आमतौर पर मार्च का महीना साल का सबसे तनावपूर्ण महीना माना जाता है क्योंकि इस महीने में अधिकतम निजी व्यावसायिक कंपनियों में वर्ष समाप्ति का काम ज़ोरो पर होता है और कर्मचारियों पर काफी दबाव भी रहता है, रही बात सरकारी बैंकों की तो वहां भी सभी कर्मचारी अपना काम जल्दी निपटाने को आतुर रहते हैं। लेकिन इस साल दुनिया में एक ऐसी महामारी फैली जिसने सबको झकझोर के रख दिया, इस महामारी के नाम से आप सभी वाकिफ ही होंगे। इसकी शुरुआत हुई चीन के वुहान शहर से और अब ये दुनिया के कई देशों में अपने पैर पसार चुका है।
भारत भी महामारी से अनछुआ ना रह सका और इस महामारी ने देश के विभिन्न राज्यों में लोगो को अपने चपेट में लेना शुरू किया। इससे बचने का केवल एक ही उपाय था ‘सामाजिक दूरी’ एवं मास्क और सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करना और हाथों को लगातार धोते रहना।
शुरुआत में तो भारतीयों ने इसका खूब मज़ाक बनाया लेकिन जब इस महामारी ने भारत में अपना विकट रूप धारण करना शुरू किया तो आलम ये हुआ कि हवाओं में सैनिटाइज़र और हैंड वाश की महक बिखरने लगी, मास्क लगाने से सभी नागरिकों की सूरत निखरने लगी और जो खासे या छीके उसकी तरफ सबकी शक भरी निगाह उठने लगी। जब जानकारी मिली की ये बीमारी इंसानों से इंसानों में फैलती है तब जाकर कहीं चूहे और सुअर जैसे मासूम पशुओं ने राहत की सांस ली और अपने बेकसूर होने का जश्न आज़ादी से मनाने लगे, लेकिन चूहे अधिक देर तक जश्न ना मना सके चूँकि कुछ दिनों बाद चीन में हंता वायरस फैलने लगा जो की चूहों से फैलता है।
भारत सरकार ने इस महामारी से बचने हेतु कई महत्वपूर्ण कदम उठाये जैसे 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू लगाया गया, कई जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई, राज्य एवं जिलों की सरहद को सील कर दिया गया एवं देश के इतिहास में पहली बार भारतीय रेल ने यात्री गाड़ियों को बन्द करने का निर्णय लिया क्योंकि इससे संक्रमण अधिक फैल सकता है। इस महामारी से निवारण का सबसे बढ़ा फैसला 24 मार्च को 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित करके किया गया जिसे एक प्रकार का कर्फ्यू भी कहा जा सकता है, अब भारत की प्रथा रही है की जो काम करने से मना किया जाए उस काम को आप ज़रूर करें वरना आप असल भारतीय होने की पहचान खो देंगे, सो इस लॉकडाउन के दौरान भी निकल पड़े लोग सड़को पर ये देखने कि कितने लोग घरों से बाहर निकले हैं। धीरे-धीरे जब दिन बढ़े तो पुलिस प्रशासन ने भी सख्ती बरतना शुरू किया और उनको काफी दिनों बाद मौका मिला अपनी लाठी का इस्तेमाल करने का एवं उन्होंने बखूबी अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए अपनी लाठी का सही ढंग से उपयोग किया। हालांकि इस लॉकडाउन का सबसे बुरा असर देश के गरीब मज़दूरों पर पढ़ा जो रोज़ की कमाई से अपना जीवन यापन करते थे।
महीने के अंत तक सब कुछ नियंत्रित लग रहा था लेकिन तभी दिल्ली की पुलिस प्रशासन और दिल्ली सरकार द्वारा हुई एक बड़ी चूक सामने आई। दिल्ली के निज़ामुद्दीन में आयोजित मरकज़ में बिना अनुमति के लॉकडाउन तोड़ते हुए दुनियाभर के 15 इस्लामिक देशों की जमात बुलाई गई और चोरी-चुपके धार्मिक आयोजन कर देश को बड़े संकट की ओर धकेल दिया गया। राजनैतिक तौर पर इस मामले को धार्मिक विरोध की ओर ले जाने की आशंका जताई जा रही है परन्तु अभी ज़रूरत है उन सभी लोगों को ढूंढ़ निकालने की और धीरे-धीरे दुनिया भर में पैर पसार रही इस महामारी का असर कम करने की ताकि देश और दुनिया इस वैश्विक महामारी से जल्द से जल्द उभर सके।