pranav mukharji

पाया है भारत रत्न राष्ट्र के सपूत थे वे,
दुनिया में भारत को गौरव दिला गए।
राष्ट्रपति पांच साल तक रहे देश के वे,
बुद्धिमत्ता से वे विश्व गगन पे छा गए।।
आंग्लभाषा में लिखी है पुस्तकें प्रणवदा ने,
जमाने को नए कई सबक सिखा गए।
मान इसलिए ही तो देश ने दिया है उन्हें,
घर देश वासियों के दिलों में बना गए।।

देश की सेवा का व्रत आजीवन निभाया है,
रपटिली राहों में भी वे थे नहीं फिसले।
प्रणव दा महारथी ऐसे रहे रण में जो,
राह रोकने पे आए तो कभी नही टले।।
त्याग की वे मूरत थे इसीलिए तो वे यहां,
अनगिन धावकों से आगे सदा निकले।
अभिशाप गरीबी का याहो छुआछूत कावो,
मिटाने में सख्त रहे कभी नहीं पिघले।।

बने देश के प्रथम नागरिक एक दिन,
बिना कर्मफल कैसे होता ये बताइए।
राजनीति दल-दल सभी कहें लोग यहाँ,
बिना दाग लगे कौन आया समझाइए।।
प्रणव कुमार रहे कहते ये हमेशा ही,
अहिंसा के सुपथ पे जिंदगी बनाइए।
छोड़ा नहीं नजरिया डटे रहे अंत तक,
ऐसे नर श्रेष्ठ पर वारी-वारी जाइए।।

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