कुंभ पर्व है, महापर्व है, दिव्य पर्व है, ब्रह्म पर्व है
धर्म सनातन की आभा है, देवकृपा वरदान अथर्व है।

ढ़ोल नगाड़े शंख बजाते, धर्म ध्वजा नभ में फहराते
भस्म लगाये खड्ग उठाये शंभू नाद जयकार लगाते
साधु संत तपस्वी आये, संगम पर लगे उतरा स्वर्ग है
धर्म सनातन की आभा है, देवकृपा वरदान अथर्व है।

कुंभ पर्व है, महापर्व है, दिव्य पर्व है, ब्रह्म पर्व है
धर्म सनातन की आभा है, देवकृपा वरदान अथर्व है।

संगम नहीं ब्रह्मांड सजा है, ब्रह्मा ने नवजगत रचा है
गंगा माँ में बहता अमृत, पीने को जनसमूह खड़ा है
बोल रही है सारी नगरी, हमको अपने भाग पे गर्व है
धर्म सनातन की आभा है, देवकृपा वरदान अथर्व है।

कुंभ पर्व है, महापर्व है, दिव्य पर्व है, ब्रह्म पर्व है
धर्म सनातन की आभा है देवकृपा वरदान अथर्व है।

जब तक हैं भारत में योद्धा, धर्मपरायण महापुरोधा
वटवृक्ष सा धर्म सनातन, है नहीं लघु कलुषित पौधा
“दीपक” चंद्रमौलि की लीला, गँग जटा है, कंठ सर्प है
धर्म सनातन की आभा है देवकृपा वरदान अथर्व है।

कुंभ पर्व है, महापर्व है, दिव्य पर्व है, ब्रह्म पर्व है
धर्म सनातन की आभा है देवकृपा वरदान अथर्व है।

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