movie i witness

किसी भी कहानी को लिखने के लिए लेखक के पास सबसे अहम चीज जो होनी चाहिए ; वह है उसके पात्र। बिना कहानी के पात्रों के आप या हम किसी भी कहानी की सर्जना नहीं कर सकते। हालांकि साहित्यिक कैटेगरी के अनुसार उसमें छ: तत्व होने जरूरी होते हैं, किन्तु जब उस कहानी को आप फिल्मा रहे हों या प्रदर्शित कर रहे हों, उस कहानी को देखना, जीना, महसूस करना चाहते हों तो पात्र ही उसकी मुख्य भूमिका का निर्वहन करते हैं।

फोन की घंटी घनघना रही है और बाहर हो रही बारिश का नजारा लेखक देख रहा है। ऐसे मोमेंट कम ही फिल्मों में देखने को मिले हैं और जिनमें देखा है उनका नाम याद नहीं। कुछ देर बाद लेखक अपने कम्प्यूटर स्क्रीन को देखता है जहाँ रूही नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। फिल्म जैसे जैसे आगे बढ़ती है आप देखते हैं वह अभिनेता, लेखक कम्प्यूटर छोड़ एक टाइप राइटर उठा लाता है और उस पर कुछ टाइप करने लगता है।जैसे जैसे वह टाइप करता जाता है वैसे वैसे आपको घटनाएँ घटती नजर आती हैं। फिल्म की कहानी खत्म होते-होते उस ‘विटनेस’ (Witness) यानी पात्र से उसका ‘आई’ (I) मतलबी स्वयं पर से अधिकार छूट जाना, आपको ललचाता है सोचने के लिए। अब भला ऐसे कैसे हो सकता है? कोई आदमी कुछ सोचे और उसी वक्त हुबहू वैसा होता चला जाए? इस नश्वर जगत में यह जरूरी झूठ लग सकता है परन्तु एक लेखक, निर्देशक की कल्पनाओं में यह सच साबित होता है। क्योंकि सरहदें तो जमीनों पर होती है। पक्षी, हवा, पानी और सोच पर कोई सरहदें कैसे खींच सकता है?

खैर अब यह रूही कौन है? पात्र, अभिनेता, लेखक का उसका उससे क्या सम्बन्ध है? यह आपको फिल्म के आगे बढ़ने के साथ-साथ समझ आने लगता है। फिल्म को देखने के बाद हाल ही में रिलीज हुई अंधाधुन की तरह दिमाग खपाना भी आपको पड़ सकता है। दिमाग की कसरत करना चाहें तो आप इस फिल्म को अवश्य देख सकते हैं। फिल्म में हो रही कृत्रिम बारिश का संगीत और मुम्बई के स्टूडियो की लोकेशन अगर आप लेखक और सिनेमा प्रेमी, प्रकृति प्रेमी हैं तो अवश्य लुभाएगी। “The Square Root Of I is I- Vladimir Nabokov”

की पंक्ति के साथ समाप्त होने वाली इस कहानी के लिए बेस्ट एक्टर का खिताब जीतने वाले चंदन आनंद अपनी अदायगी को घूंट-दर-घूंट जीते नजर आते हैं। वहीं क्रिस्सन्न बर्रेटो रूही के किरदार में फिट बैठती है। 18 मिनट की यह फिल्म बहुत कुछ सिखाती है। लेखकों को अपने किरदारों को अंगुलियों पर नचाना, निर्माता, निर्देशकों को फिल्में बनाना, कलाकारों को कलाकारी करना, एडिटर को एडिटिंग करना, कैमरा मैन को कैमरा संभालना।

भावना शील निर्मित एवं डी० वत्स (दीपेंद्र सिंह वत्स) निर्देशित इस फिल्म के लिए बैकग्राउंड स्कोर और म्यूजिक देने वाले अभिषेक चौधरी, करण शर्मा , राहुल परमार का म्यूजिक आपको कल्पनाओं के संसार में ले जाने में मदद करते हैं। अनुज तनेजा और भावना शील की कहानी आपकी तारीफें माँगने पर आपको मजबूर करती है। मिस्क्फी (miscifi) 2017 ‘मिआमी इंटरनेशनल साइंस फिक्शन फिल्म फेस्टिवल’ miami international science fiction film festival में ‘बेस्ट फैंटसी फिल्म’ , (beacon) बीकन अवार्ड , बेस्ट एक्टर 4th नोएडा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल , स्पेशल ज्यूरी मेंशन 5th दिल्ली इंटरनेशनल अवार्ड सहित आधे दर्जन पुरस्कार प्राप्त करने वाली इस आई विटनेस कहानी को आप भी देख सकते हैं

About Author

2 thoughts on “फ़िल्म रिव्यू : अपनी अपनी कहानियों का आई विटनेस”

  1. क्षमा कीजियेगा महाशय, आपकी बातें उलझी हुयी हैं. आपने क्या लिखा है कुछ समझ में नहीं आया, क्या कहना चाहते हैं आप.

    1. यूट्यूब पर i witness डालिए फ़िल्म देखिए उसके बाद बताइएगा कि क्या उलझा हुआ लिख दिया ऐसा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *