10 वें सिक्‍ख गुरूओं के प्रथम गुरू गुरुनानक सिक्‍ख पंथ के संस्‍थापक थे। जिन्‍होंने धर्म में एक नई लहर उत्पन्न की । सिख गुरूओं में प्रथम गुरू नानक का जन्‍म 1469 में लाहौर के निकट तलवंडी (ननकाना साहिब पाकिस्तान) में हुआ था । समाज में कई धर्मों के चलन व विभिन्‍न देवताओं को स्‍वीकार करने की अरुचि ने व्‍यापक रूप में यात्रा किए हुए नेताओं को धार्मिक विविधता के बंधन से मुक्‍त होने, तथा एक प्रभु जो कि शाश्‍वत सत्‍य है के आधार पर धर्म की स्‍थापना करने की प्रेरणा दी । गुरू नानक जयन्‍ती के त्‍यौ‍हार में, तीन दिन का अखण्‍ड पाठ, जिसमें सिक्‍खों की धर्म पुस्‍तक “गुरू ग्रंथ साहिब” का पूरा पाठ बिना रुके किया जाता है, शामिल है । मुख्‍य कार्यक्रम के दिन गुरू ग्रंथ साहिब को फूलों से सजाया जाता है, और एक बेड़े (फ्लोट) पर रखकर जुलूस के रूप में पूरे गांव या नगर में घुमाया जाता है । शोभायात्रा की अगुवाई पांच सशस्‍त्र गार्डों, जो ‘पंज प्‍यारों’ का प्रतिनिधित्‍व करते हैं, तथा निशान साहब, अथवा उनके तत्‍व को प्रस्‍तुत करने वाला सिक्‍ख ध्‍वज, लेकर चलते हैं, द्वारा की जाती है । पूरी शोभायात्रा के दौरान गुरूवाणी का पाठ किया जाता है, अवसर की विशेषता को दर्शाते हुए, गुरू ग्रंथ साहिब से धार्मिक भजन गाए जाते हैं । शोभायात्रा अंत में गुरूद्वारे की ओर जाती है, जहाँ एकत्रित श्रद्धालु सामूहिक भोजन, जिसे लंगर कहते हैं, के लिए एकत्रित होते हैं और पंजाबी भाषा में इसे लंगर छकना भी कहा जाता है।

“एक ओंकार सतनाम, करता पुरख निरभऊ ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसाद ।।”

गुरु नानक देव सिक्खों के प्रथम गुरु व ‘सिक्ख धर्म’ के संस्थापक थे । वे एक महापुरुष व महान धर्म प्रर्वतक थे जिन्होंने विश्व से सांसारिक अज्ञानता को दूर कर आध्यात्मिक शक्ति को आत्मसात् करने हेतु प्रेरित किया । इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं । लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है । नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु – सभी के गुण समेटे हुए थे । कई सारे लोगो का मानना है कि बाबा नानक एक सूफी संत भी थे । और उनके सूफी कवि होने के प्रमाण भी समय-समय पर लगभग सभी इतिहासकारों द्वारा दिए जाते है ।सांसारिक अज्ञानता के प्रति गुरु नानक देव का कथन है:
“रैन गवाई सोई कै, दिवसु गवाया खाय । हीरे जैसा जन्मु है, कौड़ी बदले जाय।”
उनकी दृष्टि में ईश्वर सर्वव्यापी है । गुरु नानक देव एक महान आत्मा थे जो सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत का पालन करते थे । उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन में उच्च सिद्धान्त का अनुपालन करने हेतु प्रेरित किया । गुरु साहब ने ‘गुरुग्रंथ साहब’ नामक ग्रंथ की रचना पंजाबी भाषा और गुरुमुखी लिपि में की । इसमें कबीर, रैदास व मलूकदास जैसे भक्त कवियों की वाणियाँ सम्मिलित हैं । 70 वर्षीय गुरु नानक सन् 1539 ई॰ में अमरत्व को प्राप्त कर गए। परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् भी उनके उपदेश और उनकी शिक्षा अमरवाणी बनकर हमारे बीच उपलब्ध हैं जो आज भी हमें जीवन में उच्च आदर्शों हेतु प्रेरित करती रहती हैं ।
उनकी जयंती पर उन्हीं के कुछ अनमोल वचन।

मृत्यु को बुरा नहीं कहा जा सकता, अगर हमें पता हो कि वास्तव में मरते कैसे हैं।

भगवान के लिए प्रसन्नता के गीत गाओ, भगवान के नाम की सेवा करों और ईश्वर के बन्दों की सेवा करों।

ईश्वर की हजार आँखे हैं फिर भी एक आँख नहीं, ईश्वर के हजार रूप हैं फिर भी एक नहीं।

धन धन्य से परिपूर्ण राज्यों के राजाओं की तुलना एक चींटी से नही की जा सकती जिसका हृदय ईश्वर भक्ति से भरा हुआ हैं।

मैं जन्मा नहीं हूँ फिर कैसे मेरे लिए जन्म और मृत्यु हो सकते हैं।

ईश्वर एक हैं परन्तु कई रूप हैं वही सभी का निर्माण करता हैं व्ही मनुष्य रूप में जन्म लेता हैं।

किसी भी व्यक्ति को भ्रम में नही जीना चाहिये। बिना गुरु के किसी को किनारा नहीं मिलता।

ना मैं बच्चा हूँ न ही युवा, ना ही पुरातन और न ही मेरी कोई जात हैं।

नानक सर्वेश्वरवादी थे । मूर्तिपूजा उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा की शैली के विपरीत एक परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग मानवता को दिया । उन्होंने हिंदू धर्म मे फैली कुरीतियों का सदैव विरोध किया । उनके दर्शन में सूफीयों शैली जैसी थी । साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नज़र डाली है । संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।
भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि इस संसार के प्राणियों की त्राहि-त्राहि को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस धरती पर गुरु नानक को पहुंचाया, ‘सुनी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग महि पठाइया।’ उनके इस धरती पर आने पर ‘सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधू जगि चानणु होआ’ सत्य है, नानक का जन्मस्थल अलौकिक ज्योति से भर उठा था । उनके मस्तक के पास तेज आभा फैली हुई थी।
पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके दर्शन किए उसी क्षण भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक ईश्वर ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है । बचपन से ही गुरु नानक का मन आध्यात्मिक ज्ञान एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता । बैठे-बैठे ध्यान मग्न हो जाते और कभी तो यह अवस्था समाधि तक भी पहुंच जाती । इनके अनुसार ‘नाम जपना, किरत करना, वंड छकना’ सफल गृहस्थ जीवन का मंत्र है। वे कहते हैं- ‘सबको ऊंचा आखिए/ नीच न दिसै कोई।’ गुरुजी ने ऐसे मनुष्यों को प्रताड़ित किया है, जिनके मन में जातीय भेदभाव है और कहा कि वह मनुष्य नहीं, पशु के समान है- जीनके भीतर हैं अंतरा जैसे पशु तेसे वो नरा’। ऊंच-नीच के भेदभाव मिटाने के लिए गुरुजी ने कहा कि मैं स्वयं भी ऊंची जाति कहलाने वालों के साथ नहीं बल्कि मैं जिन्हें नीची जात कहा जाता है, उनके साथ हूँ। ‘नीचा अंदरि नीच जाति, नीचिंहु अति नीचु/ नानक तिन के संग साथ, वडिया सिऊ किया रीस।
गुरुनानक देवजी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जितना सरल, सीधा और स्पष्ट है, उसका अध्ययन और अनुसरण भी उतना ही व्यावहारिक है। गुरु नानक वाणी, जन्म साखियों, फारसी साहित्य एवं अन्य ग्रंथों के अध्ययन से यह सिद्ध होता है कि गुरुनानक उदार प्रवृत्ति वाले स्वतंत्र और मौलिक चिंतक थे।
एक सामान्य व्यक्ति और एक महान आध्यात्मिक चिंतक का एक अद्भुत मिश्रण गुरु नानकदेवजी के व्यक्तित्व में अनुभव किया जा सकता है। ‘वे नबी भी थे और लोकनायक भी, वे साधक भी थे और उपदेशक भी, वे शायर एवं कवि भी थे और ढाढ़ी भी, वे गृहस्थी भी थे और पर्यटक भी।’

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