poem phir tandav karna hoga

हे नारी ! आखिर कब तक सहेगी तू ,
अबला बन, प्रताड़ित होती रहेगी तू ,
बहुत हो चुका, दूसरों के लिए जीना मरना ,
अब तो तुझे खुद के लिए लड़ना होगा

माँगना नहीं अधिकार, तुझे छिनना होगा,
दिखला दे जग को, तू नहीं है अबला,
तूझे कुछ ऐसा करना होगा,लड़ना होगा,
गरल विषधर सा तुझे भी धरना होगा

धीर हिमालय सा धर, अब तो अड़ना होगा,
नहीं है अबला ग़र ,मौन तू; यह समझाना होगा,
शक्ति स्वरूपा चंडी और काली का रुप धर तू ,
दुर्गा बन अब तो असुरों का मर्दन करना होगा

सबला बन तू , इतिहास अब तो तुझे हीं बदलना होगा,
शक्ति रुप महाकाली का धर, तूझे तांडव करना होगा,
फिर तांडव करना होगा, फिर तांडव करना होगा

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