nirwan

कविता : निर्वाण की ओर

जन्मी उर में जिज्ञासाएँ, देखा जब निस्सार जगत; पीड़ा मानव मन की देखी, शूल हृदय में था चुभा। “उर्वरा थी भूमि मन की, बीज जा उसमें गिरा।।” उठी हूक अंतःस्थल में, ये कहां हम आ गए? छोड़ सारे वैभवों को,… Read More