spring thunder

छोटा नागपुर 54 करोड़ वर्ष पुराने , हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरे इस प्लेटियू को पूरी दुनिया लोहा, कॉपर, यूरेनियम जैसे मिनरल्स के लिए जानती है। जहाँ लगातार हो रहे खनन के लिए चाहिए जमीन, लेकिन जंगल, पहाड़, नदी यही तो हमारा माई-बाप है रे। इन पर आरी चला दिया रे। ये पेड़ नहीं कटा रहा ये आदमी कटा रहा है। राजस्व के नाम पर भूमि अधिग्रहण प्रस्ताव पास तो करा लिया गया। पर एनओ सी पर आदिवासी ग्रामीणों को यह मंजूर नहीं था। डाल्टनगंज की राजनीति में डवलपमेंट एक नया शब्द गूंजने लगा था। और एक अंधी दौड़ शुरू हो चुकी थी।

फ़िल्म की शुरुआत के ये संवाद ही फ़िल्म की जमीन तय कर देते हैं कि फ़िल्म जल, जंगल और जमीन यानी प्रकृति संरक्षण पर बनी है।
झारखंड के फिल्मकार श्रीराम डाल्टन की नई फिल्म ‘स्प्रिंग थंडर’ साउथ एशियन फिल्म फेस्टिवल में दिखाई थी। इसके अलावा भी कई फेस्टिवल में इसे दिखाया जा चुका है। जल , जंगल ,जमीन के लिए जूझते आदिवासी और यूरेनियम माफिया पर केंद्रित इसकी कहानी पांच साल पहले निर्देशक के जेहन में आई और सीमित संसाधनों में झारखंड के कलाकारों के साथ मिलकर उन्होंने साल भर तक एक जुनूनी कैफियत के तहत अलग-अलग मौसम में इसकी शूटिंग की। इस फिल्म की श्याम बेनेगल जैसे निर्देशक तारीफ कर चुके हैं।

‘अनारकली ऑफ आरा’ फेम झारखंड के फिल्मकार अविनाश दास कहते हैं कि यह हमारे दौर की एक जरूरी फिल्म है। फिल्म देखते हुए आप कहीं भी इंट्रेस्ट लूज नहीं करते।

श्रीराम डाल्टन की फिल्म ‘द लास्ट बहुरूपिया’ (हिंदी) को 2013 में गैर फीचर फिल्म (कला एवं संस्कृति) की कैटेगरी में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। उन्होंने अशोक मेहता जैसे फिल्मकार के साथ मिलकर ‘नो इंट्री’, ‘किसना’, ‘फैमिली’, ‘गॉड तुसी ग्रेट हो’, ‘वक्त’ जैसी फिल्में बनाई हैं। 2008 में बनी डॉक्यूमेंट्री ‘ओपी स्टॉप स्मेलिंग योर सॉक्स’ भी उन्हीं के खाते में हैं, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दकी ने भूमिका निभाई थी।

श्री राम डाल्टन जल संरक्षण को लेकर भी पद यात्राएं कर चुके हैं। उनके अनुसार बूंद-बूंद बचे पानी, तभी बचेगी जिंदगी… के प्रचार-प्रसार के लिए अप्रैल में श्रीराम डाल्टन पैदल ही मुंबई से निकल पड़े। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों से होते हुए वे अभी लोहरदगा पहुंचे।

डाल्टन इससे पहले नेतरहाट में लगभग 20 फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं। 2015 में दोस्तों के साथ मिलकर नेतरहाट फिल्म इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 2016 में नेतरहाट में ही पानी विषय पर गांव-देहात के लोगों के साथ मिलकर 13 छोटी-छोटी फिल्में बनाईं। 2017 मे ‘जंगल’ विषय पर 6 शॉर्ट और एक फुल लेंथ मूवी भी बना चुके हैं।

झारखंड और इसकी समस्याओं का बड़े पर्दे पर बहुत सीमित प्रतिनिधित्व रहा है। लेकिन यह फ़िल्म इसका स्वरूप बदलने वाली है, ‘कोइयांचल’ के रूप में – एक बॉलीवुड फिल्म जो राज्य के कोयला माफिया पर केंद्रित है – जल्द ही देश भर में रिलीज होने के लिए तैयार थी लेकिन अब इसे हारकर यूट्यूब पर ही रिलीज किया गया है।

श्रीराम डाल्टन, जिनकी बेल्ट के तहत समीक्षकों द्वारा प्रशंसित लघु फिल्मों की जोड़ी है। श्रीराज के अनुसार , “स्प्रिंग थंडर एक सामाजिक-राजनीतिक फिल्म है, जिसके माध्यम से हम इस खनिज संपन्न राज्य के समृद्ध इतिहास पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, “यह जानना काफी दिलचस्प है कि झारखंड में भारत में कोयले और लौह अयस्क का सबसे बड़ा भंडार है, जबकि राज्य की आधी से अधिक आबादी घोर गरीबी में रहती है, जो दुनिया के अन्य खनिज समृद्ध क्षेत्रों में अनसुना है।” झारखंड इसकी समस्याओं का बड़ा पर्दा है।

आदिवासियों के जीवन को यह फ़िल्म बहुत ही खूबसूरत तरीके से उठाती है। और एक संवेदनशील फ़िल्म बनकर सामने आती है। फ़िल्म के निर्देशक खुद इस फ़िल्म में अभिनय करते नजर आते हैं। फ़िल्म की कहानी माफियाओं पर आधारित है। जो आदिवासियों की जमीनों पर अधिग्रहण कर शहर बसाते हैं। और इस लिए वे पेड़ों से चिपक भी जाते हैं। जिसे देखते हुए राजस्थान में 1933 में हुए चिपको आंदोलन की याद दिलाती है। फ़िल्म में अभिनय सभी कलाकारों। का उम्दा है। गीत संगीत फ़िल्म के स्तर को ऊँचा उठाता है। बीच बीच में नुक्कड़ नाटकों के सहारे यह फ़िल्म आगे बढ़ती है तो कुछ कम तर होती नजर आती है और अपने मूल सन्देश से थोड़ा भटकती हुई भी नजर आती है।

अपनी रेटिंग ढाई स्टार

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