मां बाबा आज भी चौपाल पे ही पंचायत का फैसला सुनाने चले गये। मैं बोली भी थी बाबा आज कहीं न जाना मुझे मेला देखने जाना है खीज़ के ये सब एक ही सांस मे सरिता अपनी मां से बोली और गुस्से मे मुंह फुलाके कमरे मे जा के बैठ गई।
मां सरिता के पास गई और बोली बेटी तेरे बाबा गांव के सरपंच हैं, गांव वाले तेरे बाबा का इतना सम्मान करते है उनकी सच्चाई के चलते देख तेरी सखियां भी तुझपे गर्व करती की तू सरपंच की बेटी है।
चल हम भी चलते हैं चौपाल पे आज उस छोरी का फैसला होने वाला है जिसे तेरे काका के लड़के ने छेड़ा था। ये खून का रिश्ता कहीं तेरे बाबा को अपने दायित्व से दूर न करे,हमें आज उन्हें सच्चाई और ईमानदारी से फैसला सुनाने के लिये उनका हौसला बन साथ रहना चाहिये, सरिता भी मां के साथ जाने को तैयार हो गई दोनों चौपाल पहुंची जहां अभी पक्ष विपक्ष अपनी अपनी बात रख रहे थे।
और सरपंच गौर से सुन रही थी,तब छोरी के घर वालों ने कहा हुकुम आप की भी एक बेटी है अगर मेरी बेटी की जगह आपकी बेटी होती तो ? आशा है आप सही निर्णय सुनाऐंगे। तब बाबा ने जो फैसला चौपाल पे सुनाया वो सालों तक सब याद करेंगे। बाबा ने काका के बेटे को गांव निकाला का आदेश दिया और भुगतान मे छोरी के घरवालों को पच्चीस हजार रूपये भी दिलवाऐ।आज मुझे गर्व है अपने बाबा पे और मेले से ज्यादा जरूरी सरिता को चौपाल की सत्य से भरी वास्तविकता से परिचय हुआ।।