैं, यह सब टीवी चैनलों की आजादी और सोशल मीडिया की बर्बरता का नतीजा है। हम यह सोचें कि आईएसआईएस, हमारे बीच आएगा, और हमें धर्म की लड़ाई लगाएगा। नहीं हम खुद इस संगठन से ज्यादा कट्टर हो रहे हैं और यह काम हमारे दल हमारे दिमाग और धार्मिक आस्था को नियंत्रित करके कर रहे हैं। हमें अपनी फौज के प्यादे बनाकर हमारी आजादी को अराजकता में बदल रहे हैं, और हमारी अन्य धर्मों के प्रति जिम्मेदारी के महत्त्व को खत्म कर रहे हैं। देश बचाना है तो हिंदू हिंदू रहे, सिख सिख रहे, ईसाई ईसाई रहे, मुस्लिम मुस्लिम रहे, एक दूसरे के खिलाफ अंगुली न उठाए, मार काट न मचाएं, टांग न अड़ाए, हम अपना अपना धर्म मजहब पंथ ईमानदारी से धारण कर लें, तो हमारी स्वतंत्रता, हमारी आजादी दूसरे धर्म के लिए जीना मुहाल न करेगी।। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस हो सब दोनों धर्मों की शुभचिंतक है, दोनों धर्मों के लोगों को वोट में बदलने के लिए क्षेत्र के हिसाब से जातिगत धर्मगत उम्मीदवार खड़े करके अपनी गोटियां फिट करते हैं, वो मंदिर मसजिद हर धार्मिक स्थल में जाते हैं, त्योहारों में शामिल होते हैं, तो फिर जनता को कट्टरता के लिए क्यो उन्मादी बनाते हैं, यही तो सोचने का विषय है।।। इस आजादी के दिन हमें इस बात पर जरूर एक बार सोचना चाहिए कि क्या हम पियादे हैं, कठपुतलियां हैं, अंध अनुयाई हैं, यदि हां तो यह लबादा उतार फेंकने की जरूरत है। खुद सोचो विचारों फिर कोई बात कहो लिखो बोलो साझा करो और अपनी आजादी को आजादी ही रहने दीजिए दूसरे के हाथ की कठपुतली न बनाइए।
व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
#HappyIndependenceDay
Happy independence day Sir!