samundr

किसी की रूह को इतना भी, चूर मत करिये
इंसान हो कर भी हैवां सा, कसूर मत करिये

अच्छा हो अपने कद का भी, अंदाज़ कर लो,
देख अपना ही लम्बा साया, गुरूर मत करिये

यारा समझ कर कि, अब तो तुम ख़ुदा हो गए,
झूठी शान में आके, अपनों को दूर मत करिये

न भूलिए वक़्त की चालें, बड़ी अजीब हैं दोस्त
खुद की ऊंचाइयों पे इतना, फ़ितूर मत करिये

निकलती है हर मंज़िल की राह, इनके नीचे से
कभी जमीं से अपने कदमों को, दूर मत करिये

यूं नमक छिड़कने का काम, अब छोड़ दो ‘मिश्र’
ये ज़ख्म तो भर जायेंगे, इन्हें नासूर मत करिये

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