geet vishwas

बहुत फक्र करते थे
हम अपनों पर यार।

बंद आँखों से विश्वास
करते थे उन पर हम।
पर पढ़ न सके उन्हें
साथ रहते हुये हम।
तभी तो उठा दिया
जनाजा विश्वास का आज।
और आँखें मेरी खोल दी,
की मत करो किसी पर विश्वास।।

जो अपनो से विश्वास
घात करता है।

और अपनों को अपना
बनकर लूटता है।
एक दिन ऐसा आएगा
उनके भी जीवन में।
सब कुछ रहेगा पास
पर अपना न होगा कोई।।

जब तक तेरे सितारे
बुलंद होते है,

तब तक तेरा कोई कुछ
बिगड़ सकता नहीं।
इसलिए तो अपने
कामों पर करता रहा घमंड।
पर जब आता है बुरा वक्त
तब कोई भी साथ नहीं देते।
तब अपने किये गये कर्म
याद बार बार आते है,
पर तब तक देर
हो चुकी होती।।

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