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आज के दौर का
दोस्तो क्या हाल है।
आधुनिकता के नाम पर
बेशर्मी का ये दौर है।
न अदब न शर्म और न ही
बची संस्कृति और सभ्यता।
इसे ही कहते है लोग
आज की आधुनिकता
आज की आधुनिकता….।।

इसलिए संजय लिखता
और कहता मंच से।
कि कलम की स्याही
कभी सूख न जाए।
अपने कभी हमसे
रूठ ना जाये।
हमें वैसे भी कम
लोग पसंद करते है।
क्योंकि हम चापलूसी
कभी करते नहीं हैं।।

तू है प्रभु का दास
तो क्यों है उदास।
जब प्रभु का है
तेरे सिर पर हाथ।
तो क्यों रहता है
वंदे तू उदास।
इस दौर में कोई
किसी का नहीं है।
तो वंदे क्यों रखता हैं
तू किसी से आस।।

प्रेम पीड़ा दर्द वियोग
और प्रेम की भूख ही।
प्यार और मोहब्बत
इंसानो को सिखाती है।
और आपसी भाईचारा का
संदेश सभी को देती है।
और इंसानो को दोस्तो
इंसानियत सिखाती है।।

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