भारत माँ की गोद में जन्मा, वो दिव्य पुरुष, अवतारी था।
राष्ट्रवाद का झंडा थामे, वो एक अटल बिहारी था।
क्या कहूँ, क्या लिखूँ, मैं उस पर, वो खुद किताब सा जीवन था।
शब्दों में उसको क्या बोलूँ, जो खुद कविता की सरगम था।
भारत माँ का प्यारा बेटा, जाने क्यों माँ से रूठ गया।
याद बहुत आता है वो, जाने वो कहाँ छूट गया।
काम गिनाऊँ क्या उसके, हरदिन इतिहास बनाया था।
वाघा से लेकर करगिल तक, हरदिन भगवा लहराया था।
एटम बम की ताकत का, था खुला परीक्षण कर डाला।
चाइना से अमरीका तक, सबको था मजा चखा डाला।
पाकिस्तान के सीने चढ़, था भेद दिया उस बिल्ली को।
करके बस सेवा शुरू, पुनः लाहौर से जोड़ा दिल्ली को।
स्वर्णीम चतुर्भुज योजना सहित, जोड़ी थी उसने ग्राम सड़क।
अंत्योदय को अन्नदान कर, उपहार दिया था उन्हें कड़क।
नेता, कवि से लेकर पत्रकार तक, उसमें सारी गुण खानें थी।
मृदुभाषी, सच्चा था सपूत, उसमें सारी ईमानें थी।
नेता विपक्ष वो था ऐसा, सत्ता तक पहुँच भी रखता था।
संसद में सबको प्यारा था, न द्वेष किसी से रखता था।
उसका संघर्ष गवाही है, सत्ता में आई भाजपा है।
कभी दो सीटों पर गए सिमट, दोबारा आई भाजपा है।
कर्तव्य अटल था, राह अटल थी, जो कहा उसे था कर डाला।
गुमनाम हो रहे भारत को, महाशक्ति था कर डाला।
तूने तो फर्ज निभाया है, अब तुझ जैसा ईमान कहाँ।
याद बहुत आते हो तुम, अब तुझ जैसा इंसान कहाँ।